पकड़ा, मारा, लूटा, फूँक दी गाड़ी… हल्द्वानी हिंसा में चुन-चुन कर हिंदू पत्रकारों पर हुआ हमला

उत्तराखंड के हल्द्वानी हिंसा में दंगाइयों ने पत्रकारों को भी अपना निशाना बनाया। इस दौरान पत्रकारों के सिर पर वार हुआ, उनका हाथ तोड़ा गाय और पत्थर बरसाए गए। जान बचाकर भागे पत्रकार पूछते हैं कि जब उन लोगों की दुश्मनी पुलिस से थी तो वो हमारी हत्या क्यों करना चाहे थे।

हल्द्वानी हिंसा पत्रकारों पर हमलाउत्तराखंड के हल्द्वानी हिंसा में दंगाइयों ने पुलिस प्रशासन के अलावा घटना की रिपोर्टिंग कर रहे हिंदू पत्रकारों को भी अपना निशाना बनाया था। उन्होंने चुन चुन कर पत्रकारों पर वार किया था। उस दौरान किसी के सिर पर पत्थर मारे गए थे तो किसी का हाथ ही तोड़ दिया गया था। इनमें कुछ वो पत्रकार भी थे जो कोर्ट के विरुद्ध जाकर भी उन लोगों के साथ समय-समय पर खड़े रहते थे। अब उनका कहना है कि उनकी आँखे इस घटना से खुल गई हैं।

ऑपइंडिया के पत्रकार राहुल पांडे जब ग्राउंड पर हालात जानने गए तो उनकी मुलाकात इन पत्रकारों से हुई। इनमें एक अमृत विचार अखबार के पत्रकार संजय भी थे। संजय से जब हम मिले तो वो अस्पताल में भर्ती थे। रिपोर्टिंग के दौरान उन्हें सबसे ज्यादा घाव लगे। उनका हाथ भी फ्रैक्चर हुआ और सिर पर भी धारदार हथियार से मारा गया। अब प्रशासन उनका इलाज करवा रहा है। लेकिन उनके सामने से वो मंजर नहीं हट रहा जो उन्होंने रिपोर्टिंग के दौरान देखा।

बृजलाल अस्पताल में भर्ती संजय ने बताया कि जब अवैध मस्जिद गिराने की कार्रवाई शुरू हुई तो अचानक छतों से पत्थर आने लगे। उन्हें रोकने के लिए जब आँसू गैस के गोले छोड़े, लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा। एक डेढ़ घंटे बाद जब अंधेरा हुआ तो भीड़ आ गई। उन्होंने आग जलानी शुरू कर दी। जो बाहर निकलने के रास्ते थे उन्हें बंद कर दिए। उसके बाद चारों ओर से पत्थरबाजी होने लगी। फोर्स भी सोचने लगी कि ये तो हर जगह से पत्थर आ रहे हैं। इसके बाद आला अधिकारियों को कवर करके फोर्स ने बड़ी मुश्किल से वहाँ से निकाला। लेकिन तब तक पुलिस की गाड़ियों में भी आगजनी होना शुरू हो गई थी। पत्थरबाजी इतनी तेजी से हो रही थी कि वहाँ से निकलना मुश्किल था। पुलिस एक दूसरे के ऊपर से कुचल कुचल कर भाग रही थी।

संजय ने आपबीती सुनाते हुए कहा, “इसी दौरान हमें पकड़कर मारा गया। हमारा कैमरा छीना गया। मोबाइल निकाल लिया। घड़ी ले ली। गाड़ी फूँक दी। ये तो हमारा दूसरा जन्म मान लो। हम पर लाठी-डंडे, पत्थर से हमला हुआ था।”

संजय की वीडियो में देख सकते हैं कि पत्रकार के हाथ में फ्रैक्चर आया है। इसके अलावा सिर पर पीछे की ओर धारदार हथियार से वार भी किए गए हैं। उनकी हालत सुधरने में समय लगेगा। अस्पताल में उनके साथ उनकी पत्नी हैं जो रोते हुए बताती हैं कि वो वो अपने तीन बच्चे और सास को बिन बताए यहाँ (अस्पताल) में हैं। सास का हार्ट ऑपरेशन हुआ है इसलिए वो उन्हें कुछ नहीं बता सकती। वो बस चाहती हैं कि उनका पति जल्दी से जल्दी घर आ जाए।

जो पत्रकार खड़े थे साथ, उन्हें भी आईडी देख भीड़ ने बनाया निशाना

ग्राउंड पर रहने के दौरान राहुल पांडे उत्तराखंड के बनभूलपुरा में उत्तराखंड 24 के पत्रकार अतुल अग्रवाल से भी मिले। अतुल अग्रवाल वो स्थानीय पत्रकार हैं, जो पिछले साल कोर्ट की कार्रवाई के विरोध में मुस्लिम भीड़ के साथ खड़े थे। साथ ही कह रहे थे कि वो लोग मासूम हैं, उनको सजा न दी जाए। लेकिन इस बार की घटना के बाद उनकी सोच बदल गई।

