जी हां मैं बैसाख नन्दन हूं। तुम क्या हो?
केजी मार्ग पर अपने अधिकारों की लड़ाई चटाई पर बैठ कर लड़ रहे लोग जब आवाज उठा रहे थे तब भी तुम्हारे मुंह से यही निकला था -बैसाख नंदन।
जब किसी रिपोर्टर को तुमने विज्ञापन का टारगेट पूरा करने के लिए उसके ईमानदारी वाले कार्य को दांव पर लगाकर उसकी योग्यता की जड़ में मठ्ठा डाला था तब भी तुमने उसे यही कहा था – वैशाख नंदन।
जब देश की जनता ने एक चाय वाले को तुम्हारी इच्छा के विरुद्ध प्रधानमंत्री बना दिया तो तुमने देश की जनता से यही कहा था – वैशाख नंदन।
जब up में तुम्हारे साम्प्रदायिक व असहिष्णुता कार्ड को नकारते हुए जनता ने एक पार्टी को विशाल बहुमत प्रदान कर दिया तब तुमने up की जनता को यही कहा था – वैशाख नंदन।
तुम्हारी इच्छा के विरुद्ध जब भारत की सेना ने पाकिस्तान में घुस कर सर्जिकल स्ट्राइक कर दिया था तब भी तुमने यही कहा था – वैशाख नंदन।
तुम पत्रकारिता संस्थान के प्रमुख पद पर आसीन थी फिर भी बोझ उठाने वाले को जिस तरह से हेय दृष्टि से देखा उससे साफ जाहिर है कि तुम्हारे मानसिक संतुलन का दायरा क्या है।
सच तो यह है कि तुम जैसे दूषित , कलुषित विचारकों से नई पीढ़ी गर्दभ ,घोड़ा, खच्चर चू… जैसे शब्दों का प्रयोग धड़ल्ले से होने लगा है।
बहुत सम्मान का भाव था लेकिन लगा कि सार्वजनिक मंचों पर संस्कारों की शेखी बघारने वाले विचारक अंदर से कितने खोखले होते हैं।
और हां जिन लोगों को इस दूषित विचारों वाली महिला के लिए मेरा ‘तुम’ वाला शब्द बुरा लगे वे जहां जहां तुम लगा है वहां वहां ‘आप’ पढ़ लें।
क्योंकि ऐसे कुढ़ माग़ज़ों को समझाना वैशाख नंदनो को पढ़ाने के समान होगा।
यह विचार अफजल प्रेमी गैंग के लोग न पढ़ें।क्योंकि उन्हें अन्यथा ही मानसिक अवसाद होगा।
किसी को बुरा लगा हो तो लगे।हमने जो लिख दिया सो लिख दिया।
देव नाथ के फेसबुक वाल से