जिनकी नौकरी गई वे पत्रकार नहीं थे, सेल्समैन थे
मुझे एक चीज बताइए… मैंने एक दुकान खोली। दर्जनों स्टाफ रखे। सारे स्टाफ ने मेरे कहे अनुसार दुकान को चलाने में अपने दिन-रात एक किये। तरह तरह के तड़कदार और मसालेदार आइडिया का इस्तेमाल किया लेकिन दुकान चली नहीं। मैं क्या करूंगा? दुकान बंद कर दूंगा या उसे फिर से चलाने के लिए अब तक हुए घाटे से सीख कर आगे बढूंगा?
आप मेरे सवाल का संदर्भ समझ रहे होंगे। मेरी सहानुभूति है उनसे, जो अचानक एक नौकरी की निरंतरता से बेदखल कर दिये गये। पर सच है कि वे पत्रकार नहीं थे, सेल्समैन थे। वे वैसे ही तकनीकवेत्ता थे, जैसा एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर होता है। उदारवादी बाजार के अपने खेल होते हैं, जिसे वे तब भी समझ रहे थे, जब वो उस खेल में हिस्सेदारी के लिए गये थे। नियति ने उन्हें उनका रास्ता दिखा दिया। बेहतर है वे अपने हक की लड़ाई को व्यापक फलक पर उठाएं और इसे पत्रकारिता के साथ हुआ हादसा न बताएं।