हिंदुओं को चुन-चुनकर बनाया निशाना, पर बांग्लादेश में ‘क्रांति का कुत्ता’ बन भौंक रहा न्यूजलॉन्ड्री: कहा- भारतीय मीडिया ने हिंसा को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया

न्यूजलॉन्ड्री ने यूनुस सरकार के पक्ष में रिपोर्टिंग करते हुए हिंदुओं के खिलाफ हिंसा को न सिर्फ बेहद कम करके बताया, बल्कि मामूली भी साबित करने की कोशिश की।

न्यूजलॉन्ड्रीबांग्लादेश में हिंदुओं पर अत्याचार के अनगिनत मामले सामने आए। आधिकारिक तौर पर 270 से अधिक मामले हिंदुओं के खिलाफ हिंसा से ऐसे रहे, जो रिपोर्ट हुए, बाकियों का कुछ पता नहीं चल पाया। लेकिन पश्चिम मीडिया ने जिस तरह से हिंदुओं पर हिंसा के मामलों को लेकर गुमराह करने जैसी रिपोर्टिंग की, अब उसी रास्ते पर भारत की वापमंथी मीडिया भी चल पड़ी है।

दरअसल, बांग्लादेश की अंतरिम यूनुस सरकार ने भारत से चुनिंदा मीडिया संस्थानों को बांग्लादेश का दौरा करवाया, जिन्होंने विदेशी मीडिया की तरह यूनुस सरकार के पक्ष में रिपोर्टिंग करते हुए हिंदुओं के खिलाफ हिंसा को न सिर्फ बेहद कम करके बताया, बल्कि मामूली भी साबित करने की कोशिश की। ऐसी ही कोशिश न्यूजलॉन्ड्री जैसे संदिग्ध वामपंथी न्यूज पोर्टल की तरफ से भी की गई है।

न्यूज़लॉन्ड्री ने न सिर्फ बांग्लादेश में हिंदू विरोधी हिंसा को कमतर दिखाने का प्रयास किया, बल्कि उसने भारतीय मीडिया को ही निशाना बनाने की कोशिश की। इसी क्रम में न्यूज़लॉन्ड्री की पत्रकार स्मिता शर्मा ने 27 अगस्त को बांग्लादेश से एक ग्राउंड रिपोर्ट प्रकाशित किया, जिसमें उन्होंने हिंसा को कमतर बताने और भारतीय मीडिया को बदनाम करने का प्रयास किया।

रिपोर्ट में दावा किया गया कि बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर हुए हमले बढ़ा-चढ़ा कर पेश किए जा रहे हैं। रिपोर्ट में बांग्लादेशी युवाओं से बातचीत की गई, जिन्होंने देश को सुधारने की इच्छा जताई। हालाँकि, रिपोर्ट में कुछ हिंदू लड़कियों को मंदिर जाते हुए दिखाया गया, जिससे यह सुझाव दिया गया कि हिंदू और उनके मंदिर सुरक्षित हैं। लेकिन मंदिरों में देवी-देवताओं की मूर्तियों के सामने लगे लोहे के जाले बताते हैं कि स्थिति गंभीर है, खासकर 5 अगस्त के बाद से, जब कई मंदिरों को तोड़ा गया और मूर्तियों को खंडित किया गया।

हालाँकि, अवामी लीग के नेताओं पर हमले और भीड़ द्वारा मारे जाने की कई घटनाएँ सामने आई हैं, जिसमें आधिकारिक तौर पर एक ही शहर में 2 दर्जन से ज्यादा आवामी लीग के कार्यकर्ताओं की हत्या भी शामिल है। वीडियो में सामने आया था कि पोराहाटी यूनियन के अध्यक्ष और जेनेदाह सदर उपजिला अवामी लीग के महासचिव शाहिदुल इस्लाम हिरन को भीड़ ने पीट-पीट कर मार डाला और उनका शव जेनेदाह शहर के केंद्र में पैरा छतर में एक मूर्ति से लटका हुआ पाया गया।

