कोबरापोस्ट के दंस से उजागर होता मीडिया का स्याह चेहरा

कोबरापोस्ट ने भारतीय मीडिय पर एक बड़ी तहकीकात को अंजाम दिया है। ऑपरेशन 136: पार्ट-2 असल में भारतीय मीडिया के सबसे विस्मयकारी रूप को दिखाता है, जहां “मीडिया के बड़े घराने” भी ऐसे अभियान को करने के लिए सहमत हो जाते हैं। जिसकी वजह से न केवल देश के नागरिकों के बीच सांप्रदायिक तनाव हो सकता है बल्कि ऐसा करने से किसी खास राजनीतिक पार्टी के खिलाफ झुकाव भी हो सकता है। यही नहीं इस तरह की कोशिश किसी खास पार्टी के पक्ष में चुनावी परिणाम का रूख भी पलट सकती है।

इस काम को करने के लिए पत्रकार पुष्प ने इन्हें मोटी रकम देने की बात कही, अंजाम ये रहा कि लालच में आकर इन सभी मीडिया घरानों ने पुष्प का गर्मजोशी से स्वागत किया और एजेंडे को हाथों-हाथ लिया। जो बड़े मीडिया संस्थान इस अभियान तो चलाने के लिए तत्पर दिखें उनमें टाइम्स ऑफ इंडिया, इंडिया टुडे, हिंदुस्तान टाइम्स, ज़ी न्यूज़, स्टार इंडिया, Network 18, सुवर्णा, एबीपी न्यूज़, दैनिक जागरण, रेडियो वन, रेड FM, लोकमत, एबीएन आंध्र ज्योति, टीवी-5, दिनामलार, बिग FM, के न्यूज़, इंडिया वॉयस, द न्यू इंडियन एक्सप्रेस, Paytm, भारत समाचार, स्वराज एक्सप्रेस, बर्तमान, दैनिक संवाद, एमवीटीवी और ओपन मैग्जीन शामिल हैं।

24 मई 2018 को मिले माननीय दिल्ली हाई कोर्ट के आदेशानुसार हम अपनी
तहकीकात में दैनिक भास्कर समूह को फिलहाल शामिल नहीं कर रहे हैं।
दिल्ली हाई कोर्ट ने हमारा पक्ष सुने बिना ही दैनिक भास्कर के पक्ष में
आदेश पारित किया है और हम इस आदेश को चुनौती देंगे।

वरिष्ठ जांच पत्रकार पुष्प शर्मा ने इस तहकीकात के दौरान हर जगह अपनी एक ही पहचान बताई। एक अनुभवी गीता प्रचारक के वस्त्र पहने और एक नई पहचान के साथ उन्होंने सबसे पहले खुद को उज्जैन स्थित आश्रम से जुड़ा हुआ बताया। साथ ही इन्होंने दावा किया कि वह IIT दिल्ली और IIM बैंगलुरू के छात्र रहे हैं। पुष्प ने बताया कि वो राजस्थान के झुनझुनू के रहने वाले हैं और ऑस्ट्रेलिया में बस गए हैं जहां स्कॉटलैंड में वो अपनी ई-गेमिंग कंपनी चला रहे हैं। तहकीकात के दौरान कभी-कभी उन्होंने कर्नाटक,  महाराष्ट्र और पूर्वोत्तर में ओम प्रकाश राजभर के संगठन ‘सुहेल्देव भारतीय समाज पार्टी’ की मध्य प्रदेश इकाई का प्रमुख होने का दावा किया। कभी-कभी पुष्प ने एक ही बैठक में अपनी सभी मान्य पहचानों का उपयोग किया। ताकि एक अखिल भारतीय चरित्र के साथ वो अपनी तहकीकात पूरी कर सके। उन्होंने एक कथित धार्मिक संगठन श्रीमद् भगवद् गीता प्रचार समिति के प्रतिनिधि की पहचान बताई जो संगठन के आदेश पर एक (गुप्त व्यवस्था) मिशन पर हैं। तहकीकात के दौरान पुष्प बताते हैं कि आने वाले चुनावों में सत्ताधारी पार्टी की स्थिति को मजबूत करने के लिए वो इस मिशन पर निकले हैं।

