लखनऊ में शुरू हो गई जगेंद्र के परिजनों को इंसाफ दिलाने की जंग
गज़ब हो गया। पहले यही बड़ी बिरादरी कस्बाई बिरादरी को दलाल के तौर पर पुकारती थी, आज वही लखनऊ-राजधानी वाली की बड़ी बिरादरी के लोगों ने छोटी बिरादरी के पहले कहे गए अदने से ‘दलाल’ पत्रकार शहीद जगेंद्र सिंह को गांधी प्रतिमा पर एक बड़े सम्मलेन में अपनी श्रद्धालियां अर्पित कर दिया। हज़रतगंज के जीपीओ चौराहे स्थित गांधी प्रतिमा पार्क पर खूब भीड़ जुटी। सभी के चेहरों पर आक्रोश था, व्यथा थी, गुस्सा था। यकीन मानिये कि आज मैं बेहद खुश हूँ। आज मुझे अहसास हो गया है कि हम बहुत जल्द ही जगेंद्र सिंह और उसके प्रियजन और मित्रों की जीत हासिल कर सकेंगे। बहुत दिनों बाद आज लग रहा है कि शायद मेरा ब्लड प्रेशर अब संभल जाए। जी भर कर रोने का भी मन कर रहा है।
शाहजहांपुर के जांबाज और बेबाक पत्रकार जागेन्द्र सिंह को जिन्दा फूंक डालने के मामले में पत्रकारों में से कई गुट बन गये थे। सबके अलग-अलग तर्क थे। शुरूआत में तो लखनऊ के ज्यादातर पत्रकारों ने जागेन्द्र सिंह को पत्रकार कहलाने से ही मुंह बिचका दिया था, लेकिन सोशल साइट्स में जब हंगामा मचा, जब जागेन्द्र की मौत हुई, जब मैंने शाहजहांपुर जाकर इस मामले की सघन जांच की, जब प्रमाण दिये कि पत्रकार किस तरह सच्चा पत्रकार था, कैसे पूरी पुलिस, प्रशासन, नेता, पत्रकार और अपराधी मिल कर उसका तियां-पांचा कर देने पर आमादा था, जब पुलिस और सरकार ने इस मामले में कोई भी कार्रवाई न करने का ऐलान किया, जब भारतीय प्रेस काउंसिल ने अपने तीन सदस्यों की एक टीम को शाहजहांपुर जांच करने के लिये भेजा—तब कहीं जाकर लखनऊ में जमे हमारे पत्रकारों की नींद टूटी और उन्होंने जागेन्द्र सिंह को पत्रकार के तौर पर आनन-फानन उसके मुत्युपरान्त उसे पत्रकार की उपाधि अदा कर दिया।