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लखनऊ के पत्रकार और उनकी गिरती साख

अनुपम चौहान
लखनऊ….उत्तर प्रदेश की राजधानी, लंबे समय से पत्रकारिता का एक महत्वपूर्ण केंद्र रहा है। कभी अपनी निष्पक्ष रिपोर्टिंग और जनसरोकारों से जुड़े मुद्दों को उठाने के लिए पहचाने जाने वाले लखनऊ के पत्रकार, आज अपनी गिरती साख को लेकर गहन चिंतन का विषय बने हुए हैं। यह गिरावट कई कारकों का परिणाम है, जिनमें बदलता मीडिया परिदृश्य, राजनीतिक दबाव, आर्थिक मजबूरियां और पेशेवर नैतिकता का क्षरण शामिल है।
एक बदलता परिदृश्य: डिजिटल क्रांति ने पत्रकारिता के क्षेत्र में अभूतपूर्व बदलाव लाए हैं। ऑनलाइन पोर्टल्स, सोशल मीडिया और 24/7 समाचार चैनलों की बाढ़ ने सूचना के प्रवाह को तो बढ़ाया है, लेकिन साथ ही ‘ब्रेकिंग न्यूज’ की होड़ और ‘क्लिकबेट’ पत्रकारिता को भी बढ़ावा दिया है। लखनऊ के पत्रकार भी इस दौड़ में शामिल होते जा रहे हैं, जहां गुणवत्ता से अधिक गति को प्राथमिकता दी जा रही है। सत्यापित तथ्यों के बजाय अफवाहों और सनसनीखेज खबरों पर ध्यान केंद्रित करने से विश्वसनीयता को ठेस पहुंच रही है.
राजनीतिक दबाव और ध्रुवीकरण: राजनीतिक दलों और प्रभावशाली व्यक्तियों का दबाव पत्रकारिता की निष्पक्षता के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है। लखनऊ, एक महत्वपूर्ण राजनीतिक केंद्र होने के नाते, इस दबाव का प्रत्यक्ष गवाह रहा है। पत्रकारों पर अक्सर सत्तारूढ़ दल या विपक्षी दलों के एजेंडे को आगे बढ़ाने का आरोप लगाया जाता है। सोशल मीडिया पर राजनीतिक ध्रुवीकरण भी पत्रकारों को प्रभावित कर रहा है, जहां उन्हें अक्सर किसी एक विचारधारा का समर्थक मान लिया जाता है, जिससे उनकी तटस्थता पर सवाल उठते हैं। भय और पक्षपात के कारण कई पत्रकार महत्वपूर्ण मुद्दों पर मुखर होने से कतराते हैं।
आर्थिक मजबूरियां: मीडिया संस्थानों की आर्थिक स्थिति का प्रभाव भी पत्रकारों की साख पर पड़ रहा है। राजस्व के दबाव और कड़ी प्रतिस्पर्धा के कारण, कई मीडिया घराने लागत कम करने के लिए कर्मचारियों की छंटनी कर रहे हैं या वेतन में कटौती कर रहे हैं। इससे पत्रकारों पर अधिक काम का बोझ और अनिश्चितता का माहौल बनता है, जिससे उनकी पेशेवर नैतिकता प्रभावित होती है। विज्ञापनों पर अत्यधिक निर्भरता भी संपादकीय स्वतंत्रता को प्रभावित करती है, जहां विज्ञापनदाताओं के हितों को खबरों पर प्राथमिकता दी जा सकती है।
पेशेवर नैतिकता का क्षरण: उपरोक्त कारकों के परिणामस्वरूप, पेशेवर नैतिकता का क्षरण भी देखने को मिल रहा है। ‘पेड न्यूज’ (पैसे लेकर खबर छापना), पीआर-आधारित पत्रकारिता और व्यक्तिगत लाभ के लिए खबरों का हेरफेर कुछ ऐसी प्रथाएं हैं जो लखनऊ की पत्रकारिता की साख को लगातार कम कर रही हैं। पत्रकारों के बीच आत्म-नियमन और जवाबदेही की कमी भी इस समस्या को बढ़ा रही है। कई बार, पत्रकारिता के मूलभूत सिद्धांतों- सत्यता, निष्पक्षता और वस्तुनिष्ठता से समझौता करना पड़ता है। पत्रकारिता की गिरती साख को बहाल करने के लिए कई स्तरों पर प्रयास करने की जरूरत है।
नैतिकता और प्रशिक्षण पर जोर: पत्रकारों के लिए नियमित प्रशिक्षण कार्यशालाएं आयोजित की जानी चाहिए जो उन्हें पत्रकारिता के नैतिक सिद्धांतों और बदलते डिजिटल परिदृश्य में जिम्मेदार रिपोर्टिंग के बारे में जागरूक करें।
आत्म-नियमन और जवाबदेही: मीडिया घरानों और पत्रकार संगठनों को पत्रकारों के लिए एक मजबूत आचार संहिता विकसित करनी चाहिए और उसका सख्ती से पालन सुनिश्चित करना चाहिए. शिकायत निवारण तंत्र को मजबूत किया जाना चाहिए।
आर्थिक स्वतंत्रता: मीडिया घरानों को राजस्व के वैकल्पिक स्रोतों की तलाश करनी चाहिए ताकि वे विज्ञापनदाताओं पर अपनी निर्भरता कम कर सकें और संपादकीय स्वतंत्रता बनाए रख सकें।
डिजिटल साक्षरता: पाठकों और दर्शकों को डिजिटल साक्षरता के बारे में शिक्षित करना महत्वपूर्ण है ताकि वे विश्वसनीय स्रोतों और फेक न्यूज के बीच अंतर कर सकें।
लोकतांत्रिक मूल्यों को बढ़ावा: पत्रकारों को लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में अपनी भूमिका को पहचानना चाहिए और बिना किसी भय या पक्षपात के जनहित के मुद्दों को उठाना चाहिए।
लखनऊ की पत्रकारिता की साख को वापस पटरी पर लाना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है, लेकिन यह असंभव भी नहीं है। यह पत्रकारों, मीडिया घरानों, सरकार और आम जनता सभी के सामूहिक प्रयासों से ही संभव हो पाएगा। एक मजबूत और जिम्मेदार प्रेस ही लोकतंत्र के लिए आवश्यक है।
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