पत्रकार पुष्प शर्मा ने श्री मद भागवत गीता प्रचार समिति उज्जैन के प्रचारक बनकर अपने प्रस्ताव के साथ इन मीडिया घरों से संपर्क किया। इस मौके को भुनाने के लिए लगभग सभी मीडिया संस्थानों ने अपने सिद्धातों से समझौता कर लिया। हालांकि दो संस्थानों ने ऐसा ना करके एक मिसाल भी पेश की है। जो वाकई काबिल-ए-तारीफ है। वर्तमान पत्रिका और दैनिक संवाद ने पत्रकार पुष्प के इस अभियान को चलाने से साफ इनकार कर दिया।

मीडिया घरों के मालिकों और वरिष्ठ अधिकारियों से मुलाकात करते हुए शर्मा ने मोटी रकम के बदले उनसे एक मीडिया अभियान चलाने के लिए कहा। पुष्प ने अपने अभियान के तहत नीचे दिए गए खास बिंदुओं पर चर्चा की-

1 – शुरूआती दौर में पहले तीन महीने हिंदुत्व का प्रचार-प्रसार ताकि धार्मिक कार्यक्रमों के माध्यम से एक अनुकूल माहौल तैयार हो सके।

2 – इसके बाद विनय कटियार, उमा भारती और मोहन भागवत जैसे हिंदुत्व कट्टरपंथियों के भाषणों को बढ़ावा देने के साथ अभियान को सांप्रदायिक लाइनों पर मतदाताओं को संगठित करने के लिए तैयार किया जाएगा।

3 – जैसे ही चुनाव नजदीक आएंगे तो ये अभियान राहुल गांधी, मायावती और अखिलेश यादव जैसे राजनीतिक प्रतिद्वंदियों के खिलाफ उग्र हो जाएगा। विरोधी नेताओं के लिए पप्पू, बुआ और बबुआ जैसे उपनामों का इस्तेमाल कर जनता के सामने इनकी छवि खराब की जाएगी।

4 – उन्हें इस अभियान को अपने प्रिंट, इलैक्ट्रोनिक, रेडियो और डिजिटल जैसे- न्यूज़ पार्टल, वेबसाइट और सोशल मीडिया जैसे फेसबुक और ट्वीटर जैसे सभी प्लेटफॉर्म पर चलाना होगा।

इस काम को करने के लिए पत्रकार पुष्प ने इन्हें मोटी रकम देने की बात कही, अंजाम ये रहा कि लालच में आकर इन सभी मीडिया घरानों ने पुष्प का गर्मजोशी से स्वागत किया और एजेंडे को हाथों-हाथ लिया। ऑपरेशन 136: पार्ट-2 में तहकीकात के दौरान पुष्प शर्मा की इन मीडिया संस्थानों से हुई बातचीत को इन बिंदुओं के जरिए आसानी से समझा जा सकता है:

