हम दोयम दर्ज़े के पत्रकार हैं, हमेँ सच की नहीं, सिर्फ एटीएम में आने वाली सैलरी की चिंता है

दीपक शर्मा
दीपक शर्मा
twitter   @deepakIndSamvad

हर दिन के आखिर में, ये तो सोचना ही होगा कि हमने आज क्या खोया, क्या पाया ? दिनभर का अपना ये नफ़ा नुकसान, दिनभर का ये रोजनामचा, जीवन की करनी- कथनी का बहीखाता, आखिर बंद भी कैसे किया जाय ?

लेकिन जीवन के इस डेली रजिस्टर पर, नफे नुकसान की पर्सनल रसीद पर, सिर्फ खोना और पाना ही जीवन का सूचकांक नहीं है। Index of life नही है।

सो एक दिन, मैंने ध्यानचंद के बेटे और पारिवारिक मित्र अशोक ध्यानचंद से पूछ ही लिया ….आप दादा को इस सदी के महानतम खिलाडी के तौर पर तो देखते ही होंगे पर उनका कोई और अक्स भी है आपके जेहन में ?

अशोक खुद एक विश्व विजेता ओलिंपिक स्टार रहे हैं. इसलिए उनका जवाब सुनने को मैं वाकई उत्सुक था. मैं जानना चाहता था कि एक वर्ल्ड चैंपियन का वर्ल्ड चैंपियन पुत्र , जीवन के सूचकांक पर अपने पिता को कैसे आंकता है ?

अशोक भाई के जवाब ने उस दिन मुझे झकझोर दिया.

वे बोले… खिलाडी तो वो बेमिसाल थे ही …लेकिन खिलाडी से बड़े वे एक बेहतर इंसान थे. simple.. down to earth…and soft spoken. अशोक भाई ने बताया कि दादा ने कभी खुद को ध्यानचंद नहीं माना. उन्होंने कहा कि दादा अपने से भी बेहतर खिलाडी, छोटे भाई रूप सिंह को मानते थे. वे इंटरव्यू और मीडिया फोकस से बचते थे. उन्हें देखकर कभी ये लगा ही नहीं कि इतना सरल, सहज इंसान कैसे बर्लिन में हिटलर से भिड़ गया था ?

अशोक भाई की ये बात इसलिए याद आयी क्यूंकि शाम को यूट्यूब पर दिलीप कुमार का एक बेहद पुराना इंटरव्यू देख रहा था। कोई 32 साल पुराना इंटरव्यू था। एंकर ने दिलीप साहब से पूछा कि वो हिंदी सिनेमा के ग्रेटेस्ट एक्टर माने जाते हैं इसलिए अपने चाहनेवालों को क्या पैगाम देंगे ? एंकर ने कसीदाकारी में दिलीप कुमार को सातवे आसमान पर चढ़ा दिया था। कैमरे के सामने पहली बार असहज से दिख रहे दिलीप साहब काफी देर तक चुप रहे….. और फिर एक शेर कहकर उन्होंने खुद को एक नार्मल एक्टर जताने की कोशिश की। लेकिन एंकर उनके जवाब से मुतमईन नहीं था इसलिए उसने फिर वही सवाल दोहराया। दिलीप कुमार ने इस बार अकबर इलाहबादी का शेर पढ़ा. और एंकर से फिर कहा …जब लोग दिलीप कुमार यानी मेरा इस तरह से जिक्र करते हैं तो मुझे लगता है मैं नहीं हूँ दिलीप कुमार… कोई और है। कभी कभी इंसान का अक्स बड़ा हो जाता है। मुझसे बड़ी मेरी तस्वीर कर दी गयी । लेकिन मैं तो वही हूँ। पर…. तस्वीर शायद बड़ी कर दी गयी है। इंटरव्यू में दिलीप साहब का ये अंदाज़ और ये बयान सुनकर मुझे लगा कि वो एक्टर तो बड़े हैं लेकिन उससे भी बड़े इंसान हैं । और इस आधार पर मैं क्या, सारा ज़माना उन्हें फिल्म इंडस्ट्री का एक बेहद कामयाब हस्ती मानेगा.

