किस्से अखबारों के-41: चैथा खंभा है या रेत की दीवार!
Sushil Upadhyay। 2014 के लोकसभा चुनाव में मीडिया, खासतौर से टीवी मीडिया ने लोकतंत्र के चैथे-खंभे की बजाय खुद को रेत की दीवार में बदल लिया है। अप्रैल के आखिरी सप्ताह में एबीपी न्यूज और जी-न्यूज पर मोदी के इंटरव्यू देखने के बाद से ऐसा लग रहा है कि पत्रकार और पत्रकारिता की परिभाषा को नए सिरे से परिभाषित किया जाना चाहिए। पत्रकार की विशेषताओं का भी पुनर्निधारण होना चाहिए और संभव हो तो उसमें भांड, चारण, दरबारी और अहलकार जैसे गुणों को भी शामिल करना चाहिए। जो जितना नीचे गिरकर पैर पकड़ता दिख सकता है, वही सक्षम पत्रकार हो सकता है!
एबीपी न्यूज पर शाजी जमा, राजीव खांडेकर और सुमन डेे की तिकड़ी ने मोदी का इंटरव्यू किया। ये तीनों मिलकर भी इतनी ताकत नहीं जुटा पा रहे थे जितनी कि हम जैसे दर्शकों ने बीते दशकों में खुशवंत सिंह, मार्क टली, सतीश जैकब, कुलदीप नैयर, करन थापर, एमजे अकबर जैसे अनेक पत्रकारों में देखी है। अंबानी-अडाणी से संबंधित सवाल पर मोदी ने तीनों को हड़काते हुए कहा कि ये सवाल आपका नहीं है। यानि, पत्रकारों ने कांग्रेस या आम आदमी पार्टी से गठजोड़ करके ये सवाल पूछने की हिमाकत की है! मोदी ने शाजी जमा के पहले सवाल को ही इर-रेलिवेंट बता दिया। मोदी बार-बार मीडियाकर्मियों को न्यूज-ट्रेडर कहते रहे, न्यूज-ट्रेडर को आग लगाने वाला भी कह दिया, पर तीनों में से किसी की हिम्मत नहीं हुई कि वे मोदी को टोक सकें। उन्हें जवाब दे सकें कि जो लोग मीडिया को न्यूज-ट्रेडर कर रहे हैं, उन लोगों को आम लोगों के बीच मुसलमानों का कातिल कहा जा रहा है। मोदी ने दोहराया कि मुझे भ्रष्टाचारी कहोगे तो मैं न्यूज-ट्रेडर कहूंगा। बात साफ है-मेरी तारीफ करो, मुझे प्रतिष्ठा दो तो मैं तुम्हे स्वतंत्र, तटस्थ और जिम्मेदार मीडिया मानूंगा। अन्यथा की स्थिति में तुम न्यूज-ट्रेडर हो, खबरों के व्यापारी हो। बात साफ है-आने वाले दिनों में सत्ता-तंत्र मीडिया को दो हिस्सों में बांटकर देखेगा। जो भी सवाल खड़े करेगा, उसकी श्रेणी न्यूज-ट्रेडर की होगी। साथ ही, उन्होंने यह भी कह दिया कि न्यूज-ट्रेडर को डरना ही चाहिए। यानि, जो भी मोदी के खिलाफ होगा, उनकी संभावित सरकार के खिलाफ होगा, वे उसे अपने दुश्मन के तौर पर ही देखेंगे।
तीनों रिपोर्टर (वैसे, तीनों सम्पादक हैं ) मोदी के सामने बच्चे लग रहे थे। इस बात की पुष्टि उस वक्त हुई जब रॉबर्ट वाड्रा पर पर कार्रवाई के सवाल पर मोदी ने कहा-ये गंदा सवाल है, बहुत ही गंदा सवाल है। और रिपोर्टर चुप, एकदम खामोश। गुजरात दंगे की बात आई तो मोदी ने तीनों दिग्गजों को लपेट लिया-झूठ बोल रहे हैं आप, गलत बात कह रहे हैं, पहले रिसर्च तो करो। पूरे इंटरव्यू को देखने से एक बात साफ थी कि तीनों के मन में मोदी का भय काफी गहरे तक बैठा हुआ था। डर था कि कहीं मोदी उखड़ न जाएं। शायद, इसी डर के कारण किसी भी सवाल को रिपीट करने या प्रतिप्रश्न पूछने की हिम्मत नहीं की गई। ऐसे इंटरव्यू तो सरकारी भौंपू माने जाने वाले दूरदर्शन पर भी देखने को नहीं मिलते। वहां भी एक न्यूनतम गरिमा बनाकर रखी जाती है।