आश्चर्य की बात नहीं है कि न्यूज़लॉन्ड्री के रिपोर्टर ने तबस्सुम के दावे का खंडन करने की जहमत नहीं उठाई, क्योंकि संभवतः इसका उद्देश्य असली जानकारी देना नहीं, बल्कि बांग्लादेश में जो कुछ हुआ, उसे छात्र आंदोलन की आड़ में दबाने की थी। न्यूजलॉन्ड्री ने पूरी कोशिश की है कि बांग्लादेश में जो कुछ हुआ, वह एक ‘क्रांति’ थी, छात्रों की क्रांति थी, और लोगों को हिंदुओं के जातीय सफाए के बजाय केवल इसे ही याद रखना चाहिए।

तबस्सुम ने हिंदू विरोधी हिंसा को क्रांति से जोड़कर घुमाते हुए कहा, “इसे पोस्ट-रिवोल्यूशन डिप्रेशन कहते हैं। ये पूरी दुनिया में होता है। हर क्रांति के बाद एक परीक्षा की घड़ी होती है। उसे बस यही समझिए।”

न्यूज़लॉन्ड्री ने बांग्लादेश में हिंदू विरोधी हिंसा पर रिपोर्टिंग के लिए भारतीय मीडिया को घेरा

न्यूजलॉन्ड्री के कामों को कुछ इस तरह से समझा जा सकता है कि न्यूज़लॉन्ड्री ने बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ इस्लामी अपराधों की अनदेखी की और यह दिखाने का प्रयास किया कि छात्र विरोध प्रदर्शन जिहादी पार्टियों जैसे बीएनपी और जमात-ए-इस्लामी द्वारा हाइजैक नहीं हुए थे। इसके विपरीत, इन पार्टियों ने हिंदुओं के खिलाफ हिंसा को बढ़ावा दिया।

न्यूज़लॉन्ड्री ने भारतीय मुख्यधारा की मीडिया की आलोचना की, यह आरोप लगाते हुए कि उन्होंने हिंदू विरोधी हिंसा को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया। स्मिता शर्मा ने एक बांग्लादेशी लड़की से बातचीत में कहा कि भारतीय टेलीविजन मीडिया सरकार के नैरेटिव और एजेंडे के साथ जुड़ा हुआ है। हालाँकि, कुछ स्वतंत्र आवाजें [जिन्हें ‘एंटी-बीजेपी’ माना जा सकता है] भी काम कर रही हैं। विडंबना यह है कि न्यूज़लॉन्ड्री, जो खुद एंटी-बीजेपी/आरएसएस और एंटी-मोदी प्रोपेगैंडा पर फलती-फूलती है, भारतीय टीवी मीडिया पर नैरेटिव सेट करने का आरोप लगा रही थी। यह उनके खुद के काम को भी सवालों के घेरे में लाता है।

इस मौके पर भी स्मिता शर्मा ने उत्तर भारतीयों को निशाना बनाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। शर्मा ने उत्तर भारतीयों को बदनाम करते हुए कहा कि हिंदी भाषी लोग बांग्लादेश में अशांति की रिपोर्ट को अलग नजरिए से देखते हैं, क्योंकि वे ‘व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी’ और फर्जी खबरों के माध्यम से जानकारी प्राप्त करते हैं। वहीं दक्षिण भारत के लोग विभिन्न भाषाएं बोलते हैं और बांग्लादेश व अन्य देशों के प्रति उनकी सोच में कम पूर्वाग्रह होते हैं।

 

न्यूज़लॉन्ड्री की पत्रकार ने आरोप लगाया कि भारतीय मीडिया ने बांग्लादेश में हिंदू विरोधी हिंसा और सामान्य अशांति को “अत्यधिक बढ़ा-चढ़ाकर” पेश किया। हालाँकि कुछ सोशल मीडिया पोस्ट को छोड़ दें, तो कहीं भी घटनाओं को बढ़ा-चढ़ाकर नहीं बताया गया। अगर भारतीय मीडिया के काम करने के तरीके तो शर्मा अतिशयोक्ति कह रही हैं, तो यह हिंदू पीड़ितों के प्रति इस्लामिक हिंसा को लेकर उनकी असंवेदनशीलता दर्शाता है।

 

