मजीठिया : ये यूपी सरकार की क्या नौटंकी है

up-majithiyaup-majithiya-2up-majithiya-3अखबारों में काम करने वाले कर्मचारियों को मजीठिया वेतनमान दिलाने के लिए यूपी सरकार ने एक त्रिदलीय समिति बनाने के आदेश दिए हैं। राज्यपाल द्वारा दिए गए इस आदेश में केंद्र का हवाला देते हुए बड़़ी अच्‍छी बातें की गई हैं। अधिसूचना के अनुसार ‘चूँकि क राज्य सरकार की यह राय है कि लोक व्‍यवस्‍था और समुदाय के जीवन के लिये, आवश्यक सभ्भरण और सेवाएं अनुरक्षित रखना और सेवायोजन बनाये रखना आवश्यरक है,
अतएव, अब, संयुक्तन प्रांतीय औद्योगिक झगड़ों का एक्ट , 1947 (संयुक्ता प्रांतीय ऐक्ट
संख्या -28 सन 1947) की धारा-3 के अधीन शक्ति का प्रयोग करके राज्‍यपाल निम्नेलिखित आदेश देते हैं, और उक्त) ऐक्ट कीकी धारा-19 के अधीन यह निर्देश देते हैं कि इस आदेश की सूचना सरकार गजट में प्रकाशित करके दी जायेगी’
इसी आदेश में एक और बहुत ही महरत्वकपूर्ण बात है ‘उक्तो सिमित क?की बैठक अध्य्क्ष के विवेकानुसार आयोजित की जाएगी।
यह आदेश तुरंत प्रवृत होगा और इसमें सम्मिलित मामलों के संबंध दैनिक
समाचार पत्र अधिष्ठा।नों अथवा स्टे ट न्यूज एजेंसियों पर और उनमें नियोजित कर्मकारों पर
प्रारंभिक रूप से तीन वर्षों की अवधि के लिये लागू होगा।
राजेन्द्र कुमार तिवारी
प्रमुख सिचव।‘

इस अधिसूचना के अनुसार त्रिपक्षीय समिति में अमर उजाला के श्री राजूल माहेश्वरी और मेरठ के ‘केसर खुशबू टाइम्सा ” के श्री अंकित विश्नोई को मालिकों की ओर से शामिल किया गया है। आपने इस अखबार का नाम सुना है क्या।

श्री अंकित विश्नोाई का मोबाइल नंबर 8859998884213 भी दिया गया है। इसके पहले गठित त्रिदलीय समिति में माहेश्वंरी के साथ श्री संजय गुप्त को रखा गया था। एक भी बैठक इसकी नहीं हो पाई थी और मालिकों ने इस समिति का बहिष्कार कर दिया था। लेकिन श्रम आयुक्त ने अपने शपथ पत्र में सुप्रीम कोर्ट में समिति के बारे में झूठा वक्तिव्य दिया था।

उठते कई सवाल

1. सवाल है सरकार इस मामले को श्रमजीवी पत्रकार और अन्य समाचार पत्र कर्मचारी (सेवा की शर्तें ) और प्रकीर्ण उपबंध अधिनयम,1955 (अधिनयम -45 सऩ़ 1955) के तहत सुलझाने के बजाय संयुक्त प्रांतीय औद्योगिक झगड़ों का एक्ट , 1947 (संयुक्ति प्रांतीय ऐक्ट संख्या -28 सन 1947) की धारा-3 का प्रयोग क्यों कर रही है। जबकि सुप्रीम कोर्ट का इस मामले में कई बार आदेश आ चुका है। इसका कानूनी पहलू पर विचार किया जाना चाहिए।

2. इस समिति का क्या मतलब है। अमर उजाला के मालिक को तो शामिल किया गया है लेकिन दैनिक जागरण के मालिक को अलग रखा गया है। इससे साफ होता है कि समिति की कोई औकात नहीं होगी। पिछली बार श्री संजय गुप्त के समिति का बहिष्काैर करने से इसकी कोई बैठक ही नहीं हो पाई थी। सिर्फ बैठकें कराना ही मकसद है तो ये ठीक है।

3.आदेश के अंतिम पैरे में कहा गया है कि इसमें सम्मिलित मामलों के संबंध दैनिक समाचार पत्र अधिष्ठानों अथवा स्टेट न्यूज एजेंसियों पर और उनमें नियोजित कर्मकारों पर प्रारंभिक रूप से तीन वर्षों की अवधि के लिये लागू होगा।

इस अनुच्छेद का क्या मतलब है।
यह सब नौटंकी किस लिए हो रहा है।

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