प्रेस क्लब आफ इंडिया मतलब देश का सबसे बड़ा ‘दारू का ठेका’

क्या आपको पता है कि देश के सबसे बड़े शराबखाने यानी प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में भी चुनाव होते हैं। दिल्ली में रायसीना रोड पर चलने वाले प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के नाम को सुनकर हो सकता है कि आपको लगे कि ये पत्रकारों की कोई संस्था है। यह बात सही भी है लेकिन यहां पर होने वाली गतिविधियों पर नजर डालें तो आप समझ जाएंगे कि हम इसे दारू का ठेका क्यों कह रहे हैं। यहां हर रोज लाखों रुपये की शराब पी ली जाती है। ये शराब सब्सिडाइज्ड रेट पर होती है इसलिए बहुत सस्ती पड़ती है। यानी पत्रकारों को दारू पिलाने का ये सारा खर्चा जनता की जेब से जा रहा है। प्रेस क्लब की राजनीति पर कुछ मुट्ठी भर वामपंथी पत्रकार हावी हैं। उन्हीं के दम पर संसद से कुछ कदम दूरी पर बनी ये जगह अय्याशी का अड्डा बनी हुई है।

शराबखाने में भी होता है चुनाव

प्रेस क्लब में हर साल चुनाव भी होते हैं, जिसके जरिए यहां की मैनेजिंग कमेटी चुनी जाती है। इस चुनाव में एक-दूसरे पर जमकर कीचड़ भी उछाले जाते हैं। वजह ये कि प्रेस क्लब में अच्छी खासी कमाई भी होती है। जिस पर कब्जा करने की नीयत से यहां की राजनीति होती है। इनमें चुने जाने वाले ज्यादातर लोग देशविरोधियों को पसंद करने वाले वामपंथी होते हैं। प्रेस क्‍लब के भीतर पत्रकारिता से जुड़ी कोई निशानी आपको मिले न मिले, लेकिन आप वहां पर खुद को एक आलीशान बार में पाएंगे, जहां पर देसी-विदेशी दारू की बोतलों का अंबार सजा रहता है। यहां आने वाले 99 फीसदी लोग सिर्फ दारू पीने ही आते हैं। चुनाव में भी असली मुद्दा शराब ही होता है। चुनाव में फ्री की शराब भी जमकर पिलाई जाती है। प्रेस क्लब की सदस्यता का फॉर्म 300 रुपये में बिकता है। हर साल इसके हजारों फॉर्म बिकते हैं, लेकिन कुछ लोगों को सदस्यता मिलती है। इस तरह से प्रेस क्लब पर एक खास विचारधारा वालों का ही कब्जा कायम है। मेंबरशिप से होने वाली कमाई भी अपने आप में किसी घोटाले से कम नहीं है।

वामपंथी, कांग्रेसी पत्रकारों का अड्डा

प्रेस क्लब ऑफ इंडिया पर हमेशा से वामपंथी और कांग्रेसी विचारधारा वाले पत्रकारों का कब्जा रहा है। यहां तक कि उनके साथी नेता भी यहां आकर शराबखोरी और अपनी राजनीति करते रहते हैं। पिछले दिनों जेएनयू की उपाध्यक्ष शेहला राशिद का एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें वो प्रेस क्लब के दरवाजे पर एक पत्रकार को ‘गेट आउट’ कर रही थी। गौरी लंकेश हत्याकांड से लेकर हवाला के मामले में एनडीटीवी पर पड़े छापों को लेकर विरोध प्रदर्शन यहां पर करवाए गए। यहां पर अक्सर तमाम तथाकथित बड़े पत्रकारों को शराब के नशे में धुत देखा जा सकता है। सोचने वाली बात ये है कि जनता के पैसे पर शराब पीने वाले ये लोग कितनी बेशर्मी के साथ गरीबों और कमजोर तबकों की बातें कर लेते हैं।

मुफ्त की शराब का क्रेज ऐसा है कि एक पत्रकार जो दिल्ली के बाहर है वो फेसबुक पर पोस्ट लिख रहा है कि चुनाव को मिस कर रहा हूं।

प्रेस क्लब के नाम पर हो रही इस दारूखोरी के खिलाफ अक्सर लोग लिखते रहते हैं। हालांकि ऐसे लोगों की संख्या कम ही है।

प्रेस क्लब के बार में एक ब्लैकबोर्ड पर शराब पर चल रहे ऑफर्स की जानकारी दी जाती है। जिस दिन ये तस्वीर ली गई दो पैग पर एक मुफ्त मिल रही थी।

कई जाने-माने मशहूर पत्रकार भी प्रेस क्लब के शराबखाने के नियमित ग्राहक हैं।

प्रेस क्लब में शराब पीकर बेवड़ों की तरह हंगामा करते कथित पत्रकारों को अक्सर यहां देखा जा सकता है।

बीते कई साल से प्रेस क्लब देशविरोधी तत्वों का अड्डा बना हुआ है। जिहादी पत्रकार राना अयूब ने काल्पनिक घटनाओं पर आधारित अपनी किताब गुजरात फाइल्स का विमोचन यहीं पर रवीश कुमार के हाथों कराया था।

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