यह महज चुनाव लड़ने और वोट डालने की बात नहीं है…

प्रभात रंजन दीन
याचना नहीं, अब रण होगा… पत्रकारों ने खुद को अब तक एक याचक की तरह प्रस्तुत किया है, इसीलिए सत्ता व्यवस्था ने भी हमें उसी तरह का व्यवहार दिया. हमारे अगुओं ने हमारी तस्वीर उल्टी पेश की. नस्ली तौर पर जो याचक थे उनके समक्ष हमें ही याचक ‘पोरट्रे’ कर दिया. हमारे दिए पर नेताओं ने सुर्खियां बटोरीं, देश-समाज में पुजवैया बने, सत्ता के गुलछर्रे उड़ाए, सरकारी खजाने खोखले किए और हम कातर और कायर बने खड़े रहे. हम पाप में हिस्सेदार नहीं थे, लेकिन उच्छिष्ट-लोभ के लती हमारे नेतृत्वकारों ने अपने धतकरमों में हमें हिस्सेदार दिखाया और समाज में हमारी साख की ऐसी तैसी कर दी. अपने बचाव में जाति, धर्म, गुट और गिरोह गांठ कर पत्रकार समुदाय के नैतिक, अकादमिक और सामाजिक प्रतिबद्धता के मूलभूत चरित्र को चाट डाला. हम कहते हैं कि हम समाज को आईना दिखाते हैं… लेकिन खुद आईना नहीं देखते. आंखें मूंद लीं तो खुद का नंगा होना नहीं दिखता… आज जब हम फिर से अपना नेतृत्व चुनने जा रहे हैं तो क्यों नहीं आईने में खुद को निहारते चलें..! क्यों नहीं थोड़ा फ्लैश-बैक में झांकते चलें..! क्यों नहीं पुराने अलबम में चस्पा अपनी ही बदनुमा तस्वीरों को देखते चलें और अपनी गलतियों को फिर से न दोहराने के प्रति सचेत होते चलें..! निज स्वार्थों से हट कर हम आने वाली पीढ़ी के लिए कुछ तो ऐसा करते चलें कि नई नस्लों की रीढ़ में कसावट शुरू हो, नसों में नैतिकता और आत्मसम्मान की सुरसुराहट शुरू हो, पत्रकार अपनी विधा के ज्ञान और गौरव से लबालब हों और उसके आत्मविश्वास से दीप्त व्यक्तित्व के आगे नेता-नौकरशाह बौने दिखाई पड़ें..! अब बहुत हो चुका थोपी गई हीन भावना से गुजरते हुए. इससे बेसाख्ता इन्कार करने का समय आ गया है. अब नहीं इन्कार करेंगे तो कब करेंगे..? यह याद रखें कि हम न चुनाव लड़ रहे हैं और न आप वोट दे रहे हैं. चुनाव लड़ने वाले को शासक समझने और खुद को तुच्छ प्रजा (मतदाता) समझने की सामंती मनोदशा से उबर जाइये. हम सब मिल कर यह समझें कि हम निर्णायक यात्रा पर हैं, स्खलन-काल से सम्मान-काल में प्रवेश के मार्ग पर बढ़ने का समवेत निर्णय लेना है. हमें चरवाहे के पीछे-पीछे भेड़ों के झुंड की तरह हंकवाना मंजूर है या हुंकारते हुए प्रतिष्ठा के हिमालय पर चढ़ जाना मंजूर है… हमें इसका चयन करना है. व्यक्ति बड़ा नहीं, वक्त बड़ा होता है… वक्त ही हमारी परीक्षा भी लेता है… कहीं बाद में हमें यह न लगे कि हम वक्त की नजाकत और उसका इम्तिहान समझ नहीं पाए…
आप सबको अभिवादन और शुभकामनाएं, प्रभात रंजन दीन

This is the time to select not to elect

Now no begging… crusade is the only remedy. As of now the journalists have presented themselves as drifters & beggars before the governing system and the leadership. Our community leaders portrayed our picture completely upside down before the politicians who were themselves a flock of parasites. Their politics flourished due to our efforts, we provided them popularity, we paved the way for their victory, they enjoyed on our cost; they looted the currency & resources using our shoulders… and we cowardly witnessed their crime and did nothing. We were not the shareholders in their nefarious deeds, but our community leaders showed us as partners and ate the slops themselves. By doing this, our community leaders tarnished the image of journalist community on the whole, before the society. They very cunningly converted our community into caste, creed, religion, group & gang and swallowed away our original moral & academic image and further more tarnished the foremost necessity of social-commitment. We boast and claim that we show mirror to the people but scape to see the mirror own self. We just shut our eyes and feel that we are not undressed. Today when we are again going to choose our leader, why don’t we dare to see the mirror for a while..? Why don’t we see a bit in the flashback..? Why don’t we inspect the old album where our dirty & filthy faced photos are tucked and why don’t we alert own self not to repeat the mistakes done before..? Remember, we are neither fighting election, nor you are casting vote. We are just deciding our path to move onward. The office bearers are not RULARS and ‘voters’ are not the RULED… we must remove this psych from our mind.
We must determine to shed all our self-interests for the coming generation… we have to nurture the coming generation to be a strong journalist having strong ribs & bones, filled with high moral values, confidence, professional knowledge and wisdom. The netas & babus must not dare to humiliate journalists; rather they should feel inferior and substandard before such magnetic, dynamic and self-respected journalists.
Now this is the right time to reject the rotten old path to adopt. We must accept the risk to say NO to become the byproduct of garbage. We have to decide at this moment that whether we agree to be the part of the crowds of sheep foolishly following the direction of the foolish shepherd… or dare to announce to be a member of the dare devils wish to climb the Everest of respect & reputation… We have to choose any one of the alternative with the understanding that time is important & foremost (not a person). Time takes our test on the moment of transition; we shouldn’t repent in a later stage that we failed to understand the pulse and thus botched after all…
Please accept my regards and best wishes to you all…
Prabhat Ranjan Deen

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