  • आध्यात्मिकता और धार्मिक प्रवचन के जरिए हिंदुत्व को बढ़ावा देने के लिए सहमत हुए।
  • सांप्रदायिक राह के साथ मतदाताओं को ध्रुवीकरण करने की क्षमता के साथ सामग्री प्रकाशित करने पर सहमत हुए।
  • सत्ताधारी पार्टी को फायदा पहुंचाने के लिए ये उनके राजनीतिक प्रतिद्वंदियों के खिलाफ अपमानजनक content पोस्ट और प्रकाशित करने के लिए तैयार हुए।
  • इनमें से कई इस सौदे को हर हाल में हासिल करने के लिए और अपने ग्राहक के काले धन को खपाने के लिए cash payment के लिए भी तैयार दिखे।
  • इनमें से कई संस्थानों के अधिकारी third party या agency के माध्यम से काले धन को सफेद कर उसे दूसरे रास्ते से हासिल करने के लिए सहमत हुए। यहां तक कि कुछ ने तो अंगडिया जैसे हवाला के रास्ते का भी सुझाव दिया।
  • कुछ मीडिया समूह के मालिकों ने तो बातचीत में अपने हिंदुत्व और संघ की विचारधारा से जुड़े होने का भी खुलासा किया। इसी वजह से वो पुष्प के अभियान पर काम करने के लिए राजी दिखाई दिए। जाहिर है ऐसे में पत्रकारिता के मूल सिद्धांतों से समझौता होना ही था।
  • इनमें से कुछ ने तो सत्ताधारी पार्टी के पक्ष में स्टोरी चलाने पर अपनी सहमति जताई। जबकि कुछ ने विरोधी दलों के खिलाफ बाकायदा एक जाल बुनकर अपनी टीम से उनकी तहकीकात कराने और स्टोरी चलाने पर रजामंदी जाहिर की।
  • इनमें से कई विशेष तौर पर इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए बाकायदा advertorials विकसित करने के लिए भी सहमत हुए।
  • इनमें से कई अपनी creative team को नियोजित करके इस दुर्भावनापूर्ण अभियान के लिए content विकसित करने पर सहमत हुए।
  • इनमें से कई इस अभियान को अपने प्रिंट, इलैक्ट्रोनिक, FM रेडियों, डिजिटल platform जैसे न्यूज़ पार्टल, वेबसाइट और सोशल मीडिया पर चलाने के लिए सहमत हुए।
  • इनमें से कुछ ने केन्द्रीय मंत्री अरूण जेटली, मनोज सिन्हा, मेनका गांधी और उनके बेटे वरुण गांधी के खिलाफ स्टोरी चलाने पर सहमति जताई।
  • इनमें से कुछ भाजपा गठबंधन के नेताओं जैसे अनुप्रिया पटेल, ओम प्रकाश राजभर और उपेंद्र कुशवाह के खिलाफ story को चलाने के लिए भी सहमत हुए।
  • उनमें से कुछ ने किसानों को अपनी खबरों में माओवादियों द्वारा उकसाए हुए दिखाने पर सहमति व्यक्त की।
  • इनमें से कई राहुल गाँधी जैसे राजनीतिक प्रतिद्वंदियों और विपक्षी नेताओं के character assassination करने के लिए सहमत हुए।
  • इनमें से कई संस्थान content को इस तरह से चलाने के लिए तैयार हुए ताकि वो paid न्यूज़ जैसा ना दिखे।
  • इनमें लगभग सभी FM रेडियो स्टेशन खास ग्राहक को अपने free air time पर एकाधिकार करने की अनुमति देने के लिए सहमत हुए।
  • कई FM रेडियो स्टेशन भी एजेंडा को बढ़ावा देने के लिए RJ mentions का इस्तेमाल करने पर सहमत हुए। इसमें हिंदुत्व का प्रचार और rivals के character assassination करने पर भी सहमति जताई।

ऑपरेशन 136: पार्ट-2 इसलिए भी खास है क्योंकि इसमें ना केवल इन सभी मीडिया संस्थानों को उजागर किया है बल्कि इस तथ्य को भी सामने लाए हैं कि तकनीक के इस दौर में किसी भी खास एजेंडे को मोबाइल ऐप के जरिए जनता तक पहुंचाने में एक प्रभावी माध्यम ढूंढा जा सकता है। पेटीएम को लेकर जो हमने खुलासा किया है वो इसका सटीक उदाहरण है। ये इस बात को दर्शाता है कि किसी खास एजेंडे को जन-जन तक पहुंचाने के लिए पारम्परिक मीडिया जैसे टीवी चैनलों या अख़बारों की जरूरत नहीं है। एक साधारण से मोबाइल ऐप के जरिए भी आप पलक झपकते ही वो कर सकते हैं जो पारम्परिक मीडिया की मदद से नहीं किया जा सकता। पेटीएम के बड़े अधिकारियों से हुई पुष्प की बातचीत में ना केवल इनकी बीजेपी विचारधारा का खुलासा हुआ बल्कि संघ के साथ कंपनी के संबंधों की भी बात सामने आ गई। यहां तक कि इस बात की पोल खुल गई कि पेटीएम जैसे जानी-मानी ऐप पर उपभोक्ताओं का डाटा सुरक्षित नहीं है, जैसा कि कंपनी का दावा है।

