₹200 की चोरी पर 1 साल की जेल, 2 इंजीनियरों को कुचलने पर रईसजादे को बेल, कहा- हादसे पर लिखो लेख: यह न्याय है या पीड़ित परिवारों के जख्म पर नमक?
नाबालिग को जमानत दिए जाने की शर्तें क्या थीं। ये 'भारी-भड़कम' शर्तें थीं - इस दुर्घटना पर एक लेख लिखो, 15 दिन के लिए ट्रैफिक पुलिस के साथ काम करो, शराब की लत छोड़ने के लिए डॉक्टर की मदद लो, और मनोचिकित्सक से काउंसिलिंग लेकर उसकी रिपोर्ट सबमिट करो।
महाराष्ट्र के पुणे में पोर्शे लक्जरी कार की टक्कर से एक युवक और एक युवती की मौत हो गई। दोनों ने इस हादसे से कुछ मिनट पहले तक सोचा भी नहीं होगा कि अनीस अवधिया और अश्विनी कोस्टा, दोनों ही मृतक सॉफ्टवेयर इंजीनियर थे। घटना कल्याणी नगर क्षेत्र की है। असली खबर ये है कि भद्दे तरीके से कार चलाने वाला एक नाबालिग था। इससे भी बड़ी बात ये है कि उसने उस समय शराब पी रखी थी। इससे भी बड़ी बात ये है कि उसके बिल्डर पिता ने उसके हाथ में 3 करोड़ रुपए की कार दे दी। इन सबसे बड़ी खबर ये है कि कुछ ही मिनटों बाद वो जमानत पर रिहा हो गया।
एक बार में पार्टी के बाद उक्त नाबालिग लड़का लौट रहा था। उसके साथ उसके दोस्तों का एक समूह था। हालाँकि, मौके पर आक्रोशित लोगों ने उसकी धुनाई तो की लेकिन पुलिस और न्यायपालिका उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाई। घटना का वीडियो भी सामने आया। नाबालिग की उम्र मात्र 17 वर्ष है। दोनों सॉफ्टवेयर इंजीनियर बाइक पर सवार थे, तभी पोर्शे ने पीछे से टक्कर मारी। रात के ढाई बजे हुई इस घटना के दौरान कार इसके बाद एक अन्य गाड़ी से टकराई, फिर पार्किंग में खड़ी एक बाइक इसकी जद में आ गई।
पुणे में नाबालिग ने पोर्शे से कुचल कर युवक-युवती को मार डाला
मामला यरवदा पुलिस थाना क्षेत्र का है। अनीश अवधिया और अश्विनी कोस्टा की उम्र 24 वर्ष थी। मौके पर ही इन दोनों की मौत हो गई। दोनों ने मध्य प्रदेश के जबलपुर के रहने वाले थे और उन्होंने पुणे में कम्प्यूटर साइंस से इंजीनियरिंग की थी। इसके बाद उनकी नौकरी भी लग गई थी। ये दोनों एक रेस्टॉरेंट में पार्टी के बाद लौट रहे थे, उनके साथ अन्य बाइकों से उनके दोस्त थे। कार ने इन दोनों को कुचलने के बाद सड़क के किनारे बनी रेलिंग को भी क्षतिग्रस्त कर दिया।
नाबालिग के खिलाफ लापरवाही और उतावलेपन के साथ ड्राइविंग का मामला दर्ज किया गया। साथ ही उस पर अन्य लोगों के जीवन को खतरे में डालने और नुकसान पहुँचाने का मामला भी दरक किया गया। नाबालिग को ‘जुवेलाइन जस्टिस बोर्ड (JJB)’ के समक्ष पेश किया गया। जहाँ कुछ मामूली शर्तों के साथ उसे तुरंत ही रिहा कर दिया गया। हालाँकि, किशोर के पिता के खिलाफ उसे कार चलाने की अनुमति देने का मामला दर्ज किया गया है।
तुरंत मिला जमानत: न्यायपालिका पर उठ रहे हैं सवाल
अब आइए, बताते हैं कि नाबालिग को जमानत दिए जाने की शर्तें क्या थीं। ये ‘भारी-भड़कम’ शर्तें थीं – इस दुर्घटना पर एक लेख लिखो, 15 दिन के लिए ट्रैफिक पुलिस के साथ काम करो, शराब की लत छोड़ने के लिए डॉक्टर की मदद लो, और मनोचिकित्सक से काउंसिलिंग लेकर उसकी रिपोर्ट सबमिट करो। ये थी 2 युवाओं के हत्यारे एक शराबी ड्राइवर को मिली ‘कड़ी सज़ा’। इसके बाद सवाल खड़े हो गए हैं कि क्या न्यायपालिका को पूरी तरह से सुधार की आवश्यकता है?
