क्या चीन के दबाव में झुक गई भारत सरकार, भारत-चीन युद्ध के हीरो रहे मेजर शैतान सिंह के स्मारक को खुद भारतीय सेना ने तोड़ा

भारत ने 2020 के संघर्ष में रेजांग ला और एक अन्य दर्रे, रेचिन ला सहित ऊंचाइयों पर कब्जा कर लिया था। लेकिन भारत ने 2022 की शुरुआत में उस समय रेजांग ला पर अपना नियंत्रण खो दिया जब भारतीय और चीनी सेना के बीच बातचीत में यह फैसला लिया गया कि बफर जोन पर सहमति जमीन पर प्रभावी होगी। बफर जोन में बने सभी स्थायी संरचनाओं को दोनों सेनाओं ने तोड़ दिया है या फिर उन्हें वहां से हटा कर कहीं और शिफ्ट कर दिया। इसी क्रम में शहीद मेजर शैतान सिंह का स्मारक भी तोड़ दिया गया।

चीन के मुद्दे पर हारती दिख रही है देश की मोदी सरकार 

ये काम सेना को मजबूरन करना पड़ा क्योंकि इसी इलाके में भारत-चीन के बीच बफर जोन का निर्माण किया गया है

शहीद मेजर का स्मारक तोड़ा जाना न केवल सेना के लिए बल्कि देश के लिए भी एक बड़ा झटका है

सरकार ने इस बात से इनकार कर दिया है कि चीन ने भारत के एक “वर्ग इंच” क्षेत्र पर भी कब्जा किया हो

लेकिन स्मारक का तोड़ा जाना इस बात का संकेत है कि 2020 के बाद से पूर्वी लद्दाख में पहले से मौजूद भारत के सैनिक पीछे हट गए हैं

नई दिल्ली। 1962 के भारत-चीन युद्ध के हीरो रहे मेजर शैतान सिंह के स्मारक को भारतीय सेना ने तोड़ दिया है। ये काम सेना को मजबूरन करना पड़ा क्योंकि इसी इलाके में भारत-चीन के बीच बफर जोन का निर्माण किया गया है। शहीद मेजर का स्मारक तोड़ा जाना न केवल सेना के लिए बल्कि देश के लिए भी एक बड़ा झटका है।

कैलाश रेंज के एक दर्रे रेजांग ला की लड़ाई में मेजर शैतान सिंह और 113 सैनिकों ने हजारों चीनी सैनिकों के दांत खट्टे कर दिये थे। मेजर सिंह का स्मारक उसी जगह पर बनाया गया जहां वे शहीद हुए थे। मेजर का शव उनके दाहिने हाथ से गोलियों से छलनी पेट पर दबा हुआ मिला था।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक लद्दाख स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषद के पूर्व सदस्य खोनचोक स्टैनज़िन ने बताया कि “यह इलाका अब बफर जोन में है।” उन्होंने कहा, “यह वह जगह है जहां 1962 में मेजर शैतान सिंह का शव मिला था। दुर्भाग्य से इसे तोड़ना पड़ा” क्योंकि यह अब बफर जोन में आता है।

जून 2020 में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प के बाद वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर चीन के साथ सैनिकों की वापसी की प्रक्रिया के हिस्से के रूप में बफर जोन बनाया गया था।

हालांकि सरकार ने इस बात से इनकार कर दिया है कि चीन ने भारत के एक “वर्ग इंच” क्षेत्र पर भी कब्जा किया हो। लेकिन स्मारक का तोड़ा जाना इस बात का संकेत है कि 2020 के बाद से पूर्वी लद्दाख में पहले से मौजूद भारत के सैनिक पीछे हट गए हैं।

भारत ने 2020 के संघर्ष में रेजांग ला और एक अन्य दर्रे, रेचिन ला सहित ऊंचाइयों पर कब्जा कर लिया था। लेकिन भारत ने 2022 की शुरुआत में उस समय रेजांग ला पर अपना नियंत्रण खो दिया जब भारतीय और चीनी सेना के बीच बातचीत में यह फैसला लिया गया कि बफर जोन पर सहमति जमीन पर प्रभावी होगी। बफर जोन में बने सभी स्थायी संरचनाओं को दोनों सेनाओं ने तोड़ दिया है या फिर उन्हें वहां से हटा कर कहीं और शिफ्ट कर दिया। इसी क्रम में शहीद मेजर शैतान सिंह का स्मारक भी तोड़ दिया गया।

