सुभाष राय और हरेप्रकाश उपाध्याय के बीच चल रहे शीत युध्द ने लिया संग्राम का रूप

हरेप्रकाशजी अब गाली-गलौज की भाषा पर उतर आये हैं : सुभाष राय

Subhash Rai हरेप्रकाशजी अब गाली-गलौज की भाषा पर उतर आये हैं। यही उनकी मेधा की सीमा है। यह उनकी मूल भूमि है। ऊपर उठकर भी वे इसी में बार-बार गिरते हैं। वे खुद अपनी फेसबुक वाल पर घोषणा करते हैं कि उन्हें 15 सितंबर तक उनका पैसा देने का आश्वासन दिया गया है और 15 तक भी इंतजार नहीं करते। समय पूरा होने के एक हफ्ते पहले ही मुझे मेसेज भेजकर धमकी देते हैं कि जल्द मेरा हिसाब कर दें, मैं विवाद नहीं चाहता, इस मामले को कहीं और नहीं ले जाना चाहता, मैं नहीं चाहता कि शहर में कोई नाटकीय परिस्थिति पैदा हो। यह चालाकी है, धमकी है या मतिभ्रम है, मेरी समझ में नहीं आता। शायद आप सब समझ सकें। वे मोबाइल पर इस्तीफा देते हैं, फेसबुक पर हिसाब मांगते हैं। उन्हें मालूम होना चाहिए कि हिसाब-किताब की एक प्रक्रिया होती है। उन्हें मालूम होना चाहिए कि नौकरी एक मेसेज देकर नहीं छोड़ी जाती है, उसके लिए संस्थान को एक माह पहले सूचना देनी होती है। वे कुछ भी नहीं जानते हों, ऐसा नहीं है। कम से कम उन्हें मेरे इशारे की अहमियत तो मालूम है।

 जनसंदेश टाइम्स, लखनऊ के संपादक सुभाष राय के उपरोक्त कमेंट पर जनसंदेश टाइम्स, लखनऊ में फीचर एडिटर के पद पर कार्यरत रहे हरे प्रकाश उपाध्याय ने क्या प्रतिक्रिया दी, पढ़ें….

Hareprakash Upadhyay श्री सुभाष राय जी, मैंने गाली-गलौज कभी नहीं की, मजदूरी माँगना आपको गाली-गलौज लगता है। 15 सितंबर गुजर जाने के बाद मैंने इस मामले को फेसबुक पर लिखा है। मैंने मेल कर इस्तीफा दिया है। जो संस्थान चार महीने से वेतन नहीं दे रहा हो, उसके लिए नोटिस की कितनी अपरिहार्यता रह जाती है, यह चालाकी आप भी खूब समझते हैं। मैं बिल्कुल चाहता था कि यह मामला शांतिपूर्वक सुलझ जाय, पर बार-बार हिसाब माँगने पर आप लोगों ने जो व्यवहार किया और 15 सितंबर की अंतिम तिथि देकर भी भुगतान नहीं किया। मेरे फोन तक जवाब नहीं मिला, मुझे आपकी तरफ से फोन तक नहीं आया तो मेरे पास चारा ही क्या रह जाता था। मैं अभी भी चाहता हूँ कि मुझे कानूनी सहायता न लेनी पड़े और बात बातचीत से ही सुलझ जाये और बात क्या सुलझनी है, साफ बात है कि काम किया है, उसकी बकाया मजदूरी दे दी जाय।

Subhash Rai ”एक अखबार चलाने वाली कंपनी इतनी नीचता पर उतर आएगी, आप कल्पना भी नहीं कर सकते” या ”अपना नंबर बढ़वाने के लिए सुभाष राज जी अपने सहयोगियों के साथ प्रबंधन की ज्यादती को शह दे रहे हैं….” …यह सब क्या है। जो भाषा और साहित्य की बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, वे क्या इसे आप्त वचन कहेंगे।

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