संपादक अब प्रबंध संपादक बने, कर रहे हैं संपादकीय की जगह लाइजनिंग

रायपुर । नए दौर की पत्रकारिता पर बाजारवाद हावी है और पत्रकारिता चुनौतीपूर्ण हो गई है। पत्रकारिता में स्वामित्व बदला है, जिनका सरोकार गांव, गरीब, लोक संस्कृति, मनुष्य, पाठक, दर्शक या चिंतक नहीं है, बल्कि ग्राहक व विज्ञापनदाता से है। पुरखौती मुक्तांगन में आयोजित रायपुर साहित्य महोत्सव में शनिवार को ‘नए दौर में पत्रकारिता’ विषय पर विचार-विमर्श के दौरान यह बात सामने आई।
पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी मंडप में आयोजित इस सत्र में वरिष्ठ पत्रकार रमेश नैयर ने कहा कि नए दौर की पत्रकारिता में गांव, गरीब व लोक संस्कृति गायब हो गई है। बाजारवाद के दौर में पत्रकारों को अच्छी तनख्वाह मिलने के साथ ही असुरक्षा भी बढ़ी है। इसके चलते देश, समाज व पत्रकारिता के पेशे के प्रति लगाव भी खत्म होते जा रहा है। समाचार पत्रों में संपादकीय ने अभी भी पाठकों को बांधकर रखा है। न्यूज चैनलों में एक घंटा गंवाने के बाद एक-दो खबरें ही मिलती हैं। इसलिए हम कह सकते हैं कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के मुकाबले समाचार-पत्र बेहतर है। श्री नैयर ने कहा कि नए दौर में पत्रकारों की भूमिका नेपथ्य में सरकती जा रही है। दुर्भाग्यजनक है कि अखबारों में संपादक जैसी संस्था भी समाप्त हो रही है। कार्पोरेट घरानों के अलावा माफिया तक अब अखबार निकालने लगे हैं। अखबारों में संपादक के स्थान पर अब प्रबंध संपादक बिठाए जाते हैं, जो सत्ता के गलियारों में लाइजनिंग कर सके। उन्होंने कहा कि पत्रकारिता कई तरह के संकटों से गुजर रही है। सोशल मीडिया ने सत्ता में परिवर्तन किया है, जिससे सत्ता को भी सजग रहना चाहिए। वरिष्ठ पत्रकार अच्युतानंद ने पुराने और नए दौर की पत्रकारिता पर अपने विचार रखते हुए कहा कि पहले समाचार-पत्रों में संपादकों का दौर था, लेकिन आज मीडिया पर नियंत्रण पूंजीवादी कर रहे हैं। नए दौर की पत्रकारिता में पूंजी, तकनीक व संचार क्रांति हावी है, इसलिए पत्रकारिता पर चारों तरफ से चुनौतियां हैं। इन चुनौतियों का मुकाबला पाठकों व दर्शकों को ही करना है। उन्होंने यह भी कहा कि पत्रकारिता में वो ताकत है कि वह देश की राजनीति को ठीक कर सकती है। वरिष्ठ पत्रकार आकांक्षा पारे ने कहा कि पत्रकारिता में पहले हैंड कम्पोजिंग का दौर था, लेकिन आज बहुत कुछ बदल गया है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से लोगों तक खबरें पहुंचाना आसान हो गया है। पाठक या दर्शक अब फीचर की जगह छोटी-छोटी खबरें पढ़ना या देखना पंसद करते हैं। समाचार पत्र आज विज्ञापन व सर्कुलेशन पर निर्भर है, इसलिए मालिक व संपादक उस पर ज्यादा ध्यान देते हैं। खबरों पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है, क्योंकि समाचार पत्रों में कार्यरत कर्मचारियों का वेतन विज्ञापन व सर्कुलेशन से ही आता है।

सोशल मीडिया से आया बदलाव

पत्रकार अनंत विजय ने कहा- पत्रकारिता में हर जगह बदलाव आया है और पत्रकारिता का ह्रास भी हुआ है। सोशल मीडिया से पत्रकारों के लिए पत्रकारिता चुनौतीपूर्ण हो गई है। सोशल मीडिया ने पत्रकारिता को बदल दिया है। न्यूज रूम का एजेंडा खबरों पर आधारित होता है, जिसमें पाठकों की पसंद होती है। पाठक खबरें पढ़ने, सुनने और देखने का समय तय करते हैं। हॉकर समाचार पत्र देने में थोड़ी देर करते हैं तो वे नेट पर खबरें पढ़ लेते हैं। इस सत्र के सूत्रधार कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय रायपुर के कुलपति सच्चिदानंद जोशी ने कहा कि प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक के साथ ही सोशल मीडिया इस नए दौर में आगे बढ़ रहा है।

Loading...
loading...

Related Articles

Back to top button