अब इस नई नीति के तहत प्रिंट मीडिया को मिलेंगे सरकारी विज्ञापन…

mibडिजिटल मीडिया की तर्ज पर अब प्रकाशन मीडिया में भी विज्ञापन जारी करने को लेकर सरकार ने एक नई नीति बनाई है, ताकि इसमें भी पारदर्शिता और विश्वसनीयता को बढ़ावा दिया जा सके। यह नई नीति विज्ञापन और दृश्य प्रचार निदेशालय (डीएवीपी) के लिए बनाई गई है।

इस नीति में समाचार एजेंसियों की सेवा लेने वाले अखबारों को वरीयता दी गई है। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने इस नई नीति की रूप रेखा तैयार करते हुए इसमें पहली बार नई मार्केटिंग प्रणाली बनाई है जिसके तहत उन अखबारों को तरजीह दी जाएगी जो नए मानदंडों पर खरे उतरेंगे। इसके तहत प्रत्येक मानदंड के लिए अंक निर्धारित किया गया है।

मंत्रालय द्वारा जारी एक विज्ञप्ति के अनुसार एबीसी या आरएनआई द्वारा अखबारों की संख्या प्रमाणित होने पर 25 अंक, कमर्चारी भविष्य निधि के लिए 20 अंक, यूएनआई, पीटीआई और हिन्दुस्थान समाचार की सेवा लेने पर 15 अंक, अपना प्रेस होने पर 10 अंक तथा प्रेस काउंसिल की सदस्यता लेने पर 10 अंक दिए जाएंगे। इन अंकों के आधार पर ही विज्ञापन दिए जायेंगे।

जारी की गई नई नीति के मुताबिक, डीएवीपी के पैनल में शामिल होने के लिए समाचार पत्र-पत्रिकाओं की प्रसार खंख्या भी निर्भर करेगी। प्रतिदिन प्रसार संख्या 45,000 प्रतियों से ज्यादा होने की स्थिति में कॉस्ट/चार्टर्ड अकाउंटेंट/स्टैच्युअरी ऑडिटर सर्टिफिकेट/एबीसी से मिला प्रमाण पत्र अनिवार्य है। नीति में कहा गया है कि आरएनआई प्रसार प्रमाण पत्र जारी होने की तारीख से दो साल तक के लिए वैध होगा। मौजूदा प्रमाण पत्र को प्रसार प्रमाण पत्र के रूप में इस्तेमाल किया जाएगा।

वहीं इस नीति के मुताबिक, जब भी एक समाचार पत्र के एक संस्करण की प्रतियां एक से अधिक केंद्र पर छपती हैं और यदि समाचार पत्र की सामग्री अलग-अलग है तो उसे अलग संस्करण माना जाएगा। समाचार पत्र के हर संस्करण के लिए एक अलग आरएनआई पंजीकरण संख्या होगी और आरएनआई को प्रसार के सत्यापन के साथ हर संस्करण के लिए अलग इकाई माना जाएगा। हालांकि नीति के दिशानिर्देशों में उल्लेख है कि यदि एक समाचार पत्र अपनी सुविधा के लिए एक संस्करण को एक से ज्यादा प्रिंटिंग प्रेस में छापता है तो उस संस्करण को अंक देते समय इस बात को ध्यान में रखा जा सकता है।

बिलों के भुगतान और समायोजन के लिए नीति में यह अनिवार्य बनाया गया है कि डीएवीपी को अनिवार्य तौर पर ईसीएस या एनईएफटी के माध्यम से विज्ञापन बिलों का भुगतान सीधे समाचार पत्र/कंपनी के खाते में सीधे जमा करना होगा। यह भी उल्लेख किया गया है कि समाचार पत्र डीएवीपी द्वारा जारी रिलीज ऑर्डर मिलने के बाद ही डीएवीपी विज्ञापनों का प्रकाशन करेंगे।

नई नीति में समाचार पत्र-पत्रिकाओं को तीन श्रेणियों में बांटा गया है, जो छोटी (प्रतिदिन 25,000 प्रतियों से कम), मध्यम (25,001-75,000 प्रतियां प्रतिदिन) और बड़ी (प्रतिदिन 75,000 प्रतियों से ज्यादा) हैं, जिसके आधार पर ही विज्ञापन के मानक तय किए गए हैं।

नीति में इस बात का भी उल्लेख है कि पीएसयू और स्वायत्त संस्थाएं डीएवीपी के पैनल में शामिल समाचार पत्रों को सीधे डीएवीपी दरों पर विज्ञापन जारी कर सकती हैं। हालांकि, उन सभी को सभी वर्गीकृत जारी करने और सभी छोटी, मझोली व बड़ी श्रेणियों के विज्ञापनों के प्रकाशन के लिए डीएवीपी द्वारा तय प्रक्रियाओं का पालन करना होगा।

डीएवीपी पहले पृष्ठ पर रंगीन/काला-सफेद के लिए डीएवीपी दरों से 50 प्रतिशत ज्यादा, तीसरे पृष्ठ के लिए 20 प्रतिशत ज्यादा, पाचवें पृष्ठ के लिए 10प्रतिशत ज्यादा और अंतिम पृष्ठ के लिए 30 प्रतिशत ज्यादा प्रीमियम का भुगतान करेगा, जो उन्हीं समाचार पत्रों को मिलेगा, जिनकी प्रसार संख्या एबीसी/आरएनआई द्वारा मान्यता प्राप्त है।

नीति में डीएवीपी के सभी ग्राहकों को नए वित्त वर्ष के पहले महीने के भीतर डीएवीपी को बीते साल के वास्तविक खर्च का 50 प्रतिशत भुगतान अधिकार पत्र/चेक/डीडी/एनईएफटी/आरटीजीएस के माध्यम से करने के लिए निर्देशित किया गया है। साथ ही वित्त वर्ष की 28 फरवरी से पहले बाकी भुगतान करने के भी निर्देश दिए गए हैं। वैकल्पिक तौर पर ग्राहक मंत्रालयों को विज्ञापनों पर अनुमानित खर्च का 85 प्रतिशत तक अग्रिम भुगतान भी करना पड़ सकता है।

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