हरेप्रकाश और प्रधान संपादक सुभाष राय में वेतन को लेकर फेसबुक पर छिड़ा शीतयुध्द

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जनसंदेश टाइम्स की ओर से मेरा बकाया वेतन 15 सितंबर से पहले देने का भरोसा दिलाया गया था, पर वह दिन भी गुजर गया। अब वहाँ के महाप्रबंधक विनित मौर्या ने फोन बंद कर लिया है या जो मेरे पास नंबर है, उसे बदल लिया है। एचआऱ का काम देखने वाला लड़का मेरा फोन नहीं उठा रहा। दफ्तर के बेसिक नंबर पर बात करने की कोशिश की, तो बहुत देर फोन होल्ड कराने के बाद कह दिया गया कि जीएम सीट पर नहीं हैं। एक अखबार चलाने वाली कंपनी इतनी नीचता पर उतर आएगी, आप कल्पना भी नहीं कर सकते। बताया जा रहा है कि यह सब कुछ संपादक सुभाष राय के इशारे पर हो रहा है। जिस दिन मैंने अखबार छोड़ा था, उस दिन विनित मौर्या ने कहा भी था कि संपादक के कहने के बाद आपका चेक बना दिया जाएगा। मुझे अब क्या करना चाहिये….
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  • Vinayak Rajhans and 158 others like this.
  • Dheeraj Tagra labour court jaaoo sir
    9 hours ago · Like · 2
  • Mahandra Singh Rathore subash ray saheb to aapke bare mai bahut kuch accha likhte rehe hain.See Translation
    9 hours ago · Like · 1
  • DrSony Pandey अदालत जाऐँ , इनका यही इलाज हैSee Translation
    9 hours ago · Like · 1
  • 9 hours ago · Like · 1
  • Nirdesh Nidhi भारतीय विधि ।
    जो आपको दस बीस बरस में संभवतः कुछ करने का संकेत कर पाए।
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    9 hours ago · Like · 2
  • Rajiv Trivedi Har jagah paise ka bolbaala h sir
    8 hours ago · Like · 1
  • Anita Srivastava Harai Je aap Kavi maan kai hai apas mai melkar baat kar leejeai..restai bhauat muskil sai bantai hai tutai jaldi.aap kai kismat hoga jarur meelaiga.maehnat ka paisa khe nhe jata.See Translation
    8 hours ago · Like · 1
  • Siddhant Mohan पहले तो सारे नंबर यहां साझा करियेSee Translation
    8 hours ago · Like · 1
  • Hareprakash Upadhyay Anita जी, मैंने सुभाष राय से बार-बार आग्रह किया कि यह मामला शांतिपूर्वक सुलझा लीजिये, जबकि लंबे समय तक वेतन मिलने और जरूरी काम के लिए अवकाश न मिलने के कारण उनको बताकर सहमित से ही मैंने नौकरी छोड़ीSee Translation
    8 hours ago · Edited · Like · 1
  • Hareprakash Upadhyay अखबार का नंबर है- 05222288868See Translation
  • Siddhant Mohan एचआर सम्पादक और बकिया सभी जिम्मेदार लोगों के…..और नंबर मिल जाने के बाद ऊपर कमेन्ट कर रहे लोगों से आग्रह है कि अपना थोड़ा समय लगाकर उन नंबरों पर पैसा न देने का कारण पूछें।See Translation
    8 hours ago · Like · 2
  • Anita Srivastava Koi misunderstanding ho ge hogi aap shan’t rhkar bhe baat kar saktai.post daikh rhai hai sb apna nagtive thought deeai. Aap ka sb kam ho jaiga. Acchai Kavi hai laikhk hai samman mel rhai bhumukhi pratibha hai.aap ko Jo accha lagai whe kareai.
