कितना उचित है धार्मिक आराध्यों का उपहास ?

अब नया मामला सिविल लाइंस स्थित लीलामणि अस्पताल से प्रकाश में आया है। जानकारी के मुताबिक, मरीजों और तीमारदारों के आवागमन के लिए बने रैम्प के आसपास की दीवारों को गंदगी से बचाने के लिए अनेक धर्मों के आराध्यों के चित्रों के टाइल्स लगाये गए हैं। ऐसा पता चला है कि यहाँ आने-जाने वाले लोग इन स्थानों पर न थूकें अथवा गंदगी करें, इसी उद्देश्य से कई धर्मों के आराध्यों के चित्रों वाले टाइल्स लगवाये गये हैं। ऐसे में विचारणीय पहलू यह है कि अस्पताल प्रबन्धन के नजरिये में ऐसा करना गलत नहीं हो सकता है लेकिन धार्मिक नजरिये से इसे उचित कतई नहीं कहा जा सकता है कि धार्मिक आराध्यों के चित्रों को उन स्थानों पर लगवा दिया जाये जहाँ लोग बेपरवाह होकर गंदगी फैला देते हैं।

श्याम सिंह ‘पंवार’
पत्रकार, कानपुर

भारत की व्यवस्था का संचालन भले ही संवैधानिक है लेकिन धार्मिकता का भी अपना एक अनूठा स्थान है क्योंकि संविधान ने किसी भी नागरिक को किसी भी धर्म की आस्था अथवा उनके आराध्यों के साथ खिलवाड़ अथवा उनका उपहास उड़ाने की अनुमति कतई नहीं देता है। बावजूद इसके कानपुर शहर के कुछ प्रतिष्ठानों में ऐसे नजारे प्रकाश में आये हैं जिनको देखकर आश्चर्य हुआ कि अपने प्रतिष्ठानों में गलियारों एवं सीढ़ियों को गंदगी से बचाने के लिये धार्मिक चित्रों को स्थापित करवा दिया गया है। खास पहलू यह है कि प्रतिष्ठानों के मालिकों की नजर में ऐसा कृत्य किसी भी नजरिये से अनुचित नहीं है जबकि सनातन ही नहीं अपितु हर धर्म के आस्थावान लोगों के नजरिये से ऐसा कृत्य उनकी आस्था के साथ खिलवाड़ है। उनका मानना है कि ऐसा करने वाले लोगों ने यह कृत्य अनजाने में नहीं बल्कि जानबूझ कर किया है क्यों कि बड़े-बड़े प्रतिष्ठान चलाने वाले ये लोग, अनपढ़ अथवा नासमझ नहीं बल्कि उच्च शिक्षित व विधिक जानकारी रखने वाले लोग हैं।
बिगत दिनों पहला मामला कानपुर शहर के स्वरूपनगर में प्रकाश में आया, जहाँ मोतीझील मेट्रो स्टेशन के निकट स्थित नादरी कार्नर मार्केट में हिन्दू धर्म के देवी-देवताओं के चित्रों को उन स्थानों पर स्थापित किया गया था, जिन स्थानों पर लोग मौका पाते ही पान-तम्बाकू की ‘पीक’ थूक देते थे। ऐसे में गन्दगी होना स्वाभाविक सी बात है लेकिन खेदजनक नजारा यह रहा कि उन स्थानों पर लोग न थूकें, इस लिये हिन्दू धर्म के देवी-देवताओं के चित्रों को स्थापित करवा दिया गया था!!
मामला प्रकाश में आया और शहर के कई समाचारपत्रों ने इस मामले को आमजन में प्रसारित किया। इस बारे में जनप्रतिनिधियों की राय भी मांगी तो उन्होंने अपनी-अपनी घिसी-पिटी बयानवाजी देकर औपचारिकता निभा दी। लेकिन, कई समाचारपत्रों में खबर प्रकाशित होने पर परिणाम यह हुआ कि नादरी कार्नर मार्केट से देवी-देवताओं के चित्रों को हटा दिया गया और मामले को रफा-दफा कर दिया गया।
अब नया मामला सिविल लाइंस स्थित लीलामणि अस्पताल से प्रकाश में आया है। जानकारी के मुताबिक, मरीजों और तीमारदारों के आवागमन के लिए बने रैम्प के आसपास की दीवारों को गंदगी से बचाने के लिए अनेक धर्मों के आराध्यों के चित्रों के टाइल्स लगाये गए हैं। ऐसा पता चला है कि यहाँ आने-जाने वाले लोग इन स्थानों पर न थूकें अथवा गंदगी करें, इसी उद्देश्य से कई धर्मों के आराध्यों के चित्रों वाले टाइल्स लगवाये गये हैं। ऐसे में विचारणीय पहलू यह है कि अस्पताल प्रबन्धन के नजरिये में ऐसा करना गलत नहीं हो सकता है लेकिन धार्मिक नजरिये से इसे उचित कतई नहीं कहा जा सकता है कि धार्मिक आराध्यों के चित्रों को उन स्थानों पर लगवा दिया जाये जहाँ लोग बेपरवाह होकर गंदगी फैला देते हैं।
उपरोक्त प्रकरणों पर गम्भीरता से विचार करने पर सवाल यह उठता है कि लोगों को गंदगी फैलाने से रोकने के लिए धार्मिक प्रतीक चिन्हों, उनके आराध्यों के चित्रों को लगाना क्या उचित है?
क्या ऐसा कृत्य धार्मिकता का उपहास उड़ाना व आस्थावान लोगों की आस्था के साथ खिलवाड़ नहीं है?
गौरतलब हो कि, ‘‘जो कोई (व्यक्ति), भारत के नागरिकों के किसी वर्ग की धार्मिक भावनाओं को आहत करने के लिये जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण इरादे से, मौखिक या लिखित शब्दों द्वारा, या संकेतों या दृश्य चित्रणों द्वारा या अन्यथा उस वर्ग के धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान करता है या अपमान करने का प्रयास करता है, उसे किसी एक अवधि के लिए कारावास से, या जुर्माना, अथवा दोनों से दंडित किया जाएगा’’ अर्थात भारत के संविधान में किसी भी नागरिक को किसी भी किसी भी धर्म की आस्था से खिलवाड़ करने की खुली छूट नहीं है बल्कि किसी भी धर्म की आस्था के साथ खिलवाड़ करने वालों को विधिक प्रक्रिया के तहत दण्डित करने का प्रावधान है।
अस्तु जिला प्रशासन को चाहिये कि ऐसे सभी मामलों को संज्ञान में ले और सुसंगत धाराओं में मामला दर्ज करवा कर विधिक प्रक्रिया के तहत कार्यवाही करवाये।

 

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