दौलतमंद पत्रकारों राजदीप, सागरिका, रवीश कुमार, कमर वाहिद नक़वी और ओम थानवी का विधवा विलाप……………………..

सारे दौलतमंद पत्रकार आज दहाड़ें मारकर रो रहे हैं। राजदीप सरदेसाई। सागरिका घोष। कमर वाहिद नक़वी। रवीश कुमार उर्फ रवीश पांडे। थुलथुल थानवी उर्फ ओम थानवी। इनमें से सबकी आमदनी 30 फीसदी की सर्वोच्च आयकर सीमा के पार है। क्या कभी आपने इन्हें किसी स्ट्रिंगर के निकाले जाने पर आंसू बहाते देखा है? कभी किसी आम पत्रकार के निकाले जाने पर इन्होंने छाती पीटी है? जब IBN7 में करीब 300 पत्रकार एक झटके में निकाल दिए गए। उनके बच्चों की स्कूल फीस बंद हो गई। उनकी ईएमआई रुक गयी। उनकी बीबियां सोने चांदी की दुकानों पर अपने ब्याह के गहने गिरवी रखने की लाइन में लग गईं। तब क्या आपने इनमें से पत्रकारिता के एक भी कथित खुदा को अपने जमीर के सीने पर कान धरते देखा था? जब एनडीटीवी से सैकड़ों पत्रकार झींगुर और तिलचट्टों की तरह मुनाफे की गरम चिमटियों से पकड़कर फेंक दिए गए। तब क्या इस रवीश पांडे उर्फ रवीश कुमार नाम के गणेश शंकर विद्यार्थी के फूफा को उनके समर्थन में एक लफ्ज़ भी कहीं लिखते देखा था? ये सब उसके ही साथी थे। जिनकी मजबूरियों के मुर्दा जिस्म पर खड़ा होकर ये आदमी अपने मालिको को 21 तारीफों की सलामी ठोंक रहा था।

मगर आज इन सभी का चैन लुट गया है। नींद उड़ गई है।आज इनके कुछ दौलतमंद साथी निकाले गए हैं। जिनकी तनख्वाह का औसत 8 से 15 लाख महीना हुआ करता था। सो आज देश मे आपातकाल आ गया है। आज पत्रकारिता की दसवीं है और ये सब के सब बाल मुंडवाने की खातिर लाइन लगा चुके हैं। और तो और हमे पत्रकारिता की नैतिकता का प्रवचन भी दे रहे हैं। आदर्शों और सिद्धांतों की गीता पढ़ रहे हैं। ये वे लोग हैं जिन्होंने टीआरपी की खातिर हर कर्म- कुकर्म किए। बिना ड्राइवर की कार भी चलवाई और सांप-बिच्छु भी जमकर नचवाये। टीआरपी कम होने पर अपने अधीनस्थों की नौकरियां खाई। उनकी ज़िम्मेदारियाँ बदलीं। इस बीच ईएमआई पर जीने वाले आम पत्रकार कीड़े मकोड़ों की तरह मसले-पीसे जाते रहे। मगर पत्रकारिता की कायनात के ये स्वघोषित खुदा मोटी तनख्वाहों वाले थ्रीडी चश्मे लगा जमकर अट्टहास करते रहे।

आज यही फिक्रमंद हैं। आज ये डरे हुए हैं। ये अपने पूरे करियर टीआरपी के पीछे मजनुओं से नाचते रहे। टीआरपी लाने की खातिर “कुंजीलाल की मौत” का बेहूदा तमाशा दिखाते रहे। पर आज रिटायर होते ही ये “पत्रकारिता के रामप्रसाद बिस्मिल” बन चुके हैं। इनके दौलतमंद साथी इसी टीआरपी के कहर में मारे गए। अपनी निरी अयोग्यता और भीषण एजेंडेबाज़ी के चलते इनके कार्यक्रमों को दो कौड़ी की टीआरपी भी नही नसीब हो पाई और आखिरकार धक्के मारकर निकाले गए।

इन्हीं दौलतमंदों के निकाले जाने पर कुछ दौलतमंद इस कदर आंसू बहा रहे हैं कि दिल्ली में बाढ़ का खतरा बढ़ गया है। यमुना खतरे के निशान को पार कर गयी है। इस बीच यूपी के मऊ का स्ट्रिंगर खून के आंसू रो रहा है। उसे तनख्वाह तक नही मिलती और निकालने वाले निकालते वक़्त अपनी घड़ियों में वक़्त तक नही देखते। कभी कभी तो रात के 12 बजे भी फायर कर देते हैं। गुजरात के मोरबी का स्ट्रिंगर देर रात तक मोटरसाइकिल चलाने के बाद अगली सुबह के पेट्रोल की चिंता में अब भी जाग रहा है। ईएमआई के छोटे-छोटे क्वाटरों में सहमे सिकुड़े न जाने कितने पत्रकार, कभी जबरिया लिखवा लिए गए इस्तीफे को देखते हैं, तो कभी नन्ही बच्ची की डायरी में लिखी हुई स्कूल फीस की नोटिस को। उन्हें नींद नही आती है। वे जीते जी पागल हो जाते हैं। मगर सवाल वही है। उनके लिए कौन रोता है? ये पूंजीपतियों गिरोह है। ये सिर्फ पूंजीपतियों के लिए रोता है।

Abhishek Upadhyay के wall से साभार

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