इंडिया टुडे v/s रिपब्लिक: ट्विटर से निकल पर प्राइम टाइम शो तक पहुंची अर्णब-राजदीप की लड़ाई

जिस वक्त देश की जनता पेट्रोल की बढ़ी कीमतों से परेशान है। जिस वक्त देश की गिरती अर्थवस्वस्था को लेकर पूरे देश में एक बहस छिड़ी हुई है। और तो और जिस वक्त मीडिया की सबसे प्रिय बन चुकी हनी प्रीत की गुमशुदगी की खबरें पूरे शवाब पर है। ऐसी स्थिति में देश के दो बड़े अंग्रेजी चैनल इन सभी मुद्दों को छोड़ अपने संपादकों के बीच चल रहे आपसी खींच तान को दिखाने में लगे हुए हैं। एक बड़े चैनल के संपादक का कहना है कि दूसरे बड़े चैनल के संपादक ने झूठ बोला है। इस बात को लेकर जंग ऐसी चली कि दोनों गुटों के बीच तलवारें तन गई। मामला इतना बढ़ गया कि एक चैनल ने अपने प्राइम टाइम में इस मुद्दे को उठा दिया। अभी इस मुद्दे पर दूसरे पक्ष की सफाई या यूं कहें कि दो घंटे का कान पकाऊ शो आना बाकि है लेकिन बड़ा सवाल ये है कि क्या दो संपादकों के झगड़े से जनता को कुछ लेना देना भी है?

दरअसल मामला शुरू होता है इंडिया टुडे के कंसलटिंग एडिटर राजदीप सरदेसाई के एक ट्वीट से। राजदीप ने रिपब्लिक चैनल के मैनेजिंग एडिटर अर्णब गोस्वामी का एक वीडियो ट्वीट किया और कहा कि फेंकने की भी हद होती है। दरअसल राजदीप ने जो वीडियो ट्वीट किया वो साल 2013 का था जिसमें अर्णब किसी सभा को संबोधित कर रहे थे। वीडियो में अर्णब गोस्वामी कह रहे हैं कि गुजरात दंगों के दौरान सीएम हाउस से केवल 50 मीटर की दूरी पर दंगाईयों की भीड़ ने उनकी कार पर हमला कर दिया था।

इस वीडियो के साथ राजदीप सरदेसाई ने भी ट्वीट करके लिखा है कि वाउ मेरे दोस्त अर्णब ये दावा कर रहे हैं कि गुजरात दंगों के दौरान सीएम आवास के पास भीड़ ने उनकी कार पर हमला कर दिया था। पर सच्चाई तो ये है कि अहमदाबाद दंगों को उन्होंने कवर ही नहीं किया था।

इस वीडियो पर ही राजदीप ने सवाल उठाए हैं और कहा है कि ये सब उनके साथ हुआ था क्योंकि गुजरात दंगों को उन्होंने कवर किया था। अर्णब दंगे कवर करने गुजरात गए ही नहीं थे। आपको बता दें कि गुजरात दंगों के समय अर्णब और राजदीप दोनों एनडीटीवी में काम कर रहे थे। इस वीडियो के सामने आने के बाद 20/09/2017 को रात 10.30 बजे इंडिया टुडे चैनल पर एक स्पेशल शो चलाया गया जिसमें राजदीप ने अपने लगभग सभी पुराने सहयोगियों (जो गुजरात दंगे को कवर करने गए थे) को इकट्ठा किया और अर्नब के झूठ को बेनकाब कर दिया। लेकिन सवाल ये है कि क्या अर्नब का झूठ इतना बड़ा था, क्या उन्होंने किसी अंतराष्ट्रीय मंच पर झूठ बोला, क्या चार साल पहले 15 साल पुराने घटनाक्रम के बारे में झूठ बोलकर अर्नब को कोई स्टोरी क्रेडिट मिला। और सबसे बड़ा सवाल ये भी है कि क्या संपादक बनने के बाद रिपोर्टिंग के बारे में झूठ बोलकर अर्णब ने संपादकीय गरीमा को ठेंस नहीं पहुंचाई है।

अगर ये वॉर सिर्फ ट्विटर पर ही रहता तो बेहतर था लेकिन इंडिया टुडे चैनल ने इस मुद्दे पर प्राइम टाइम शो कर दिया। सवाल दोनों तरफ से उठना लाजमी है कि क्या किसी चैनल के संपादक को किसी घटना को लेकर झूट बोलना चाहिए। और सवाल ये भी उठता है कि क्या दूसरे चैनल को इस दो संपादकों की आपसी लड़ाई को प्रपागांडा के तहत चैनल पर प्राइम टाइम में चलाना चाहिए वो भी तब जब दोनों ही पत्रकारों ने एनडीटीवी को अलविदा कह दिया है और अपने-अपने क्षेत्र में काफी तरक्की कर चुके हैं।

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