    8 hours ago · Like · 1
  • Hareprakash Upadhyay उस नंबर पर संबंधित लोगों से बात हो सकती है, अगर वे बात करना चाहें। अगर बात नहीं होगी तो फिर मोबाइल नंबर भी जारी करूंगाSee Translation
  • Alaka Sharma Aap patrakarita se jure hue hain.Aapka ek ek shabd wazan rakhata hai,isliye aap abhi site ya open media me kuchh na kahiye. Aapka sampark local kaddawar logon se bhi hoga jo aapke common parichit honge…unka sahyog lijiye..Wahan koi na koi zaroor apka saath dega.sachchai zaroor jitegi.Wish you all the best.See Translation
    8 hours ago · Like · 2
  • Giriraj Kishore प्रबंधन , व्यवहार की सीमा न पार करें तो बेहतर है।See Translation
    8 hours ago · Like · 2
  • निर्मल गुप्त हरेप्रकाश जी ने पहले लिखा -बताया जा रहा है कि यह सब कुछ संपादक सुभाष राय के इशारे पर हो रहा है। उन्होंने फिर लिखा -जबकि लंबे समय तक वेतन मिलने और जरूरी काम के लिए अवकाश न मिलने के कारण उनको बताकर सहमित से ही मैंने नौकरी छोड़ी | क्या सुभाष राय जी अखबार के मालिक हैं ? वह वेतन क्यों नहीं मिलने दे रहे ? क्या उनको अपना वेतन निरंतर मिल रहा है ?See Translation
    7 hours ago · Like · 2
  • Asha Upadhyaya कोशिश बन्द नहीं करनी चाहिए।मीडिया हाउस बाहर से जितना जिम्मेदार दिखता है अन्दर से उतनी ही गैर जिम्मेदाराना हरकतें करता है।पत्रकार सबके लिए लड़ते हैं पर उनकी लड़ाई लड़ने वाला कोई नहीं।यही इस पेशे का सच है।See Translation
    7 hours ago · Like · 4
  • Ganga Pd Sharma पत्रकार जब बाहर की दुनिया से लड़ सकता है तो उसे भीतर की लड़ाई लड़ने से नहीं डरना चाहिए .हरे प्रकाश जी! आप यह लड़ाई लड़ते रहिए.मैं मानता हूँ कि व्यक्ति से व्यस्था का तंत्र ताकतवर होता है लेकिन जब उसमें बेईमानी समा जाती है तो जंग भी लगती है.जंग लगी व्यवस्था से लड़ना आसान हो जाता है.अभी आपको तकलीफ़ होगी बाद में इसमें सहज अनुभव करेंगे.अधिक से अधिक नुकसान क्या होगा?इसका अनुमान तो आपको होगा ही .आप उस नुकसान को लड़ाई का खर्च मानकर लड़ते रहें.अंततः जीत आपकी ही होनी है.ऐसे ही संघर्षों से आपका रचनाकार और पुष्ट होगा.कोई बखेड़ा खड़ा होता है, होने दीजिए,ज़्यादा से ज़्यादा क्या होगा?यही न कि एक और ‘बखेड़ापुर’आ जाएगा. मैं अलका शर्मा जी की राय से बिल्कुल असहमत हूँ.अन्याय को दलालों के माध्यम से कभी दूर नहीं किया जा सकता है.इसके लिए ताल ठोंक कर खड़े होने की ज़रूरत होती है.जब मीडिया नहीं सुनेगा तो बात कहीं न कहीं तो रखनी पड़ेगी .सोसल मीडिया भी तो एक प्रकार का मीडिया ही है.बड़े-बड़े राजनीतिक दल और संस्थान इसको सलाम ठोंकते हैं तो एक व्यक्ति चाहे वह संपादक हो या मालिक उसको भी इसकी शक्ति का अहसास कराना ही होगा. वरिष्ठ लोगों से अनुरोध है कि एक ईमानदार युवा लेखक को ग़लत राह न सुझाएँ. ईमानदारी,साहस और मूल्यों के प्रति निष्ठा ही लेखक की ताकत होते हैं.हरे प्रकाश जी सही हैं.उन्हें लड़ने दीजिए .हो सके तो समर्थन देकर नैतिक सहयोग कीजिए डराइए नहीं.See Translation