स्टैनज़िन की ओर से जारी की गई एक तस्वीर से पता चलता है कि स्मारक अक्टूबर 2020 तक भारत के हाथों में था जब कुमाऊं रेजिमेंट की 8वीं बटालियन ने इसका नवीनीकरण किया था।

18 नवंबर, 1962 को हुए युद्ध को इतिहास में साहस और वीरता के प्रमुख उदाहरण के रूप बताया गया है। चार्ली कंपनी के 124 में से 114 सैनिक रेजांग ला में शहीद हो गए थे लेकिन माना जाता है कि उन्होंने शहीद होने से पहले लगभग 1,300 चीनी सैनिकों को मार गिराया था। मेजर सिंह की टुकड़ी में ज्यादातर सैनिक यादव थे जो हरियाणा के रेवाडी से थे।

रेज़ांग ला की लड़ाई का एक नया और बड़ा स्मारक चुशुल घाटी में बनाया गया है जो सामने से लगभग 3 किमी पीछे भारतीय इलाके में है। इसका उद्घाटन 18 नवंबर, 2021 को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने किया था। परिसर में एक संग्रहालय, युद्ध पर एक विशेष वृत्तचित्र दिखाने के लिए एक मिनी थिएटर, एक बड़ा हेलीपैड और पर्यटक सुविधाएं शामिल हैं। लेकिन अनावरण के समय पुराने स्मारक को तोड़े जाने का जिक्र नहीं किया गया।

स्टैनज़िन का कहना है कि “मुखपारी से रेचिन ला और रेजांग ला तक का पूरा इलाका अब तथाकथित ‘बफ़र ज़ोन’ में है और इसमें सैनिकों और नागरिकों सभी के जाने पर रोक है। यहां तक कि हमारे खानाबदोश (चराने वाले) भी गर्मियों में वहां नहीं जा पाते थे।”

जनवरी में नई दिल्ली में पुलिस के वार्षिक सम्मेलन में प्रस्तुत एक शोध पत्र में लेह के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक पी.डी. नित्या ने कहा कि लद्दाख में एलएसी पर काराकोरम दर्रे से चुमार तक भारत के 65 गश्ती बिंदुओं में से 26 भारत के हाथ से निकल चुके हैं।

नित्या के शोध पत्र में तर्क दिया गया है कि चीनी सैनिकों से बचाव के लिए भारत ने “प्ले सेफ” की रणनीति अपनाई है, जिसके परिणामस्वरूप भारत को पहले से नियंत्रित इलाकों से पीछे हटना पड़ा है। कुछ सैन्य विश्लेषकों का अनुमान है कि चीनी सेना ने भारत के दावे वाले लगभग 1,000 वर्ग किमी क्षेत्र पर कब्ज़ा कर लिया है।

भारतीय सेना ने सामरिक युद्धाभ्यास के तहत पूर्वी लद्दाख में कैलाश पर्वतमाला की ऊंचाइयों पर कब्जा कर लिया। ऊंचाईयां हमेशा भारतीय इलाकों के भीतर थीं लेकिन हमेशा उन पर कब्जा नहीं किया गया था केवल गश्त करायी गयी। सितंबर 2020 में गलवान झड़प के बाद भारतीय सेना की 17 (माउंटेन स्ट्राइक) कोर और प्रतिष्ठान 22 या स्पेशल फ्रंटियर फोर्स ने ऊंचाइयों पर कब्जा कर लिया। गलवान झड़प में 20 भारतीय सैनिक शहीद हुए थे।

इस ऑपरेशन के दौरान चीनी और भारतीय टैंक बैरल-टू-बैरल आ गए। इस बात का जिक्र तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल एम एम नरवणे ने अपनी आगामी पुस्तक फोर स्टार्स ऑफ डेस्टिनी में किया है।

