चरणचुम्बन कलमकार और पत्रकारिता का दमन

अब तो जितना बड़ा पैसे वाला जितनी शान बान वाला उतना बड़ा पत्रकार चाहे कलम पकड़ने की तमीज न हो मोबाइल में बोल कर मैसेज करता हो मगर दिखावा वहीं जो दिखाई दे। सूचना से लेकर बैनर तक सभी चरणचुम्बन में लगे हुए हैं। सिर्फ कार्ड गले में टांग कर कलमकार बनने का शौक

कभी समय था चरणचुम्बन कलमकारों को स्पष्ट शब्दों में दलाल कहा जाता था।मगर तब इन की संख्या बहुत कम हुआ करती थी।और पत्रकारों की संख्या अधिक होती थी । परंतु शासन प्रशासन की अन्देखी ने कलमकारों की नस्ल खत्म करने के लिए ऐसे चरणचुम्बन कलमकारों को महत्व देकर निष्पक्ष कलमकारों को और उनके लेखों को दबा दिया है।अब तो जितना बड़ा पैसे वाला जितनी शान बान वाला उतना बड़ा पत्रकार चाहे कलम पकड़ने की तमीज न हो मोबाइल में बोल कर मैसेज करता हो मगर दिखावा वहीं जो दिखाई दे। सूचना से लेकर बैनर तक सभी चरणचुम्बन में लगे हुए हैं। सिर्फ कार्ड गले में टांग कर कलमकार बनने का शौक। अनुभव ,शिक्षा का कोई महत्व नहीं रहा।पैसा फेंको बैनर निकालो पैसा फेंको मान्यता प्राप्त करो।और प्रशासन पर धौंस जमा कर वसूली करो ।हद तो तब होती है जब सब्जी से लेकर चाय के ठेलों तक कलमकार की धौंस देते शर्म नहीं आती।शर्म बेच कर खाने वाले ही मीडिएटर बन सकते है।एक सच्चा कलमकार लिखना छोड़ सकता है मगर चरणचुम्बन कर कलम को बेच नहीं सकता।अब तो लोगों को अपराधी सिद्ध करने में भी कलमकारों का बड़ा योगदान रहता है। कभी पुलिस मुकदमे के बाद कलमकार मामले की अपने स्तर से जांच कर लेख या खबर प्रकाशित करते थे जो न्यायालय तक मान्य होती थी। परंतु अब तो बिना जांच पड़ताल के पुलिस के प्रेस नोट के सहारे चरणचुम्बन करते हुए तुरंत गुडवर्क की आड़ में कितनों की जिन्दगी बर्बाद करने वाले हरामखोर भी अपने को कलमकार कहते और डींगे हांकते नहीं थकते । दलालों के क्षेत्र बंटे हैं।अपने अपने क्षेत्र के ठेकेदार सुबह से देर रात तक अवैध खनन से 100या 500 रूपए की वसूली या लकड़ी काटने वालों से वसूली कर दलाली करने वाले जुआ,चकला,सट्टा,नशे की सामग्री बेचने वालों से वसूली कर अपना और बच्चों का पेट पालने वाले कलमकार कहे जा रहे हो तो कलमकार के लिए इस से ज्यादा शर्म करने वाली और क्या बात हो सकती है। पत्रकार के पेपर का पता नहीं पेपर है तो खबर का पता नहीं सूचना को कोई जानकारी नहीं बस हजार रुपए में कार्ड या मोबाइल में यू ट्यूब चैनल बनाया और बन गया कलमकार।शासन प्रशासन की उदासीनता ने कलमकारों के अस्तित्व को जिस प्रकार जानबूझ कर खतरे में डाला है आने वाले समय शासन यह शब्द का अर्थ ही कुछ और होगा। कुछ संस्थान इस मुद्दे को गंभीरता से लेकर इस क्षेत्र में कार्य करने की ओर अग्रसर है अभी प्रकाशन न करने की हिदायत के साथ एक कलमकार ट्रस्ट के चेयरमैन ने कहा जल्द ही इस मुद्दे पर चर्चा के बाद राज्यपाल महोदय को ज्ञापन सौंपा जाएगा और मुख्यमंत्री महोदय से भी मिल कर अपनी मान सम्मान की बात रखी जाएगी साथ ही अनुभव और शिक्षा के आधार से जांच कर पत्रकारों का चयन किया जाएगा साथ ही पत्रकार सुरक्षा कानून को प्रमुखता से लागू करने के लिए भी संवेधानिक लड़ाई भी लड़ी जाएगी। मौजूदा समय में कलमकारों का कोई मान सम्मान नहीं रहा लोग इन्हें गिरी हूई नजरों से देखते हैं।यह सब शायद चरणचुम्बन कलमकारों के कारण ही पत्रकारिता का दमन हो रहा है।

मो० ताहिर अहमद वारसी की कलम से

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