हम सबका लखनऊ बॉय चला गया

हम सबका लखनऊ बॉय चला गया

Vineet Kumar! टाइम्स नाउ पर अर्णव और विनोद मेहता की जुगलबंदी देखते बनती थी..जितने तरीके से न्यूज़ रिंगमास्टर अर्णव को विनोदजी निरुत्तर करते, अर्णब की फुफागिरी एक मिनट में झंड हो जाती.अपनी बात पर,अपने तर्क पर डटे रहनेवाले विनोद मेहता.
आप-हम सब उनके संपादन के ज़बरदस्त कायल रहे हैं. अजीथ पिल्लई ने अपनी किताब off the record:untold stories from reporter’s diary में लिखा भी है कि मैं विनोद मेहता को अपने सिद्धांतों के आगे तीन बार नौकरी छोड़ते देखा. मौजूदा मीडिया में ऐसा करना कोई आसान काम नहीं है.लेकिन एक टीवी दर्शक के लिहाज से देखूँ तो उनकी एक नयी पारी शुरू हुई ही थी. चैनलों की झौ-झौ के बीच जब बोलना शुरू करते तो बाकी सब शांत.
एक बार हम राज्य सभा टीवी पर कार्टून पर लगे प्रतिबन्ध को लेकर चल रही परिचर्चा में थे. विनोदजी अपने घर/दफ्तर से ही लाइव थे..ब्रेक में जिस बिंदास अंदाज में वो टिप्पणी करते, उनकी तमाम गंभीरता के बीच शरारती बच्चा चुहल कर जाता. जब उनकी मेमॉयर से गुजरा तो और गहरे महसूस किया- शरारत की इनके पास अजब भाषा शैली थी, ख़ास किस्म की हंसोड़ इंग्लिश जिससे गुजरकर अर्णब को छोड़कर बाकी हम सबको बड़ा मज़ा आता. सत्ता की इंग्लिश से बिल्कुल अलग तरल संवाद की इंग्लिश.

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