लेकिन भारत और चीन के कोर कमांडरों के बीच बातचीत और नई दिल्ली और बीजिंग के बीच राजनयिक और मंत्रिस्तरीय वार्ता में यह फैसला लिया गया कि सैनिक अपने कब्जे वाले इलाकों को खाली करते हुए अपनी-अपनी तरफ पीछे हट जाएंगे। इससे एक “बफ़र ज़ोन” बनेगा और एक नो-मैन्स लैंड। पीछे हटने से पहले दोनों देशों के सैनिकों को सभी मजबूत संरचनाओं को नष्ट करने के लिए कहा गया। शहीद मेजर सिंह का स्मारक उनमें से एक था।

ये बफ़र ज़ोन अप्रैल 2020 से पहले मौजूद जमीनी स्थिति के आधार पर नहीं बल्कि बदली हुई जमीनी स्थिति के अनुसार स्थापित किए गए थे। जिस कारण बिना गश्त वाले इलाके बड़े पैमाने पर भारतीय क्षेत्र में बनाए गए हैं।

भारत और चीन के कोर कमांडरों के बीच अब तक 20 दौर की बातचीत हो चुकी है। चीनी उत्तर पूर्वी लद्दाख में देपसांग घाटी और दक्षिण पूर्वी लद्दाख में डेमचोक में बफर जोन बनाने से इनकार कर रहे हैं और ये दोनों ही भारत के लिए महत्वपूर्ण हैं।

 कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने एक सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा, ‘चीन पर “लाल ऑंख” तो ली मूँद

अपमानित की वीर जाँबाज़ों के बलिदान की हर बूँद। भारत माता के वीर सपूत एवं परम वीर चक्र से सम्मानित, 1962 रेजांग-ला युद्ध के महानायक, मेजर शैतान सिंह के चुशूल, लद्दाख स्थित मेमोरियल को 2021 में ध्वस्त किये जाने की ख़बर बेहद पीड़ादायक है। ख़बरों के मुताबिक़, क्या ये इसलिए किया गया, क्योंकि चीन के साथ बातचीत के बाद से अब वो भारतीय क्षेत्र, बफ़र ज़ोन में आ गया है? भारत सरकार के विदेश मंत्रालय की एक वाक्य की टिप्पणी कुछ नहीं कहती।’

खड़गे ने आगे लिखा, ‘क्यों मोदी जी और शी जिंनपिग की 2014 से आजतक 20 मेल-मिलापों के बाद भी, भारत को देपसांग प्लेन, पैंगोंग त्सो, डेमचौक और गोगरा-हॉटस्प्रिंग क्षेत्र पर मई 2020 के पहले की अपने हिस्से की वस्तुस्थिति बरक़रार रखवाने में मोदी सरकार विफल रही है? क्या ये सच नहीं है कि गलवान में 20 सेना के जवानों के प्राणों की आहुति के बाद मोदी जी ने चीन को क्लीन चिट थमा दी? मेजर शैतान सिंह के नेतृत्व में 13 कुमाऊं की C कंपनी द्वारा रेजांग ला की रक्षा के लिए 113 वीर जवानों का सर्वोच्च बलिदान देश का गौरव है। भाजपा ने उनके मेमोरियल को धराशायी कर देश को एक बार फ़िर अपने नक़ली देशभक्त होने का सबूत दिया है। दुखद है कि यह सरकार चीनी मंसूबों के आगे घुटने टेक चुकी है।’

बता दें कि 1962 की जंग की में 17,000 फीट की ऊंचाई पर कड़कड़ाती ठंड में रेजांग ला में मेजर शैतान सिंह की अगुआई में 13 कुमाऊं रेजिमेंट की 120 सिपाहियों वाली टुकड़ी ने भारी संख्या में आए चीनी सैनिकों का मुकाबला किया था। बाद में मेजर शैतान सिंह और उनकी टुकड़ी के 114 जवानों के शव मिले। बाकी लोगों को चीन ने बंदी बना लिया था। भारत युद्ध हार गया था लेकिन बाद में पता चला कि चीन की सेना को सबसे ज्यादा नुकसान रेजांग ला पर ही हुआ था। चीन के करीब 1800 सैनिक इस जगह मारे गए थे। ये एकमात्र जगह थी जहां भारतीय सेना ने चीनी सेना को घुसने नहीं दिया।

 

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