    7 hours ago · Like · 2
  • Ashutosh Singh मीडिया में इतना हेय आचरण करता है।वह क्या चौथा खंबा बनेगा?See Translation
    5 hours ago · Edited · Like · 1
  • Hareprakash Upadhyay निर्मल गुप्त जी, प्रंबधन की नजर में अपना नंबर बढ़वाने के लिए सुभाष राय जी अपने सहयोगियों के साथ प्रबंधन की ज्यादती को शह दे रहे हैं।See Translation
    5 hours ago · Edited · Like · 1
  • Subhash Rai हरेप्रकाशजी अब गाली-गलौज की भाषा पर उतर आये हैं। यही उनकी मेधा की सीमा है। यह उनकी मूल भूमि है। ऊपर उठकर भी वे इसी में बार-बार गिरते हैं। वे खुद अपनी फेसबुक वाल पर घोषणा करते हैं कि उन्हें 15 सितंबर तक उनका पैसा देने का आश्वासन दिया गया है और 15 तक भी इंतजार नहीं करते। समय पूरा होने के एक हफ्ते पहले ही मुझे मेसेज भेजकर धमकी देते हैं कि जल्द मेरा हिसाब कर दें, मैं विवाद नहीं चाहता, इस मामले को कहीं और नहीं ले जाना चाहता, मैं नहीं चाहता कि शहर में कोई नाटकीय परिस्थिति पैदा हो। यह चालाकी है, धमकी है या मतिभ्रम है, मेरी समझ में नहीं आता। शायद आप सब समझ सकें। वे मोबाइल पर इस्तीफा देते हैं, फेसबुक पर हिसाब मांगते हैं। उन्हें मालूम होना चाहिए कि हिसाब-किताब की एक प्रक्रिया होती है। उन्हें मालूम होना चाहिए कि नौकरी एक मेसेज देकर नहीं छोड़ी जाती है, उसके लिए संस्थान को एक माह पहले सूचना देनी होती है। वे कुछ भी नहीं जानते हों, ऐसा नहीं है। कम से कम उन्हें मेरे इशारे की अहमियत तो मालूम है।See Translation
    6 hours ago · Like · 1
  • Hareprakash Upadhyay श्री सुभाष राय जी, मैंने गाली-गलौज कभी नहीं की, मजदूरी माँगना आपको गाली-गलौज लगता है। 15 सितंबर गुजर जाने के बाद मैंने इस मामले को फेसबुक पर लिखा है। मैंने मेल कर इस्तीफा दिया है। जो संस्थान चार महीने से वेतन नहीं दे रहा हो, उसके लिए नोटिस की कितनी अपरिहार्यता रह जाती है, यह चालाकी आप भी खूब समझते हैं। मैं बिल्कुल चाहता था कि यह मामला शांतिपूर्वक सुलझ जाय, पर बार-बार हिसाब माँगने पर आप लोगों ने जो व्यवहार किया और 15 सितंबर की अंतिम तिथि देकर भी भुगतान नहीं किया। मेरे फोन तक जवाब नहीं मिला, मुझे आपकी तरफ से फोन तक नहीं आया तो मेरे पास चारा ही क्या रह जाता था। मैं अभी भी चाहता हूँ कि मुझे कानूनी सहायता न लेनी पड़े और बात बातचीत से ही सुलझ जाये और बात क्या सुलझनी है, साफ बात है कि काम किया है, उसकी बकाया मजदूरी दे दी जाय।See Translation
    6 hours ago · Like · 3
  • Subhash Rai एक अखबार चलाने वाली कंपनी इतनी नीचता पर उतर आएगी, आप कल्पना भी नहीं कर सकते या अपना नंबर बढ़वाने के लिए सुभाष राज जी अपने सहयोगियों के साथ प्रबंधन की ज्यादती को शह दे रहे हैं……….यह सब क्या है। जो भाषा और साहित्य की बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, वे क्या इसे आप्त वचन कहेंगे।See Translation
