दलाली भी बर्दाश्त। मगर अब तो धोखा देने पर आमादा हैं पत्रकार
पत्रकारिता में शामिल लोगों के जीवन मेंअमूल्य ताकतें केवल यही हैं। यही न हो, तो किसी भी पत्रकार से पत्रकारिता हमेशा के लिए विदा हो जाती है। आम आदमी का विश्वास और भरोसा हमेशा-हमेशा के लिए टूट जाता है। उसके बाद वह चाहे कुछ भी हो, लेकिन पत्रकार नामक जन्तु से हमेशा के लिए भयभीत हो जाता है और उनके प्रति उसके मन में घृणा का भाव पैदा हो जात है। आदमी दलाल-भड़वे को तो एक बार बर्दाश्त कर सकता है, लेकिन झूठे-चुगलीबाज को हर्गिज नहीं।
लेकिन बेहद शर्मिंदगी और दुख की बात है पत्रकारों के प्रति आम आदमी तो दूर, पत्रकारों तक में यकीन, विश्वास और आस्था नहीं बची।
हुआ यह कि हाल ही पत्रकारिता छोड़ कर राजनीति में आये मेरे एक मित्र से मैंने एक मसले पर बातचीत कर उनकी राय जाननी चाही। लेकिन मेरा सवाल उठते ही वे हल्का फुसफुसा कर बोले:- कुछ लोगों से मीटिंग में हूं। खाली होते ही आपको फोन करूंगा।
इस घटना को पांच दिन हो चुके हैं, और कोई भी फोन नहीं आया। यानी पत्रकारों के प्रति आम आदमी ही नहीं, खुद पत्रकार भी आशंकित और भयभीत रहता है।
इस मामले में उस पत्रकार की गलती तनिक भी नहीं है। वह क्या करे। न जाने कब, कौन, कैसे, किस जगह कितना काम लगा दे, पता तक नहीं चलता। तो बधाई हो नयी पौधशाला के पत्रकारों।
सभार meribitiya.com