जागरण का मालिक जुर्म कबूल कर रहा है और चुनाव आयोग हाथ पर हाथ धरे बैठा है
सोमवार की रात गिरफ्तार किए गए जागण डॉट कॉम के संपादक शेखर त्रिपाठी को 20 हज़ार के मुचलके पर ज़मानत दे दी गई है, लेकिन यह सवाल अब तक बना हुआ है कि इस मामले में जागरण समूह के सीईओ और प्रमुख संपादक संजय गुप्ता को गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया है।
जागरण डॉट कॉम नामक अंग्रेज़ी वेबसाइट पर भाजपा को यूपी चुनाव के पहले चरण में बढ़त दिखाने वाला एग्जिट पोल छापने पर चुनाव आयोग ने इस संबंध में दि वायर की एक स्टोरी का संज्ञान लेते हुए अखबार पर 15 जिलों में एफआरइआर करने का आदेश दिया था। उसी रात एफआइआर के बाद इतनी फुर्ती दिखाई गई कि त्रिपाठी को उनके घर से गाजि़याबाद पुलिस ने उठा लिया। एक दिन बाद उन्हें ज़मानत मिल गई, लेकिन हद बेशर्मी यह रही कि संजय गुप्ता के इस कुबूलनामे के बावजूद उन पर अब तक पुलिस हाथ नहीं डाल सकी है कि जिसे एग्जिट पोल बताया जा रहा था, वह दरअसल अखबार के विज्ञापन विभाग द्वारा भेजी गई सामग्री थी।
अगर संजय गुप्ता की बात मान ली जाए, तो यह अपने आप में एक कुबूलनामा है कि उनका अखबार पैसे लेकर विज्ञापन की शक्ल में राजनीतिक प्रचार सामग्री को छापता है। ज़ाहिर है, भाजपा की सबसे ज्यादा सीटों वाला विज्ञापन एग्जिट पोल की शक्ल में या तो भाजपा ने या उसके किसी हितैशी ने ही दिया होगा। इसके बदले अखबार के विज्ञापन विभाग ने पैसे भी लिए होंगे। इस बात से खुद संजय गुप्ता सहमत हैं। फिर तो यह सीधे-सीधे पेड न्यूज़ का मामला बनता है और संजय गुप्ता के मीडिया में दिए बयान को ही इकबालिया बयान मानते हुए उन पर कार्रवाई होनी चाहिए थी।
अगर अखबार के खिलाफ 15 जिलों में एफआइआर हुई है तो अकेले गाजियाबाद में ही ऐक्शन क्यों लिया गया। क्या राज्य की पुलिस पर कोई दबाव काम कर रहा है। संजय गुप्ता अब तक बाहर कैसे हैं। ये सारे सवाल कल से फेसबुक समेत सोशल मीडिया में उठाए जाने शुरू हो गए हैं। पत्रकारों का मानना है कि अखबार के प्रबंधन ने शेखर त्रिपाठी को इस मामले में बलि का बकरा बनाकर मालिकान का सिर बचा लिया है।
इस बारे में जनसत्ता के पूर्व कार्यकारी संपादक ओम थानवी, वरिष्ठ पत्रकार देवेंद्र सुरजन और लेखक अरुण माहेश्वरी ने गंभीर टिप्पणी की है:
ओम थानवी
15 फरवरी: एक सम्पादक गिरफ़्तार हुआ, रिहा हुआ। जबकि कल जागरण के सीईओ, जो प्रधान सम्पादक भी हैं, ने कहा था कि वह विज्ञापन विभाग की कारगुज़ारी थी। तो ठीकरा पत्रकार के सिर पर क्यों फूटा, जो मालिक का हुकुम भर बजाता है? यह तो किसी बीएमडब्लू कांड जैसा हो गया, कि गाड़ी कोई चला रहा था, पुलिस के आगे किसी और कर दिया! पहुँच हो तो क़ानून की आँखों में धूल झोंकना मुश्किल नहीं होता। थाना हो चाहे निर्वाचन आयोग। सम्पादक को आगे करने से ‘जजमेंट’ की लापरवाही ज़ाहिर होती है। विज्ञापन प्रबंधक को आगे करते तो साबित होता कि कथित एग्ज़िट पोल पैसा लेकर छापा गया था। तब यह पड़ताल भी होती कि पैसा किसने दिया, किसकी अनुमति से लिया? फ़र्ज़ी मतसंग्रह में भाजपा को आगे बताने के लिए पैसा कांग्रेस या उसके समर्थक तो देने से रहे! ख़याल रहे, मतसंग्रह करने वाली कम्पनियाँ इस काम के लाखों रुपए लेती हैं। तब और ज़्यादा जब उसमें हेराफेरी भी करनी हो। आयोग आँखें खोलकर देखे; सवाल गिरफ़्तारी करने न करने का नहीं, इस पड़ताल का है कि क्या यह कोई धंधा अर्थात् षड्यंत्र तो नहीं था?