  • Hareprakash Upadhyay संस्थान छोड़ने का किस्सा यह है कि मुझे बहुत जरूरी कारणों से अचानक दो दिन के लिए गाँव जाना पड़ा और उसके बाद मुझे ज्ञानपीठ नवलेखन पुरस्कार लेने दिल्ली जाना था। मैंने इसके लिए संपादक को मैसेज कर छुट्टी की दरख्वास्त की। उन्होंने प्रबंधन के माध्यम से मुझे एक मैसेज कराया कि आपकी छुट्टी रद्द की जाती है। एक तो कई महीनों से लगातार वेतन नहीं मिल रहा था, दूसरे छुट्टी भी न मिलने से खफा होकर मैंने उस मैसेज का जवाब यह लिखकर दिया कि अगर छुट्टी नहीं दे सकते तो मेरा हिसाब किताब कर दिया जाय। यह 27 अगस्त की घटना है। उस मैसेज का तत्काल मुझे जवाब मिला कि आप आयें और अपना बकाया ले जाएं। मैं पुरस्कार लेकर लौटा तो अखबार के जीएम विनित मौर्या से मिला, उन्होंने कहा कि आधे घंटे में आपका चेक बना दिया जाएगा, आप संपादक से मिल लें। मैंने जब संपादक से मुलाकात की, तो वे भी तैयार थे। उन्होंने कहा कि समकालीन सरोकार में आपको जो वेतन मिला था, उसमें से अंतिम दो महीने का वेतन मुझे वापस कर दीजिये, बाद में जरूरत हो तो भले आप ले लें। मैंने कहा कि समकालीन सरोकार में आपने मुझे काम करने के लिए इसीलिये रोका था कि प्रतिमाह बीस हजार देंगे। उन्होंने कहा कि नहीं उस पत्रिका में कोई फायदा नहीं हो रहा था और वे पत्रिका बंद कर देंगे तथा आजीवन व संरक्षक सदस्यों का पैसा लौटाएंगे। तथा प्रतिमाह प्रंबंध संपादक की ओर से मिलने वाला पैसा पचीस हजार रुपया भी वापस कर देंगे, तो फिर मैं इस बात के लिए भी राजी हो गया कि मेरे हिसाब में से आप चालीस हजार काट लें। उन्होंने कहा कि आपका चेक बन जाएगा एक-दो दिन में। फिर चार दिन बीतने पर कोई रेस्पांस नहीं मिला तो मैंने मोबाइल संदेश भेजकर निवेदन किया कि मैं विनम्रतापूर्वक चाहता हूँ कि मेरा भुगतान कर दिया जाय और इस मामले का निपटारा शांतिपूर्वक हो जाय, इसका जवाब उन्होंने बहुत खराब ढंग से देते हुए कहा कि धमकी मत दीजिये। इसके बाद प्रबंधन से फोन आया कि 15 सितंबर तक अंतिम तिथि है, इसके पहले आपका भुगतान कर दिया जाएगा। इसके आगे का किस्सा मैंने ऊपर बताया ही है।See Translation
    2 hours ago · Edited · Like · 2
  • Hareprakash Upadhyay क्या यह कर्मियों के साथ ज्यादती नहीं है…?यह मेरे साथ ही नहीं, इधर जितने लोगों ने छोड़ा, सबके साथ यही हुआ।See Translation
    5 hours ago · Edited · Like · 1
  • Subhash Rai इस्तीफे मोबाइल और फेसबुक पर घोषित नहीं होते। हरेप्रकाश ने न संस्थान को नोटिस दिया, न इस्तीफा। जिम्मेदार पद पर रहते हुए मुझे एक मेसेज करके 10 दिन के लिए गायब हो गये। दो-तीन दिन पहले 6 या सात सितंबर को लौटे तो अपना फैसला सुना कर चले गये। आठ को मुझे फोन किया तो मैंने कहा कि जो भी पैसे तुम्हार बनेंगे, मिल जायेंगे। कोई संस्थान दो दिन में हिसाब नहीं करता, वो भी तब जब आप अपनी मर्जी से बिना कोई औपचारिक सूचना दिये गये हों। जब मुझसे उनकी बात हो गयी तो थोड़ी प्रतीक्षा करनी चाहिए थी लेकिन उसकी जगह, उसी दिन उन्होंने मुझसे मोबाइल पर जिस धमकाने वाले अंदाज में बात की, वह अद्भुत था। पूर पूरी बातचीत आप भी देखिये

