…तो सही में दिवालिया घोषित हो गया जनसंदेश टाइम्स लखनऊ !

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जनसंदेश टाइम्स के दिन बहुत बुरे चल रहे हैं। एक तरफ जहां एक-एक करके उसके सारे एडीशन या तो ब्यूरो बनाए जा रहे हैं या फिर बंद कर दिए जा रहे हैं। लखनऊ जनसंदेश टाइम्स की स्थिति भी बहुत खराब है। संपादकीय के कर्मचारियों को मई से अब तक कोई सैलरी नहीं दी गई। सोमवार को जब कुछ कर्मचारी जीएम विनीत मौर्या से अपने सैलरी की बात करने पहुंचे तो उन्होंने एक टका सा जवाब दे दिया कि मैं कहां से सैलरी दूं, संस्थान दिवालिया हो गया है। संस्थान के दिवालिया होने के जीएम ने अधिकारिक पुष्टिï तो नहीं की लेकिन कर्मचारियों से साफ-साफ कह दिया कि संस्थान दिवालिया हो गया है पैसा नहीं है। कहां से दें आपको। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार जब कुछ कर्मचारियों ने विनीत मौर्या से ये पूछा कि अगर संस्थान दिवालिया हो गया है तो मार्केटिंग विभाग को सैलरी कहां से दी जा रही है। इस पर विनीत मौर्या तिलमिलाते हुए उस कर्मचारी से भिड़ गए और यह कह दिया कि किसको कहां से पैसा दिया जा रहा है ये जानना आपके बस की बात नहीं। मौर्या के इस व्यवहार से आहत संपादकीय विभाग के एक और कर्मचारी ने कहा कि अगर संस्थान दिवालिया हो गया है तो उसे बंद क्यों नहीं कर देते। इस पर जीएम विनीत मौर्या आग बबूला हो गए और यह कह दिया कि तुम लोग को नौकरी छोड़कर जाना हो जाओ, संस्थान बंद करना या खोलना मेरी चिंता है। जीएम मौर्या के इस व्यवहार से इतना तो तय है कि आर्थिक तौर से संस्थान में पैसे की उतनी तंगी नहीं है जितना वह दिखा रहे हैं। संपादकीय कर्मचारियों की मानें तो विनीत मौर्या इस समय बैकडोर से पैसा बनाने में लगे हुए हैं। बैकडोर से अभिप्राय है कि लखनऊ एडीशन में जो भी अखबार छप रहे हैं वह कोई भी हॉकर नहीं उठाता। बाजार में भी कहीं देखने को नहीं मिलता तो आखिर वह कापियां जाती कहां हैं। इस सवाल का जवाब संपादकीय विभाग में बड़े ही वरिष्ठï पद पर कार्यरत एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि जो भी कांपियां छप रहीं है वह तुरंत रद्दी में बेच दी जा रही हैं। मालिकान को यह नहीं बताया जा रहा है कि कितनी कांपी छप रही है कितनी बिक रही है और कितनी किन आफिसेज और लोगों को निशुल्क भेजी जा रही हैं। मतलब साफ है कि प्रिंटिंग डिपार्टमेंट की मिलीभगत से जनसंदेश टाइम्स में रद्दी का खेल चल रहा है।

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