अंतत: जनसंदेश टाइम्स की एक गंदगी साफ हो ही गई
पिछले दिनों जनसंदेश में बतौर सीईओ ‘वाइन करने के तुरंत बाद ही आरपी सिंह ने यहां की गंदगियों को एक-एक कर साफ करना शुरू कर दिया। दरअसल, जनसंदेश टाइम्स के मालिक अनुराग कुशवाहा ने ‘सफेद हाथीÓसाबित हो रहे अखबार को पटरी पर लाने के लिये उन्हें खासतौर पर और विशेष उम्मीद के साथ बुलाया था। बताते हैं कि वह सारी यूनिटों के कर्ता-धर्ताओं को समझा-समझाकर थक-हार चुके थे लेकिन अखबार में कोई सुधार नहीं हुआ। दो-तीन सालों बाद भी अखबार लगातार घाटे का ही सौदा साबित हो रहा था। इसके बाद उन्होंने आरपी सिंह को कोई भी निर्णय लेने का अधिकार सौंपकर अखबार से किनारा कर लिया। इसके बाद ही जनसंदेश टाइम्स के विघटनकारी तत्वों के सफाये का अभियान शुरू हुआ। बनारस में भी नकारा साबित हो रहे और प्रधान सम्पादक बनने का ख्वाब पाले आशीष बागची को एकदम स्थानीय संपादक बना दिया। इससे पूर्व प्रिंट लाइन में प्रधान संपादक सुभाष राय का नाम नहीं जा रहा था लेकिन अब जाने लगा। इसके बाद उनकी निगाह में इलाहाबाद संस्करण चढ़ा जिसने लगातार कर्मचारियों के बीच वाद-विवाद और मारपीट के चलते बनारस मैनेजमेंट की नाक में दम कर रखा था। संपादकीय प्रभारी आनंद नारायण शुक्ला के सही ढंग से काम न करने की कई शिकायतें मिलने के बाद वह अचानक इलाहाबाद निरीक्षण करने पहुंच गये तो यहां सुबह की मीटिंग में तीन रिपोर्टरों के अलावा और किसी को नहीं पाया। इसकी खबर आनंद शुक्ला को मिली तो भागते-भागते ऑफिस पहुंचे। उनकी इस अकर्मण्यता पर आरपी सिंह बिगड़ गये और उनसे इस्तीफा मांग लिया। जिसके परिणाम स्वरूप आनंद नारायण शुक्ला ने ऑफिस आना तो बन्द कर दिया था लेकिन अपना स्तिफा नहीं दिया था। लेकिन जब उनको लग गया कि अब मेरी दाल गलने वाली नहीं तो थक हारकर उन्होने अपना स्तिफा सीइओ आरपी सिंह को मेल कर दिया है।
बताते हैं कि जागरण से डिमोशन के बाद परेशान होकर जनसंदेश पहुंचे आनंद नारायण शुक्ला ने यहां अपना साम्रा’य स्थापित कर लिया था। वो चाहे जिसको ‘वाइन करायें और चाहे जिसे बाहर कर दें, उनकी मनमानी के खिलाफ बोलने की किसी की हैसियत नहीं थी। ब्यूरो चीफों से उन्होंने महीना बांध रखा था और अखबार में मैनेजमेंट की खबर तक गाली देकर रोक देते हैं। उनसे लड़ाई मोल लेकर व कुछ अपनी गलतियों से पूवज़् जीएम जीएस शाक्य को संस्थान छोडऩा पड़ा था। इसके बाद नये जीएम रंजीत कुमार आये तब आनंद शुक्ला के तेवर में कमी नहीं आई और वह अपनी मनमानी करते रहे। यहां तक कि वह मैनेजमेंट को जब-तब गाली देते रहते थे और जीएम साहब की दी हुई प्रेस रिलीज भी उठाकर फेंक देते थे। वहीं बनारस मैनेजमेंट यह सब जानते हुये भी उनके खिलाफ कोई कदम उठाने से बच रहा था सिफज़् इसलिये ताकि अखबार के ऊपर जातिवाद को प्रश्रय देने का ठप्पा न लगे।