    हप्र- महोदय बहुत विनम्रता से निवेदन है कि 4 महीने का जो हिसाब है, उसे बिना किसी विवाद के कर दें। यही सबको हित में होगा। मैं इस प्रकरण को कहीं और नहीं ले जाना चाहता, शांतिपूर्ण ढंग से खत्म करना चाहता हूं।

    सुभाष-विनीतजी से कह दिया है, उनसे बात करें और धमकी देने से बचें

    हप्र- धमकी नहीं है महोदय। यह तो निवेदन ही है। काम किया है तो मजूरी बनती है। समकालीन सरोकार में काम कराकर 3 महीने का वेतन आप ने नहीं दिया। 

    सुभाष- मैं इन बेकार की बातों में अपना समय नष्ट नहीं करना चाहता।

    हप्र- मैं भी चाहता हूं कि काम से काम, संवाद की गुंजाइश बची रहे और यह प्रकरण शहर में नाटकीय रूप न ले। 

    सुभाष- फिर कहता हूं धमकी देने से बचें। 

    हप्र- फिर कहता हूं कि यह धमकी नहीं है, यह हकीकत है। 

    अब जिसे वे इस्तीफा कह रहे हैं, वह ये है—–

    सुभाष-समझते रहो हकीकत।

    हप्र-ठीक है। 

    अब जिसे वे इस्तीफा कह रहे हैं, उसे भी देखिये—-

    महोदय,
    लंबे समय तक वेतन भुगतान न होने के कारण व जरूरी कार्य हेतु अवकाश न दिये जाने की स्थिति में गत 27 अगस्त को मोबाइल संदेश से मैंने अपना इस्तीफा आपको व संस्थान के महाप्रबंधक को भेज दिया था, जिस पर आपने मोबाइल संदेश के माध्यम से ही अपनी सहमति भी जताई थी। फिर पाँच सितंबर को मिलकर भी मैंने अपनी इच्छा से आपको अवगत करा दिया था और आपने आश्वस्त किया था कि एक-दो दिन में चार महीने के मेरे बकाया वेतन का शीघ्र भुगतान कराने की कार्यवाही करेंगे। पर अब तक उसका पालन नहीं हुआ है।
    मैं निवेदन करता हूँ कि एक सप्ताह के भीतर मेरा बकाया भुगतान कराने का कष्ट करें।
    भवदीय

    वे मोबाइल पर इस्तीफा देते हैं।
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  • Sudhanshu Upadhyaya सुभाष जी, हरेप्रकाश जी,
    आप दोनों अपने- अपने क्षेत्र में सम्मानित और विश्वसनीय हैं. इस आरोप- प्रत्यारोप में आप दोनों हलके हो रहे हैं आैर प्रकरण उलझ रहा है. मिल जुल कर निपटारा करना ही आप दोनों की गरिमा के अनुकूल होगा.
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    5 hours ago · Like · 4
  • Hareprakash Upadhyay श्री सुभाष राय जी, मैंने मेल किया है यह इस्तीफा आपको और विनित मौर्या दोनों को। और धमकाने वाले अंदाज में कभी बात नहीं किया। हमेशा निवेदन किया। जब पाँच सितंबर को मिला था आपसे और आपने कहा कि एक-दो दिन में हिसाब हो जाएगा। तब आपने नहीं कहा कि कागज पर डॉट पेन से लिखकर इस्तीफा दो। तब तो आपने मेरी मजदूरी काटने भर की बात की।See Translation
  • Vinayak Rajhans मेरा भी दो महीने का वेतन जनसंदेश टाइम्स ने नहीं दिया है. मेहनत के पैसे हैं सर, ऐसे नहीं छोड़ सकते. इसे तो हासिल करके ही रहेंगे. तरीके बहुत से हैं…..See Translation
    5 hours ago · Like · 1
  • Nazm Subhash bhai

    apko ekbar jansandesh tims me jakar waha ke prbandhan se bat karni chahiye

    abhi subhash rai ka comment aya he ki apne email par suchna di fb pe hisab mang rhe he

    esi ko dhyan me rakhte hue 
    apko amne samne bat karni chahiye

    jb tb b bat n bane to kanuni karywahi b karna thik rhega
    5 hours ago · Like · 1
  • Rahul Dev मुझे अगर एक माह भी वेतन लेट मिलता है तो परेशान हो जाता हूँ फिर हरे जी को तो पिछले चार माह से वेतन नहीं मिला अतः हमें उनकी स्थिति को सहानुभूतिपूर्वक समझनी चाहिए | ईमेल पर किया गया पत्राचार ऑथेंटिक माना जाता है अतः मेरे ख्याल से अख़बार को हरेप्रकाश जी को उनका शीघ्र भुगतान कर प्रकरण का अंत किया जाना चाहिए | अनावश्यक वाद-विवाद का कोई फायदा नहीं है |See Translation
    5 hours ago · Like · 3
  • Hareprakash Upadhyay मैं गया था नज़्म भाई, अब रोज-रोज तो हिसाब माँगने तो नहीं जा सकताSee Translation
  • Arun Sethi दुखद …सच कहूँ भूल जाओ…. इतना वक्त अपने लेखन, सृजन में लगाओ. कुछ हाथ नी आना ज्यादा कहूँ तो हठ-पाँव तुड़वाना ?See Translation
    5 hours ago · Like · 2
  • Nazm Subhash mai pahle hi likh chuka hu