जैसा कि साल 2017 में भारत को प्रेस इंडेक्स में 136 स्थान देने पर Reporters Sans Frontiers (RSF) पर सवाल खड़े हुए। (https://rsf.org/en/ranking#) दरअसल RSF पेरिस स्थित एक स्वतंत्र निकाय है जो अलग-अलग देशों के 18 प्रेस संगठनों के साथ मिलकर काम करता है। RSF प्रेस और सूचना की स्वतंत्रता को बढ़ावा देता है और उनका बचाव करता है। तीन दशक पुराना ये समूह आज संयुक्त राष्ट्र संघ के साथ सलाहकार के तौर पर मौजूद हैं। ऑपरेशन 136 का नाम RSF रैंकिंग के आधार पर ही रखा गया है।

ऑपरेशन 136: पार्ट-2 में पाया गया है कि अधिकांश मीडिया हाउस, खासकर क्षेत्रीय या तो राजनेताओं के स्वामित्व में हैं  या राजनेताओं द्वारा संरक्षित हैं। जैसे ABN आंध्र ज्योति, एक प्रमुख तेलुगू टीवी समाचार चैनल टीडीपी के प्रमुख चंद्रबाबू नायडू द्वारा संरक्षित है। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है अगर हम इनके Chief Marketing Manager ई.वी शशिधर को सुनें। शशिधर कहते हैं कि उनका समाचार पत्र आंध्र ज्योति इतने बड़े पैमाने पर है कि वे कर्नाटक चुनाव के नतीजे को भी प्रभावित कर सकते हैं। उम्मीद है कि ये बातें भारत का चुनाव आयोग सुन रहा है!

दूसरी तरफ चेन्नई से प्रकाशित 70 साल पुराने प्रमुख तमिल दैनिक के मालिक लक्ष्मीपति आदिमूलम और उनका परिवार भी संघ को लेकर गहरी निष्ठा रखता है। ये बात बेहद चौंकाने वाली थी कि इन्होंने विशेष रूप से डिजाइन किए गए सॉफ्टवेयर को आयात किया है जो ब्रांड मोदी के प्रचार में मदद कर सकता है।

ऐसा नहीं था कि कोबरापोस्ट ने केवल उन उच्च रैंकिंग-कर्मियों का खुलासा किया हो जिनके साथ उन्होंने इस अभियान को लेकर बातचीत की थी। इस जांच के दौरान, कोबरापोस्ट ने कुछ वरिष्ठ पत्रकारों को भी सवालों में पाया, जिन्होंने इस बड़ी डील को हासिल करने के लिए पुष्प के एजेंडा पर काम करने में खुशी जाहिर की। ऐसे ही एक वरिष्ठ पत्रकार हैं पुरुषोत्तम वैष्णव जो ज़ी मीडिया के रीजनल न्यूज़ चैनलों में सीईओ के पद पर काम कर रहे हैं। अपनी खोजी टीम से राजनीतिक प्रतिद्वंदियों के खिलाफ स्टोरी कराने और फिर इन स्टोरी के जरिए उन विरोधियों को झुकाने के लिए भी सहमत हुए। पुरुषोत्तम कहते हैं कि Content में जो आपकी तरफ से input आएगा वो absorb हो जाएगाहमारी तरफ से जो content generate होगा investigative journalism हम लोग करते हैं करवा देंगे जितना हम लोगों ने किया है उतना किसी ने नहीं किया होगा वो हम लोग करेंगे

