पत्रकारिता के इस चीरहरण काल में सुबह की उम्मीद बैमानी

‪‎बुरा‬ न मानो क्योंकि मीडिया मे मिलावट हैं?
Kundan Vats के फेसबुक वाल से। ‪#‎यूँ‬ तो मुझे पर्सनली ZEE NEWS की अतिराष्ट्रवादी वाली पत्रकारिता से परहेज हैं| सुधीर चौधरी के भी किस्से लोगों के बीच में आम हैं। लेकिन जिंदल प्रकरण के बाद प्रायश्चित के रूप में DNA नाम के कार्यक्रम को खुद बेहतरीन तरीके से होस्ट करना तथ्यात्मक तथ्यों पर कस कर, वो काबिलेतारीफ हैं। तथ्यों के आधार पर आज का विषय प्रसंगिक और जरुरी था, याक़ूब मसले पर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के कुलचे परोसने के बाद अनुभवी प्रिंट मीडिया से उम्मीद थी, की वो तो इज्जत बचा ले जायेगी, लेकिन सूर्योदय के पाहिले किरण के साथ वो भी ध्वस्त हो गई, उसने तो पूरा रायता फैला दिया, सुबह-सुबह ऐसे दिव्य अलौकिक व्यक्तित्व के जनाज़े के दर्शन करवाये, पूछिये मत पिताजी तक खिन्न हो गए।
फ्रंट पेज पर हाफ पेज की 5 कॉलम की स्टोरी चेपना वही बगल में भारत रत्न की स्टोरी को 2 कॉलम में सलटा देना, किस मांग और पूर्ति के साथ न्याय करती हैं। ख़बर की गंभीरता, टारगेट रीडर की संख्या, जितनी असंख्य थ्योरी आज सबकुछ को प्रिंट मीडिया ने खूंटे पर टांग दिया, ये कहते हुए की “इस रात की सुबह नहीं” वाकई पत्रकारिता के इस चीरहरण काल में सुबह की उम्मीद बैमानी ही कहलायेगी।
‪#‎पिताजी‬ ने कहा कल कलाम साब का अन्तिमक्रिया था, उसकी फ़ोटो नहीं दिख रही, ये इतना बड़ा फ़ोटो किसका हैं? जवाब दिया याक़ूब की अंतिम यात्रा का। कहने लगे लोगों से ज्यादा उन्मादी तो ये लोकतंत्र का चौथा पिलर हो गया हैं, जिसे ख़बरों की गंभीरता और उसकी महत्वता सिर्फ निम्बू पानी नजर आती हैं घोला और पी गया। प्रिंट की उम्र बहुत लंबी होती हैं लोग स्पेशल दिनों के कतरनों को घर मैं रखते हैं, लेकिन न जाने क्यों एक आतंकी को अलौकिक बनाने के लिए मीडिया इतना बेबस हो गया की उसने अपनी उम्र सीमा तक को हेंगर में लटका दिया।
सुधीर चोधरी ने सही कहा की अब मीडिया का एजेंडा सेट होने लगा हैं| भाई जिनका मीडिया से दूर-दूर तक कोई सरोकार नहीं, उनके पैसो का मीडिया में लगा होना मीडिया के बड़े पतन का सूचक हैं। आज आप ब्लैक मनी को वाइट करने का अड्डा बन गए हैं। मीडिया घराने बिल्डर,माफिया, पोंजी स्केम और उधोयोगपतियों के घर, धनलक्ष्मी बन बैठ हैं। FOCUS, SHARDHA, SUN TV इत्यादि तो वो ग्रुप हैं जो नापे जा चुके हैं, जिनके मालिक धर लिए गए हैं, जो नहीं धरे गए हैं वो ज़्यादा खतरनाक हैं। दूसरों का अवलोकन करने वाले आज आप 24 घंटे खुद अवलोकित हो रहे हैं, और इस बेस पर एजेंसी अपनी रिपोर्ट सरकार को सौपने वाली हैं, ठीक ग्रीनपीस की तरह। की आपका अविवेकी और उन्मादी दिमाग की उपज् वाली पत्रकारिता किस प्रकार से देश के लिए और सरकारी नीतियों को प्रभावित और नुक्सान पंहुचा सकती है।
SP सिंह जैसे निर्भीक और पत्रकारिता के मूल्यों को हमेशा अवमूल्यन से बचाने में ज़िन्दगी खपाने के बाद, उनके आदर्शों की तिलांजलि देकर, कल तक के अँधेरी दुनिया में उनका खड़ा किया हुआ चैनल सिमट कर रह गया है। वामपंथी विचारधारा पुरे देश में अपनी करतूतों की वजह से मरणासन्न हैं लेकिन वो एक प्रतिष्ठित चैनल के वेंटीलेटर पर आज भी सांस लेता हुआ पाया जाता हैं। बौद्धिक पत्रकारिता के सिर्फ अगुआ कहने भर से कुछ नहीं होता, आपको असहमति और ख़िलाफ़त में भेद समझना होगा। वहीँ नयी बोतल मैं पुरानी शराब यानी आनंदित बाज़ार आपको कभी गंभीर मुद्रा और कभी संवेदनहीन मुद्दों के कशमकश में उम्मीदों को आकाश से पाताललोक ले जाने पर आमदा हैं।
सबको RTI के दायरे में लाने की वकालत करने वाला ये मीडिया क्या खुद इस दायरे मैं आना चाहेगा? या फिर उसका भी धंधा BCCI की तरह चलता रहेगा? सबको ऑनलाइन और ऑडिट करवाने की वकालत करने वाला ये समाज क्या CAG से एक बार भी ऑडिट करवाने का गुद्दा रखता हैं?
अरे डरिये मत आप कुछ गलत थोड़ी न कर सकते हैं। चार धाम की पवित्रता के बाद पवित्रता में 5वां धाम आप लोगों का ही बसाया हुआ हैं।
‪#‎जरुरी‬ हैं की सरकार नए चैनल के लिए आवेदन पर सिक्यूरिटी क्लीयरेंस से लेकर लाइसेंस प्रणाली को दुरुस्त करे, साथ ही ये भी सुनिश्चित करे की, कहीं लाइसेंस प्राप्त करने के बाद अमुक व्यक्ति ने वो लाइसेंस किसी गलत हाथ में 3-4 करोड़ में बेच तो नहीं दिया। क्योंकि बहुत प्रकार के चोटट्टे लोग इस मीडिया के धंधे में उतर आये हैं, 24 घंटे में शर्तिया बाबा बंगाली वाले हसीं ख्वाब लिए।
नोट: ज्यादातर अख़बारों के नाम के साथ संयोगवश देश का नाम जुड़ा हुआ है, कम से कम इसकी गरिमा तो बनाये रखते सम्पादक महोदय।
‪#‎stopPrestitutes‬

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