चेक बाउंस को लेकर कैनविज टाइम्स के कर्मचारी स्थानीय सम्पादक विजय शुक्ला और प्रबन्ध सम्पादक एवं मालिक कन्हैया गुलाटी पर करेंगे केस

लखनऊ शहर से छपने वाला अखबार कैनविज टाइम्स अभी भी लगातार जालसाजी के नये-नये कीर्तिमान गढ़ता जा रहा है। 2009 में अखबार की शुरुआत हुई और अखबार में कार्यरत सभी कर्मियों के अथक प्रयास के बाद यह अखबार लोगों की नजर में आना शुरू हो गया था।

एक तरफ इस अखबार में कार्यकरने वाले अधिकारी और कर्मचारी जहां अपनी अखबारी कार्यकुशलता के चलते अखबार को आगे बढ़ाने का कार्य कर रहे थे वहीं इस अखबार के मालिक की मानसिकता अखबार चलाने का न होकर अखबार के नाम पर अपने कई काली करतूतों पर पर्दा डालने का था। मालिक की इसी गलत सोच के चलते अखबार जहां एक तरफ बहुत तेजी से आगे बढ़ रहा था वहीं उतनी ही तेजी से नीचे भी गिरा।

इस अखबार को जहां राघवेन्द्र त्रिपाठी ने संपादक के रूप में शुरू करके ऊंचाईयों तक पहुंचाया था वहीं उनके बाद प्रभात रंजन दीन ने इस अखबार को एक नया मुकाम दिया बावजूद इसके मालिक की वादाखिलाफी और बदनीयती का आलम यह रहा कि यह अखबार प्राय: बंद सा हो गया। इस अखबार की मिट्टïी पलीत करने में और कर्मचारियों के भत्ते को मालिक द्वारा दबाने में नये संपादक बनकर आये शम्भू दयाल बाजपेयी का बड़ा योगदान रहा।

यह अखबार एक तरह से बंद सा हो गया और इस अखबार के कर्मचारी एक-एक सड़कों पर आ गये। बिना बताये मालिक द्वारा कर्मचारियों तत्काल कार्यालय से बाहर निकाला वहीं अखबार को किसी और के माध्यम से छपवाने का कार्य शुरू कर दिया। जनवरी 2017 से अखबार के प्रिंट लाइन में प्रबन्ध सम्पादक और मालिक के तौर पर कन्हैया गुलाटी का ही नाम जा रहा है लेकिन स्थानीय सम्पादक विजय शुक्ला को बनाया गया है।

निकाले गये कुछ कर्मचारियों को स्थानीय सम्पादक विजय शुक्ला ने नौकरी का झांसा देते हुए अपने साथ लगा लिया। इन कर्मचारियों में जगदेव वर्माउमेन्द्र सिंहपवन कुमाररघुवीरधीरेन्द्र बहादुरविजय शुक्लारोहित मिश्राविजय कुमार यादवरमाशंकर व अन्य ने अखबार में कार्य करना शुरू किया। स्थानीय सम्पादक विजय शुक्ला ने जनवरी 2017 से नवम्बर 2017 तक अपने किसी भी कर्मचारी को बताया गया वेतन नहीं दिया कर्मचारियों के सब्र का बांध टूटा और उन्होंने हंगामा करना शुरू किया तो इस हंगामे से बचने के लिए कुछ कर्मचारियों को 10-10 हजार रुपये का चेक आवंटित कर दिया।

इस चेक को जब कर्मचारियों ने अपने एकाउंट में लगाया तो ये सारे चेक बाउंस हो गये। बाउंस होने के बाद कर्मचारियों द्वारा बार-बार उनको फोन करने पर भी स्थानीय सम्पादक विजय शुक्ला इन सारे कर्मचारियों के नंबर को अपने रिजेक्ट लिस्ट में डाल दिया। कहने का अभिप्राय यह है कि विजय शुक्ला न कर्मचारियों  का वेतन दे रहे हैं और न ही उनका फोन उठा रहे हैं और एसएमएस का भी जवाब नहीं दे रहे हैं।

कर्मचारियों के सामने अपने परिवार के पालन-पोषण का कोई जरिया भी नहीं दिख रहा है। इन्हीं कर्मचारियों द्वारा जब अननोन नम्बर से फोन किया जाता है तो विजय शुक्ला उन कर्मचारियों को आज-कलआज-कल कहकर टाल देते हैं। यह अखबार जिस मकसद से शुरू हुआ था विजय शुक्ला उसे उसी अंजाम तक पहुंचा रहे हैं। 

8 सालों तक इस अखबार से इसके मालिक कन्हैया गुलाटी ने अपने पापों को छिपाने का काम किया और अब विजय शुक्ला इस अखबार की आड़ में अपना पाप भी छुपा रहे हैं और कमाई भी कर रहे हैं। बावजूद इसके कर्मचारियों को एक रुपये भी नहीं दे रहे हैं। स्थानीय सम्पादक विजय शुक्ला के दूरभाष नम्बर 9910003357 पर जब भड़ास फॉर जर्नलिस्ट के सम्पादक ने फोन किया तो उन्होंने फोन तो उठाया लेकिन जब कर्मचारियों की बात आई तो तत्काल तौर से फोन काट दिया और उसके बाद लगातार फोन काटते रहे।

इस अखबार में शुरू से ही अपने कर्मचारियों और अधिकारियों को ठगा है और मालिक एवं उच्च अधिकारियों को फायदा पहुंचाया है। बाउंस हुए चेकों को लेकर कर्मचारियों में काफी रोष व्याप्त है। किसी कर्मचारी का 01 लाख तक तो किसी का 85 हजार वह 50 हजार तक बकाया है।

ऐसा नहीं है कि इस अखबार ने कमाई नहीं की हैइस अखबार ने ठीक-ठाक कमाई की है लेकिन यह पूरा पैसा विजय शुक्ला और कन्हैया गुलाटी के जेब में चला गया और एक बार फिर कैनविज टाइम्स के कर्मचारी सड़कों पर आ गये हैं। लेकिन इस बार ये कर्मचारी मालिक और स्थानीय सम्पादक के खिलाफ संघर्ष के मूड में आ गये हैं। ऐसे ही रहा तो विजय शुक्ला और कन्हैया गुलाटी के लिए आने वाला समय कुछ ठीक नहीं होगा।

कैनविज टाइम्स में कार्यरत कर्मचारी द्वारा भेजे गए ई-मेल के आधार पर 

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