परिस्थिति को थोड़ा पलट कर देखिए। क्या मृतकों में अगर कोई रसूखदार परिवार का होता और ये दुर्घटना किसी ग़रीब ट्रक ड्राइवर से हुई होती तो क्या उससे भी लेख लिखवा कर उसे छोड़ दिया जाता? आजकल 17 वर्ष की उम्र में लड़के-लड़कियाँ पब में पार्टी कर रहे हैं, बाइक-कार चला रहे हैं, सामान्य वयस्क की तरह रह रहे हैं और यहाँ तक कि शारीरिक संबंध भी बना रहे हैं, ऐसी स्थिति में ऐसे अपराध को अंजाम देने वाले के साथ नर्सरी के बच्चे की तरह व्यवहार करना कहाँ तक उचित है?
चूँकि नाबालिग का पिता रसूखदार है, इसीलिए उसने थाने में आने तक की जहमत नहीं उठाई भले ही उसके खिलाफ FIR ही क्यों न दर्ज हो गई हो। इसका कारण ये है कि न्यायपालिका को नचाने के हथियार इनलोगों के पास हैं। बड़े वकील हैं, पैसा है, प्रभाव है, संपर्क है और फैला हुआ कारोबार भी है। जो 2 लोग इस घटना में मारे गए, उनके परिवारों के बारे में सोचिए। पढ़ा-लिखा कर इंजीनियर बनाया, अब शादी-विवाह वगैरह किए जाते, उन परिवारों के सारे अरमान मिट्टी में मिल गए।
रसूखदार और अमीर परिवारों के लिए अलग हैं नियम-कानून?
इसे एक जघन्य वारदात बताते हुए पुलिस ने नाबालिग की कस्टडी की भी माँग की है। जमानत के इस आदेश के खिलाफ अब पुलिस सेशन कोर्ट जाएगी। कार में नंबर प्लेट तक नहीं थी। ACP स्तर के अधिकारी को मामले की जाँच सौंपी गई है। रोड सेफ्टी के लिए काम करने वाले NGO के संचालक अनुराग कुलश्रेष्ठ ने कहा कि हम एक अनुशासनहीन समाज में रह रहे हैं जहाँ सड़क के कानूनों के लिए कोई जगह नहीं है। उन्होंने कहा कि पुणे में ट्रैफिक पुलिस की स्थिति ये है कि हेलमेट को लेकर चेकिंग अभियान शुरू किया गया तो कई राजनीतिक दल इसके विरोध में उतर गए।
प्रशांत पाटिल बॉम्बे हाईकोर्ट के अधिवक्ता हैं। कॉर्पोरेट और बैंकिंग धोखाधड़ी से लेकर घरेलू व अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता तक के मामलों को देखते रहे हैं। बतौर क्रिमिनल लॉयर भी काम कर चुके हैं। सावित्रीबाई फुले यूनिवर्सिटी से संबद्ध पुणे स्थित पद्मश्री DY पाटिल कॉलेज ऑफ लॉ और मुंबई यूनिवर्सिटी से उन्होंने कानून की पढ़ाई की है। वहीं आबिद मुलानी भी बड़े वकीलों में से एक हैं। क्या कोई साधारण व्यक्ति नामी वकीलों को हायर करने की सोच भी सकता है?