दरअसल, हमारी जांच इस तथ्य को स्थापित करती है कि आरएसएस एक अनुशासनिक हिंदुत्व के रूप में, न केवल न्यूज़रूम में बल्कि भारतीय मीडिया घरों के boardroom में भी गहराई से घुसपैठ कर चुका है। यहां तक ​​कि मालिक भी या तो सत्ता में पार्टी के प्रति अपनी निष्ठा को स्वीकार करते हैं और इनके वैचारिक एंकर उनके साथ सहयोग करने के लिए उत्सुक हैं। जैसे कि बिग FM के सीनियर बिजनेस पार्टनर अमित चौधरी अपनी कंपनी और सत्ताधारी पार्टी के बीच रिश्ते को स्वीकार करते हैं और कहते हैं कि वैसे भी रिलांयस बीजेपी का सपोर्टर ही है

इसके बाद नंबर आता है ओपन मैग्जीन के Regional Sales Head बसब घोष का। इस मैग्जीन के मालिक आर.पी-संजीव गोयनका समूह है जो खुलेआम अपनी आरएसएस के साथ निष्ठा को स्वीकार करते हैं। आचार्य जी शायद आप भी बिज़ी रहते हैं आप शायद ओपन देखते नहीं हैं रेगुलर। मैं आपको एक बात बताता हूं ओपन जितना सपोर्ट करते हैं संगठन का शायद ही कोई करता होगा

ऑपरेशन 136: पार्ट-2 के दौरान एक और दिलचस्प बात सामने आई कि हालांकि ये लोग आरएसएस या बीजेपी के प्रति अपनी कड़ी निष्ठा दिखा रहे हों लेकिन ये काले धन के खिलाफ उठाए गए पीएम मोदी के सबसे बड़े फैसले की भी खुलेआम धज्जियां उड़ा रहे हैं। जिस रिश्वतखोरी और काले धन को खत्म करने के लिए प्रधानमंत्री ने नबंवर 2016 में नोटबंदी के जरिए बड़ा कदम उठाया था। जिसे काले धन के खिलाफ ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ के नाम से महिमा मंडित करके देश की जनता को दिखाया गया था उसी को ये लोग मुंह चिढ़ा रहे हैं। हमें टाइम्स ग्रुप के Managing Director विनीत जैन और उनके सहयोगी Executive President संजीव शाह से बातचीत में पुष्प deal के कुछ हिस्से का payment cash में करने की बात करते है। जिस पर Sanjeev Shah और Vineet Jain पहले तो मना करते है लेकिन फिर cash की मोटी रकम को अलग अलग तरीको से route करने की सलाह देते है। इतना ही नहीं Sanjeev Shah last installment cash में लेने को भी राजी थे। विनीत जैन कहते हैं कि और भी businessmen होंगे जो हमें cheque देंगे आप उन्हें cash दे दो वहीं उनके सहयोगी शाह ने हमें बताया कि Who will take that from him in Delhi suppose if Goenka says I want it in Ahmedabad so that I Angadia will have contact in Ahmedabad where they will exchange in number on a note or whatever.” (दिल्ली में उससे कौन ले जाएगा मान लीजिए कि गोयनका कहते है कि मैं इसे अहमदाबाद में चाहता हूं ताकि मैं आंगड़िया अहमदाबाद में संपर्क कर सकूं जहां वे एक नोट या जो भी हो, पर नंबर का आदान-प्रदान करेंगे।)

इस तहकीकात के दौरान पत्रकार पुष्प ने कई बड़े मीडिया संस्थानों के मालिक और उनके वरिष्ठ अधिकारियों से बातचीत की। इन सबमें सबसे ज्यादा चौंकाने वाला खुलासा किया मंदा ताई ने। अपनी पार्टी की आलोचना करते हुए मंदा ताई ने दावा किया कि यह आरएसएस नेतृत्व ही था जिसने उन्हें NCP से हटकर बीजेपी में शामिल कराया और ऐसा करने पर बीजेपी की तरफ से पुणे के बेलापुर से विधायक का टिकट भी दिलाया। मंदा ताई ने जो खुलासा किया वो बेहद चौंकाने वाला था। बकौल मंदा ताई मेरे को संघ वाले बोल रहे थे कि मुस्लिम मस्जिद तोड़ो ये करो। मैं बोली sorry मैं ये नहीं कर सकती। मस्जिद स्थल सब कचरे के माफिक देखते हैं। इतना लोग का हम हाय नहीं ले सकते हैं क्योंकि अच्छे लोग अपने से जुड़ गए हैं।