14 फरवरी: आज के इंडियन एक्सप्रेस में जागरण के सम्पादक-मालिक और सीईओ संजय गुप्ता ने कहा है कि उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव में दूसरे चरण के मतदान से पहले जागरण द्वारा शाया किया गया एग्ज़िट पोल उनके विज्ञापन विभाग का काम था, जो वेबसाइट पर शाया हुआ। (“Carried by the advertising department on our website”) माने साफ़-साफ़ पेड सर्वे! दूसरे शब्दों में जागरण ने पैसा लिया (अगर लिया; किससे, यह बस समझने की बात है) और कथित मत-संग्रह किसी अज्ञातकुलशील संस्था से करवा कर शाया कर दिया कि चुनाव में भाजपा की हवा चल रही है। जैसा कि स्वाभाविक था, इस फ़र्ज़ी एग्ज़िट पोल को भाजपा समर्थकों-प्रचारकों ने सोशल मीडिया पर हाथों-हाथ लिया और अगले चरण के चुनाव क्षेत्रों में दूर-दूर तक पहुँचा दिया। सोशल मीडिया पर ही इसकी निंदा और चुनाव आयोग की हेठी न हुई होती तो कौन जाने कल के मतदान से पहले यह बनावटी हवा का हल्ला अख़बार में भी छपा मिलता! उस सम्पादक से सहानुभूति होती है, जिसे बलि का बकरा बनाया गया है। व्यवहार में विज्ञापन विभाग मालिक/प्रबंधन के मातहत काम करता है। वैसे भी ऐसे सर्वे, एग्ज़िट पोल आदि पर बहुत धन व्यय होता है, “कमाई” भी होती है – इस सबसे सम्पादकीय विभाग का क्या वास्ता? यह वास्तव मालिकों-प्रबंधकों का गोरखधंधा है, जो बचे ही नहीं रहेंगे संसद में भी पहुँच जाएँगे (क्योंकि सच्चरित्र लोगों को संसद में भरने का मोदीजी का वादा है!)। वैसे भी जागरण के प्रधान सम्पादक संजय गुप्ता ख़ुद हैं। उनके पिता मेरे परिचित थे और पड़ोसी भी। उन्हें भाजपा ने राज्यसभा में भेजा था। पर असल सवाल यह है कि इस पोल की पोल खुल जाने के बाद भाजपा की “हवा” का क्या होगा? रही-सही हवा भी निकल नहीं जाएगी?
देवेंद्र सुरजन
एक्ज़िट पोल छापने वाले जागरण परिवार की पूर्व पीढ़ी के दो और सदस्य सांसद रह चुके हैं. गुरुदेव गुप्ता और नरेन्द्र मोहन. यह परिवार सत्ता की दलाली हमेशा से करता आ रहा है. वर्तमान में जागरण भाजपा का मुखपत्र बना हुआ है. सत्ताधीशों का धन इसमें लगा होने की पूरी सम्भावना है. हर राज्य में किसी न किसी नाम से और किसी न किसी रूप में संस्करण निकाल कर सरकार के क़रीबी बना रहना इस परिवार को ख़ूब आता है. एक्ज़िट पोल छाप कर सम्पादक तो फ़िज़ूल में गिरफ़्तार हो गया जबकि गिरफ़्तारी गुप्ता बंधुओं की होनी चाहिये थी.
अरुण माहेश्वरी
यह भारतीय पत्रकारिता का संभवत: सबसे काला दौर है। अख़बारों और मीडिया की मिल्कियत का संकेंद्रण, हर पत्रकार पर छटनी की लटकती तलवार और ट्रौल का तांडव – इसने डर और आतंक के एक ऐसे साये में पत्रकारिता को ले लिया है, जिसके तले इसके स्वस्थ आचरण की सारी संभावनाएँ ख़त्म हो रही हैं। सोशल मीडिया तक को नहीं बख़्शा जा रहा है। हमारे देश का संभवत: अब तक का सबसे जघन्य घोटाला व्यापमं, जिसमें सत्ता के घिनौने चरित्र का हर पहलू अपने चरम रूप में उजागर हुआ है, उस पर न सिर्फ सरकारी जाँच एजेंसियाँ कुंडली मार कर बैठी हुई है, बल्कि अबखबारों में भी इसकी कोई चर्चा नहीं है। बीच-बीच में सुप्रीम कोर्ट की तरह की संस्थाओं के फैसले भी इसको चर्चा में लाने में असमर्थ रह रहे हैं। चारों और एक अजीब सा संतुलन करके चलने का भाव पसरा हुआ है। इसमें जो लोग मोदी जी को अपने को सौंप दे रहे हैं, उनके सिवाय बाक़ी सभी तनाव में रह रहे हैं । ऐसा तो शायद आंतरिक आपातकाल के दौरान भी इतने लंबे काल तक नहीं हुआ था। यह भारतीय पत्रकारिता को पूरी तरह से विकलांग बना देने का दौर चल रहा है।