OpIndia अपनी रिपोर्ट में बता चुका है कि बांग्लादेश में किस तरह से हिंदुओं को निशाना बनाया गया। जिसमें जमात-ए-इस्लामी (JeI) ने हिंदू घरों की सूची तैयार की जिन्हें हमले के लिए चुना गया, और हिंदुओं को धमकी दी गई कि वे अपनी जान बचाने के लिए पैसे और अन्य कीमती चीजें दें। इस्लामियों ने हिंदू मंदिरों को तोड़ा और मूर्तियों को खंडित किया। 5 अगस्त के बाद से 200 से अधिक ऐसे हिंदू विरोधी हमले हुए हैं, जबकि भारतीय और पश्चिमी वामपंथी मीडिया इसे ‘राजनीतिक बदला’ कहकर खारिज कर रही थी।

न्यूजलॉन्ड्री दावा किया कि भारतीय मीडिया ने नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के विरोधियों को “इस्लामिक ताकतें” करार दिया, जबकि यह सच्चाई को छिपाने का प्रयास था कि विरोध राजनीतिक और धार्मिक रूप से प्रेरित थे। CAA से भारतीय मुसलमानों को कोई नुकसान नहीं हुआ था, लेकिन विरोधियों ने हिंसक प्रदर्शनों को बढ़ावा दिया, जो 2020 के दिल्ली दंगों में बदल गए। शर्मा ने यह उल्लेख नहीं किया कि कैसे AAP विधायक अमानतुल्लाह खान ने मुस्लिम भीड़ को उकसाया, कैसे AAP पार्षद ताहिर हुसैन की इमारत में 3000 दंगाई इकट्ठा हुए थे, और पेट्रोल बम जमा किए गए थे। न्यूजलॉन्ड्री ने यह भी नहीं बताया कि कैसे मुस्लिम दंगाइयों ने बेरहमी से IB अधिकारी अंकित शर्मा, हिंदू युवक दिलबर नेगी और कई अन्य लोगों की हत्या की। यह केवल इस्लामिक ताकतें नहीं थीं, बल्कि राजनीतिक और वामपंथी मीडिया की ताकतें भी थीं जिन्होंने CAA का विरोध किया, जो केवल पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आए हिंदुओं और अन्य गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यकों को नागरिकता प्रदान करता है।

इसके अलावा, न्यूज़लॉन्ड्री के पत्रकार ने यह भी आरोप लगाया कि 2020-21 के किसान आंदोलन में हिस्सा लेने वालों को ‘खालिस्तानी’ बताया गया, जबकि हकीकत ये थी कि खालिस्तानी तत्वों ने किसानों के आंदोलन को हाईजैक करने की कोशिश की, लेकिन न्यूजलॉन्ड्री ने ये तथ्य छिपा लिया। वहीं, ऑपइंडिया ने बताया था कि किसानों के विरोध प्रदर्शन के परिणामस्वरूप 60,000 करोड़ रुपये का व्यापार नुकसान हुआ, खालिस्तानी भावनाओं का फिर से उभार, बलात्कार, हत्या, दंगों आदि जैसी कई आपराधिक गतिविधियाँ हुईं।

न्यूजलॉन्ड्री की रिपोर्ट ये साबित करने के लिए काफी है कि क्यों मोहम्मद यूनुस की सरकार ने चुनिंदा भारतीय ‘पत्रकारों’ को ही बांग्लादेश बुलाया। ये साफ है कि उनकी कोशिश बीएनपी और जमात के आतंकियों द्वारा हिंदुओं के खिलाफ किए गए अत्याचारों को छिपाने की थी और दुनिया को ये बताने की भी कोशिश है कि हिंदुओं को निशाना बनाया जाना सिर्फ इस ‘क्रांति’ का कोलेटरल डैमेज था।

मोहम्मद यूनुस की सरकार तो यही चाहती है कि हिंदुओं के धार्मिक सफाए की चर्चा कहीं न हो और न ही इसकी रिपोर्टिंग हो और न ही विरोध, बल्कि इसे ‘कोलेटरल डैमेज’ यानी मामूली नुकसान मानकर चुप्पी साध ली जाए। क्या सरकारी दौरे पर गए भारतीय पत्रकारों को विदेशी धरती पर भारतीय लोगों और मीडिया को बदनाम करना चाहिए, खासकर तब जब वह देश-सरकार बेशर्मी से इस्लामी कट्टरपंथियों को हिंदू और अन्य अल्पसंख्यक समूहों पर अत्याचार करने दे रहा है?

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