हम ये अच्छी तरह से जानते हैं कि आरएसएस की विचारधारा के प्रति उनके निष्ठा के खुलासे को व्यक्तिगत राय के रूप में लिया जा सकता है लेकिन उनके संगठन में वो जिस मुकाम पर हैं उसे हल्के ढंग से नहीं लिया जा सकता है। इसकी वजह ये है कि अपने व्यवसायिक हितों को पूरा करने वाली इनकी सोच एक मीडिया संगठन की संपादकीय नीति पर बुरा प्रभाव डाल सकती है और ऑपरेशन 136 ने इसे एक बार फिर से पर्याप्त मात्रा में दिखाया है।

ऑपरेशन 136 के पहले भाग में इंडिया टीवी, दैनिक जागरण, हिंदी खबर, SAB टीवी, DNA (Daily News and Analysis), अमर उजाला, UNI, 9X Tashan, समाचर प्लस, HNN Live 24×7, पंजाब केसरी, स्वतंत्र भारत, ScoopWhoop, Rediff.com, इंडिया वॉच, आज और साधना प्राइम न्यूज़।

कैमरे के इन सब confessions से ये स्पष्ट हो जाता है कि paid news की खाई काफी गहरी हो गई है क्योंकि ये अब कुछ ऐसे व्यक्तियों तक ही सीमित नहीं रही जो paid content प्रकाशित करते समय समाचार कहानियों या रिपोर्ट के साथ छेड़छाड़ करते हैं। पिछले कुछ साल में paid न्यूज संस्थागत हो गई है तहकीकात में ये बात साफ हो गई क्योंकि न्यूज़ बिजनेस में ऐसा कोई भी एजेंडा मान्य नहीं है जो अत्यधिक सांप्रदायिक हो और किसी के लिए अपमानजनक हो और ना ही कोई अकेले ऐसा करने के लिए प्रतिबद्ध है विशेष रूप से जब पालन करने के लिए स्पष्ट कानून हैं और कानून के सख्त दिशानिर्देश हैं।

ऐसा करना आईपीसी की धाराओं के तहत दंडनीय अपराध है। इसके अलावा ये Prevention of Money Laundring Act 2002, Representation of the People Act 1951, Election Commission of India के Conduct of Election Rules 1961, Companies Act 1956, Income Tax Act 1961, Consumer Protection Act 1986  और Cable Television Network Rules 1994  का खुला उल्लंघन है। साथ ही ये तमाम कारनामे Norms and Journalistic Conduct of the Press Council of India जोकि 1978 में भारतीय संसद द्वारा प्रैस के watchdog के रूप में स्थापित किया गया था का भी खुले तौर पर उल्लंघन है। हालांकि कोई तर्क दे सकता है कि इस तरह का उल्लंघन काल्पनिक है फिर भी भारतीय मीडिया के तमाम तथ्यों को झुठलाना या अफवाहों को खबरों के रूप में पेश करना खासकर नागरिक संघर्षों के दौरान सांप्रदायिक भावनाओं को झुठलाना किसी बड़े अपराध से कम नहीं।

अन्य कानूनी प्रावधानों के अलावा समाचार प्रसारण परिषद प्राधिकरण के “Paid  न्यूज पर मानदंड और दिशानिर्देश” हैं और भारत की प्रेस काउंसिल के “पत्रकारिता आचरण 2010 के मानदंड” हैं। सभी मीडिया प्रतिष्ठानों से इनका पालन करने की अपेक्षा की जाती है। लेकिन क्या वे वास्तव में ऐसा करने की परवाह करते हैं? हमारी तहकीकात में जो जवाब में मिला है वो है नहीं

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