उन्होंने कहा, “वो नजारा सोचकर भी रूह काँप जा रही है। हम वहाँ से जिंदा लौटकर आ पाए शायद हमने कोई अच्छे कर्म किए होंगे या फिर ऊपर वाले की मेहरबानी है। मामला शासन-प्रशासन का था। इसमें हमें क्यों टारगेट बनाया गया?” उन्होंने पत्थरबाजी से पिचका हेलमेट दिखाया और कहा- “अगर आज हेलमेट नहीं होता तो मेरा सिर खुला हुआ होता। वहाँ हैवानियत थी। पत्थबाजी लगातार हो रही थी।उन्हें बस हमें मारना था। पत्रकार पूछते हैं हमने ऐसा कौन सा गुनाह कर दिया। हम तो न्यूज बनाने गए थे।”

वह बताते हैं कि पिछले साल जब कोर्ट ने अतिक्रमण हटाने को कहा था तब वो इनके साथ खड़े थे कि ये लोग बेघर हो जाएँगे तो कहाँ जाएँगे। वह पूछते हैं- “जब हम उनके साथ खड़े थे तो ये हमारे साथ खड़े होने को क्यों नहीं निकले। वहाँ पत्थर ऐसे आ रहे थे जैसे आँधी के बाद बारिश आती है… बस जिंदा बचे हम इसके लिए भगवान को शुक्रिया करते हैं।”

उन्होंने कहा- “जैसा व्यवहार हमारे साथ हुआ है उसके बाद टीस हमारे मन भी है। घटना के बाद किसी ने सॉरी नहीं बोला। हमारे साथ दूसरे समुदाय के पत्रकार भी थे। लेकिन किसी को खरोंच भी नहीं आई। आप सब अस्पताल घूम लीजिए वहाँ जितने पत्रकार भर्ती हैं उनसे पूछ लीजिए उनका नाम पता कर लीजिए, हमें कुछ कहने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी।”

पत्रकार अतुल अग्रवाल ने यह भी दावा किया कि दंगाई भीड़ नाम पूछकर हमला कर रही थी। आईकार्ड देख रहे थे। उसके बाद टारगेट किया जा रहा था। ये बहुत अमान्य घटना है। बहुत क्रूर घटना है। चौथे स्तंभ के संग अगर ऐसा होगा तो उनसे क्या उम्मीद रखेंगे। उन्होंने कहा कि घटना के बाद उनका नजरिया बदल गया। अतुल कहते हैं- “हमने बस सुना था कि इस तरह हमला होता है। आज देखा। अगर चौथे स्तंभ पर ऐसा हमला होगा तो आप उससे क्या उम्मीद रखेंगे। उनकी लड़ाई शासन-प्रशासन से थी। हमें क्यों मारा।”

अतुल अग्रवाल ने द वायर जैसे संस्थानों को भी लताड़ा जो कार्यालय में बैठ दंगाई भीड़ को क्लीन चिट देने में लगे हैं। उन्होंने कहा- “अगर ये (द वायर जैसे संस्थान) लोग ग्राउंड पर होते तो देखते कि इनकी मासूमियत क्या होती है। हमसे पूछो क्या था मंजर। वो तो दिल्ली में बैठकर बस न्यूज चला रहे हैं। यहाँ आकर ग्राउंड पर देखो न। क्या ऐसे होते हैं मासूम लोग? क्या वो ऐसे करते हैं? मेरे तीन बच्चे हैं। अगर कुछ हो जाता तो मेरा परिवार कौन पालता। हमने कल्पना भी नहीं की थी कि ये मंजर देखने को मिलेगा। हम लोग भाईचारा निभाते हैं, उन्हें आगे रखते हैं लेकिन अब इन चीजों पर विचार करना पड़ेगा।”

भीड़ के निशाने पर थे पुलिस और मीडिया

बता दें कि इससे पहले भी खबर आई थी कि 8 फरवरी को हल्द्वानी हिंसा में दंगाइयों के निशाने पर पुलिस के साथ मीडियाकर्मी भी थे। हिंसा पीड़ित पत्रकार मुकेश सिंह ने भी कहा पुलिस और मीडिया को निशाना बनाने की योजना पहले ही बना ली गई थी। मुकेश ने जानकारी दी थी कि कैसे अवैध अतिक्रमण ध्वस्त करने की कार्रवाई के बाद भीड़ ने पुलिस और मीडिया को निशाना बनाया। उनको घेरकर पत्थरबाजी की गई और पेट्रोल बम फेंके गए।

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