अजित अंजुम ने पूछा-मृणाल जी , आपने ये क्या कर दिया ?

कल पीएम मोदी का जन्मदिन था . देश -दुनिया में उनके समर्थक /चाहने वाले /नेता/कार्यकर्ता /जनता /मंत्री /सासंद / विधायक जश्न मना रहे थे . उन्हें अपने -अपने ढंग से शुभकामनाएँ दे रहे थे . ये उन सबका हक़ है जो पीएम मोदी को मानते -चाहते हैं . ट्वीटर पर जन्मदिन की बधाई मैंने भी दी . ममता बनर्जी और राहुल गांधी से लेकर तमाम विरोधी नेताओं ने भी दी . आप न देना चाहें तो न दें , ये आपका हक़ है . भारत का संविधान आपको पीएम का जन्मदिन मनाने या शुभकामनाएँ देने के लिए बाध्य नहीं करता . आप जश्न के ऐसे माहौल से नाख़ुश हों , ये भी आपका हक़ है . लेकिन पीएम मोदी या उनके जन्मदिन पर जश्न मनाने वाले उनके समर्थकों के लिए ऐसी भाषा का इस्तेमाल करें , ये क़तई ठीक नहीं …हम -आप लोकतंत्र की बात करते हैं . आलोचना और विरोध के लोकतांत्रिक अधिकारों की बात करते हैं ..लेकिन लोकतांत्रिक अधिकारों के इस्तेमाल के वक्त आप जैसी ज़हीन पत्रकार /लेखिका और संपादक अगर अपनी नाख़ुशी या नापसंदगी ज़ाहिर कहने के लिए ऐसे शब्दों और चित्रों का प्रयोग करेगा .. पीएम के समर्थकों की तुलना गधों से करेगा तो कल को दूसरा पक्ष भी मर्यादाओं की सारी सीमाएँ लाँघकर हमले करेगा तो उन्हें ग़लत किस मुँह से कहेंगे …सीमा टूटी तो टूटी . कितनी टूटी , इसे नापने का कोई इंची -टेप नहीं है …सोशल मीडिया पर हर रोज असहमत आवाजों या विरोधियों की खाल उतारने और मान मर्दन करने के लिए हज़ारों ट्रोल मौजूद हैं ..हर तरफ़ /हर खेमे में ऐसे ट्रोल हैं . ट्रोल और आपमें फ़र्क़ होना चाहिए …
आप साप्ताहिक हिन्दुस्तान और हिन्दुस्तान की संपादक रही हैं . हिन्दी और अंग्रेज़ी भाषा पर आपकी ज़बरदस्त पकड़ है . फिर अभिव्यक्ति के लिए ऐसी भाषा और ऐसे प्रतीक क्यों चुने आपने ? सवाल आपके आक्रोश या आपकी नाराज़गी का नहीं है .अभिव्यक्ति के तरीक़े पर है ..

Loading...
loading...

Related Articles

Back to top button