    ki char mah tk vetan n milega to admi hwa khaega kya

    etne din vetan hi rokna apne ap me behad ghatiya bat he

    fir b ek bar hare bhai ko sansthan jake bat karni chahiye
    5 hours ago · Like · 1
  • शशिभूषण द्विवेदी इस्तीफा ई मेल से नहीं, सरकंडे की कलम से भोजपत्र पर देना चाहिए था। फिर उस पर नोटरी के साइन भी करा लेने चाहिए थे। यही तुम्हारी गलती थी। हद है। सुभाष जी इस सब से क्या फायदा? पैसा देकर मामला ख़त्म करिये। मैंने आप लोगों की मुहब्बत भी देखी है। हरे का आपके प्रति सम्मान और आपकी हरे को लेकर चिंता भी। उसका ही लिहाज़ रखा जाये।See Translation
    5 hours ago · Like · 7
  • Hareprakash Upadhyay विनायक राजहंस का भी दो महीने का वेतन दिया जाय .See Translation
    5 hours ago · Like · 1
  • Arunesh Mishra subhash ji ! bhugtan to hona hi h dilawa do mourya se . kalmkar sb bhai bhai . dono sammanit v pratishthhit ho .See Translation
    5 hours ago · Like · 1
  • Raj Kamal sidhi si baat hai kaam kiya hai to paisa banta hai…phir sansthan ki or se bekar ki chic chic kyon…
    5 hours ago · Like · 1
  • Nazm Subhash bhai 

    agar ap 
    vetan ke liye sansthan nhi gaye he to jane me koi burai nhi he 

    ekbar ap jaye

    qki agr ap cort bhi jaenge to apse pucha jaega ki kya ap vetan ke liye gae the

    aor ye sansthan ka plus point hoga

    waise bhi curt ka estemal antim vikalp ke taur pe karna chahiye
    5 hours ago · Like · 1
  • Hareprakash Upadhyay Nazm भाई, वेतन के लिए संस्थान गया था। वहाँ से कहा गया कि आपको फोन किया जाएगा और अब हालत है कि मेरा ही फोन नहीं उठा रहे लोग।See Translation
  • Nazm Subhash matlb ek bar ja chuke he ap

    tbto ye sarasar anyay he
    5 hours ago · Like · 1
  • Kashyap Kishor Mishra अत्यंत दुखद है, यह सब । एक आदमी नौकरी करता है अपना और परिवार का पेट पालनें के लिए । दिन भर मजूरी करने वाले मजदूर की मजूरी जरा रोक कर देखिए शाम को । चार महीने से वेतन रोक रखना और फिर इस्तीफे के तरीके पर सवाल उठाना, यह तो विचित्र बात है ।
    …चार महीनों का वेतन रोके रखना कौन तरीका है, भला ? आदमी छुट्टी माँगे तो जिम्मेदारी बताई जाए पर क्या कर्मचारी को समय से वेतन दिया जाए इसकी कोई जिम्मेदारी नहीं ?

    यह तो वही बात हुई जिम्मेदारी दे दो और आदमी भीख माँग कर घर चलाए पर दी हुई जिम्मेदारी जरूर निभाए ।

