आख़िर क्यों हीरो बन गया पत्रकार गंगा किनारे वाला ?
आपने एक मिसाल क़ायम की थी,, वरना यहां तो पत्रकारों की समिति के चुनाव की बात तो दूर हो गयी लोग अपने पदों से ही चिपके है,,
जन्मदिन की दिली मुबारकां, भाई श्रीधर अग्निहोत्री

ऐसे वरिष्ठों, मठाधीशों, पद पिपासू के बीच में अपने श्रीधर भाई ने समिति के होने वाले चुनावों में किसी भी पद पर भाग न लेने का जो फ़ैसला किया है उसने उत्तर प्रदेश की पत्रकारिता में एक ऐसी मिसाल कायम की है जिसको आने वाले समय मे युवा पत्रकार साथी न सिर्फ इस परिपाटी का पालन करेंगे बल्कि पद पिपासू या कुर्सी चिपकासू की परंपरा को पूरी तरह समाप्त करेंगे।
श्रीधर भाई उत्तर प्रदेश की पत्रकारिता में पूरी तरह से खांटी पत्रकार के रूप में जाने जाते है, लखनऊ में अपना मकान ना होते हुए भी सरकारी मकान पाने के लिए प्रयासरत रहे खांटी पत्रकार श्रीधर भाई को आवास न मिल पाने की एक प्रमुख वजह यह भी है कि सरकारी मकान पर जब तक समिति के चंद पदाधिकारी काबिज़ रहेंगे तब तक शायद ही किसी जरूरतमंद युवा पत्रकार को सरकारी आवास आवंटन हो सके।
लखनऊ में सरकारी रियायती दरों पर भूखंड लेकर बड़ी-बड़ी हवेलियां तो बना ली है लेकिन अपने ही पत्रकार साथियों का हक मारने में कोई जवाब नहीं इसलिए चुनाव जीतना इनके लिए ज़ुन्दगी गुजारने का एक यंत्र है जो येन केन प्रकरेण जीतना चाहते है।
अपनी सारी परेशानियों, मुसीबतों को दरकिनार करते हुए श्रीधर भाई की कलम ने किसी तरह का कोई समझौता नही किया और यही वजह है कि आज किसी पहचान के मोहताज नहीं है, खबरों में गहराई, ईमानदारी, समझदारी ही उनकी पहचान है और नई पीढ़ी के पत्रकारों के लिए एक बड़े प्रेरणा सोत्र बने है श्रीधर भाई।

Loading...
loading...