हद तो यह हुई कि मोदी ने कश्मीर, पाकिस्तान, मंदिर-मसजिद, सिविल कोड, रॉबर्ट वाड्रा पर कार्रवाई, गुजरात दंगे से संबंधित सवालों का जवाब ही नहीं दिया। आर्थिक नीतियों की कांग्रेस से भिन्नता के सवाल को भी मोदी ने तवज्जो नहीं दी। जब, पत्रकारों की हैसियत ऐसी नहीं है कि वे सवालों का जवाब हासिल कर सकें तो फिर ऐसे इंटरव्यू का औचित्य क्या है! ऐसा लग रहा था, जैसे मोदी तय करके आए हों कि मीडिया को उसकी औकात दिखानी है। मोदी ने उंगली उठाकर कहा-बर्बाद कर दिया आप लोगों की सोच ने। मीडिया वाले मुझे नोंच नहीं पाएंगे, दबूंगा नहीं मैं। मोदी के इस कारनामे को तीनों रिपोर्टर मुंह बाए देख-सुन रहे थे।
कई बार ऐसी स्थिति आई जब लगा कि तीनों पत्रकारों में मोदी की तारीफ करने की छिपी हुई होड़-सी लगी हैं। भक्ति के रंग में रंगे और ठकुरसुहाते सवाल पूछे जा रहा है। जैसे-क्या यूपीए सत्ता से बाहर जाएगा ? आपको यकीन है कि सरकार आप ही बनाएंगे ? मोदी की शादी से संबंधित सवाल भी बेहद डरे-सहमे अंदाज में पूछा गया। मोदी ने मीडिया पर यह आरोप भी लगाया कि उसी की वजह से सार्वजनिक जीवन में व्यंग्य-विनोद खत्म हो गया। इस बार मोदी के इंटरव्यू से ऐस लगा था कि उनमें राज ठाकरे की आत्मा प्रवेश कर गई है। इक्का-दुक्का सवाल उन्हें परेशान करने वाले थे, उन पर मोदी ने प्रतिप्रश्न कर दिया-किसका एजेंडा लेकर आए हो ? इंटरव्यू के आखिरी हिस्से तक तीनों लोग इतने सहमे हुए लग रहे थे कि निर्धारित टाइम से पांच मिनट पहले ही शाजी जमा ने कहा कि आखिरी सवाल पूछ रहा हूं, लेकिन बाद में उन्हें ख्याल आया होगा कि अभी तो टाइम बचा है इसलिए इस आखिरी सवाल के बाद भी पांच-छह सवाल पूछे गए।
जी-न्यूज पर प्रचारित इंटरव्यू मीडिया-मानकों केे लिहाज से और भी हास्यास्पद था। सुधीर चैधरी और अर्नब गोस्वामी दिखने की फिराक में रहने वाले जी-बिजनेस के बड़बोले अमीष देवगुन इस दावे के साथ इंटरव्यू ले रहे थे कि मोदी को आज सबसे मुश्किल सवालों का सामना करना पड़ेेगा। लेकिन, सवाल देख-सुनकर हंसी ही आई। मोदी ने अमीष को कम से कम आधा दर्जन बार डांटा और अमीष जी-जी करता रहा। जैसे, मोदी से डंाट खाना कोई बड़ी उपलब्धि हो। इन दोनों में से कोई भी मोदी से आंख मिलाकर सवाल पूछने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था। सवाल पूछते वक्त, दोनों ही आंख झुका लेते थे। पता नहीं, ऐसा मोदी ने कहा होगा या इन्होंने खुद ही ऐसा तय किया होगा कि आंख नहीं मिलाना है। मानो आंख मिलाते ही ये भ्रमित हो जाएंगे।
नैंसी पावेल से संबंधित सवाल पूरी तरह चापलूसी की चाशनी में डूबा हुआ था। अमीष का सवाल पूछने का अंदाज बेहद बचकाना था, उन्होंने सवाल पूछा-क्या आप इस सवाल का जवाब देना चाहेंगे? मोदी ने उलटकर कहा-यहां आया किसलिए हूं। दोनों रिपोर्टर मोदी के अहलकार, कारिंदे, मनसबदार और दरबारी चापलूस लग रहे थे। इस तथाकथित बेबाक इंटरव्यू का समापन बेहद हास्यास्पद ढंग से हुआ। मोदी ने आखिरी के मिनटों को अपनी पार्टी के प्रचार के लिए इस्तेमाल कर लिया और रिपोेर्टर फीकी हंसी हंसने के अलावा कुछ करते नहीं दिखे। सामान्य दर्शक के नाते मेरे मन में एक सवाल है-ये मीडिया महारथी कभी अपना चेहरा आईने में देखते होंगे ? मैं, इतने बड़े रिपोर्टरों से खुद की तुलना नहीं कर रहा है। लेकिन, अलग-अलग मौकों पर मैंने मृणाल पांडे, शशि शेखर, राजेश रपरिया, ओमकार ंिसह, दिनेश जुयाल, प्रताप सोमवंशी, गोविंद सिंह, एलएन शीतल जैसे लोगों को नेताओं और दिग्गजों के इंटरव्यू लेते देखा है। इनमें से शायद ही किसी ने उस लेवल तक जाने की सोची होगी, जिस लेवल पर इस बार मोदी के मामले में इलैक्ट्रानिक मीडिया की स्थिति हुई।