    हद है !
    5 hours ago · Like · 2
  • Nazm Subhash tbto udhar se fon ane se rha

    fir to ap kanuni madad hi le

    had hai

    shosan ki
    5 hours ago · Like · 1
  • Raj Kamal in baaton ka logon ke samne aane ke baad bhi agar hare bhai ko bakaya vetan ke liye cort jana pade to hum sansthan ki besharmi ko samajh sakten hain…
    5 hours ago · Like · 1
  • Ghalib Kaleem Hareprakash Upadhyay ji ye halat har organization ki hi ..ye chorne waqt bahut kivh kich karte hai…jaise employee unse haram ke paise mang raha ho
    5 hours ago · Like · 1
  • 4 hours ago · Like · 1
  • Anil Kumar Upadhyaya jagjeet singh kohali ka karm jo DG cable ko chalaane ke liye kiyaa gayaa tha ..
    4 hours ago · Like · 1
  • Laxman Tiwari Benaam आम जनता पत्रकारों पर कैसे भरोसा कर पाएगी जब वेतन ही नहीं मिलेगा तो पत्रकार भाई भी पेशे के प्रति कैसे समर्पित रह पाएँगे यह सरासर अन्याय है,अगर मेरी बात किसी को बुरी लगी हो तो क्षमा चाहुँगाSee Translation
    4 hours ago · Like · 1
  • Ganga Pd Sharma “इस्तीफे मोबाइल और फेसबुक पर घोषित नहीं होते। हरेप्रकाश ने न संस्थान को नोटिस दिया, न इस्तीफा। जिम्मेदार पद पर रहते हुए मुझे एक मेसेज करके 10 दिन के लिए गायब हो गये। दो-तीन दिन पहले 6 या सात सितंबर को लौटे तो अपना फैसला सुना कर चले गये। आठ को मुझे फोन किया तो मैंने कहा कि जो भी पैसे तुम्हार बनेंगे, मिल जायेंगे। कोई संस्थान दो दिन में हिसाब नहीं करता.”आदरणीय सुभाष राय जी कोई आपने तो वह भी नहीं किया. रही बिना बताए गायब होने की .उसके लिए आप कारण बताओ नोटिस दीजिए ,मेमो दीजिए यह क्या चार-चार महीने का वेतन लटकाए बैठे हैं. संस्थान दो दिन में हिसाब नहीं करता लेकिन चार महीने में तो कर ही देता होगा जिम्मेदार तो आप भी हैं.शायद संपादक किसी भी कर्मचारी से ज़्यादा जिम्मेदार होता. है.प्रेस-परिवार का मुखिया होता है.चार-चार महीने वेतन न देकर आपने कौन-सी ज़िम्मेदारी निभाई.यह तो ,”पर उपदेश कुसल बहुतेरे,जे आचरहिं ते नर न घनेरे वाली बात हुई.” और ,आप जिस इशारे की बात करते हैं,वह हज़म नहीं हुई.”कम से कम उन्हें मेरे इशारे की अहमियत तो मालूम है।” पत्रकारिता में इशारे क्या होते हैं?यहाँ तो पारदर्शिता ज़रूरी होती है इशारे नहीं.कहीं यह उभरती प्रतिभा से जलने का मसला तो नहीं है?ज्ञानपीठ से सम्मानित होने के बाद हरे प्रकाश के सम्मान में आपके प्रेस में भी कोई आयोजन रखा गया था क्या?एक लेखक को आप भी अपने और मालिक के कर-कमलों से एक-एक कलम ही देते ,दिला देते. कहीं ऐसा तो नहीं कि एक अच्छे-खासे खेती किसानी के लायक बे नाथे बैल (कथाकार )को नाथने का उपक्रम तो नहीं है कि अगर छुट्टे में न नाथ सको तो कम से कम ऐसे घेर दो कि वह फिर खूँटे पर लौट आए और फिर रस्से में बाँध के गिराया और नाथा जाए.See Translation
    3 hours ago · Like · 4
  • Brijesh Neeraj मुझे दोनों पक्ष यह स्वीकार करते दीखते हैं कि नौकरी छोडी जा चुकी है. ऐसे में बकाया मेहनताने का भुगतान करके प्रकरण समाप्त कर दिया जाना चाहिए. अनावश्यक तर्क-वितर्क का कोई नतीजा नहीं. मूल मुद्दा है बकाये का भुगतान. उसके लिए बहानेबाजी, दांव-पेंच या भुगतान न करने के आधार खोजना उचित नहीं. यह प्रतिष्ठा को चोट पहुँचाता है.See Translation
    3 hours ago · Like · 3
  • Preetam Thakur उनकी जेब ही खाली होगी!See Translation
    2 hours ago · Like · 1
  • Girish Mishra Whether it is a newspaper publisher or book publisher, most of them are cheats.
  • Vijaykanti Tripathi Rti act karna justifide hoga.
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