दोस्तों, ध्यानचंद हों या दिलीप कुमार हों। दोनों ही आज से कई सदियों बाद भी हर तारीख में एक बड़े कद के साथ याद किये जायेंगे. लेकिन इस दौर में, आज मैं जब संसद से सिनेमा और स्टेडियम से स्टूडियो तक देखता हूँ……. तो हर बौना और मक्कार शख्स खुद को 52 गज जताने की कोशिश करता मुझे नज़र आता है। ये मक्कार अपने कद को इतना बढ़ा चढ़ाकर बताते हैं कि आपको दशहरे के मेले में कुम्भकरण और मेघनाद बौने दिखेंगे.

चरित्र से लेकर कालेज की मार्कशीट तक जिनका सबकुछ नकली है। जिनका जीवन छद्म और संस्कार सतही है…. जो घमंड से चूर है और जेहनी तौर पर आत्मकेंद्रित और झूठे हैं, उन्ही का आज नेक्सस है. उन्ही का आज राज है.

जो गोलवलकर की धूल नहीं वो बीएमडब्ल्यू पर सवार होकर हिंदुत्व की सादगी बयान कर रहे हैं। जो दूसरों का पति लेकर भाग गयी वो सिन्दूर की मोटी मांग भरकर सीता चरित्र बता रही हैं। जिनके हाथों पर खून की छीटें हैं वे देश के सबसे बड़ी जाँच एजेंसी का मुस्तकबिल तय कर रहे हैं। जो चोरों को सूली पर चढ़ाने का वचन देकर गद्दी पर बैठे वो काले चोरों की रिहाई के दरवाजे खोलकर उनसे गद्दी का गठबंधन कर रहे है.

सियासत छोड़िये , सुप्रीम कोर्ट का हाल ये है कि आज चीज जस्टिस अपने ऊपर लगे दलाली के आरोप को अपनी ही अदालत में सुनता है। मंत्री से ज्यादा आज दिल्ली में जजों के दलाल राजपथ पर घूम रहे हैं. हत्या से लेकर फ्रॉड तक में बेल के रेट तय हैं।

और चौथे खम्बे का हाल. दलाली के दीमक से समूचा खम्बा ढहता जा रहा है। जो सौ करोड़ रुपए की दलाली करते कैमरे में कैद हुए और तिहाड़ गए…. उन्हें सर्वश्रेष्ठ पत्रकारिता के लिए रामनाथ गोयनका पुरुस्कार से नवाजा गया है। लेकिन कवियों से भी गए गुजरे हैं पत्रकार जो फिर भी पुरुस्कार वापसी की पहल न कर सके।

आदरणीय गोयनका जी, आपने जिस साख वाली पत्रकारिता के मानक तय किये थे, निश्चित तौर पर आपके संस्थान ने ही उसे कलंकित कर दिया है। और इस कलंक के जिम्मेदार आपके अबूझ उत्तराधिकारी नहीं, मेरे जैसे श्रमजीवी पत्रकार हैं।

आज हम सच लिखने- बताने की हिम्मत नहीं कर पा रहे हैं।

हमेँ  सिर्फ एटीएम में आने वाली सैलरी की चिंता है।

हमेँ सरोकार से मतलब नहीं रहा।

जितना झूठ हुक्मरान बोल रहें हैं उससे कहीं ज्यादा हम अख़बारों में परोस रहे हैं।

गोयनका जी किसी को दोष क्यों दे ,गुनाहगार हम ही हैं।

दरअसल आज हम दोयम दर्ज़े के पत्रकार हैं और पत्रकार से भी कहीं ज्यादा घटिया इंसान है। दोनों में से एक में भी अव्वल रहे होते तो आज आपकी आत्मा आहत न होती.

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