न्यायपालिका में सुधार की बातें इसीलिए भी की जा रही हैं, क्योंकि इसका दोहरा रवैया इस मामले में सामने आता रहता है। दिल्ली में एक लड़के को 200 रुपए की चोरी के आरोप में 1 साल जेल की सज़ा काटनी पड़ी। भारत की जेलों में 9681 ऐसे बच्चे रह रहे हैं, जिन्हें वयस्कों की जेलों में डाल दिया गया है। यहाँ तक कि लड़कियाँ भी इनमें शामिल हैं। सुप्रीम कोर्ट के जज इसके लिए राज्यों को दोषी ठहराते हैं। लेकिन, जब आरोपित रसूखदार और अमीर परिवार का हो तो भेदभाव क्यों?
क्या कहते हैं अधिवक्ता
ये तो एक तरह से उन दोनों मृतकों के परिवारों के जख्म पर मरहम लगाने की बजाए नमक छिड़कने जैसा हुआ। हमने इसके कानूनी पहलुओं को समझने के लिए सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता शशांक शेखर झा से बातचीत की। उन्होंने कहा कि भारत में 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों की संलिप्तता वाले मामलों में 3 तरह के केस लगाए जाते हैं – Petty (छोटे), Serious (गंभीर) और Heinous (घृणित)। उन्होंने बताया कि गंभीर मामलों में 7 साल तक की सज़ा होती है, छोटे वाले में 2 साल तक की और 7 साल से ऊपर सज़ा वाली को ‘Heinous’ की श्रेणी में डाला जाता है।
उन्होंने समझाते हुए कहा कि मायने ये रखता है कि FIR में जो धाराएँ लगाई गई हैं वो किस कैटेगरी में आती हैं इन तीनों में से। उन्होंने बताया कि 2015 में एक मूवमेंट के बाद कानून में संशोधन हुआ और JJD (जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड) को ये अधिकार दिया गया कि अगर नाबालिग की उम्र 16-18 है तो गंभीर मामलों में उस पर बालिग़ की तरह मुकदमा चलाया जाए। उन्होंने बताया कि ऐसे मामलों में 304 लगाया जाता है, जिसमें सज़ा 10 साल तक की है जबकि 304A में 2 साल तक की सज़ा मिल सकती है।
बताते चलें कि पुणे वाले मामले में पुलिस ने 304A धारा लगाई है। उन्होंने बताया कि लापरवाही से खतरनाक ड्राइविंग के मामले में 304 लगाया जाता है, जब मामला गंभीर हो। उन्होंने उदाहरण देकर समझाया कि 304A तब लगाया जा सकता है जब किसी ने ट्रैफिक लाइट जंप किया और किसी गाड़ी की चपेट में आने के कारण उसकी मौत हो गई। उन्होंने बताया कि कैसे मीडिया में चल रहा है कि FIR दर्ज करने में कोताही बरती जा रही थी और गवाहों से ही सही व्यवहार नहीं किया गया।
Dear @ArshadWarsi @akshaykumar: make Jolly LL.B on road rash of Pune where 17 year old killed 2 people.
Police threatened witness of alcohol test while serving Pizza to accused.
Judge granted bail to accused with condition: Write essay on accident.@AdvaitaKala @RanvirShorey pic.twitter.com/hOKpg6Hqiq
— Shashank Shekhar Jha (@shashank_ssj) May 20, 2024
पालघर में साधुओं की मॉब लिंचिंग के मामले में उन्हें न्याय दिलाने में सक्रिय रहे शशांक शेखर झा ने पुणे वाले मामले को लेकर पुलिस की मंशा पर भी सवाल उठाए और पूछा कि अगर वो चाहती है कि नाबालिग को बालिग की तरह ट्रीट किया जाए तो उस पर कमजोर धाराएँ क्यों लगाई गईं? साथ ही उन्होंने पूछा कि जज ने तुरंत जमानत कैसे दे दी? उन्होंने कहा कि इस मामले को लेकर गलत सन्देश गया है। उन्होंने ध्यान दिलाया कि लोगों ने आरोपित को पकड़ लेने के बावजूद उसे पुलिस को सौंप दिया और न्याय व्यवस्था पर भरोसा जताया, कहीं उनका ये भरोसा भविष्य में खत्म हुआ तो ये लोकतंत्र के लिए ये ठीक नहीं होगा।