Pegasus मामले में पलटा एमनेस्टी, कहा- ‘लिस्ट NSO स्पाइवेयर से संबंधित थी ही नहीं’; पहले PM-प्रेजिडेंट तक को लपेटा था

कई भारतीय पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और नेताओं की फोन टैपिंग को लेकर इजराइल की साइबर सुरक्षा कंपनी पेगासस की भारत में आजकल खूब चर्चा हो रही है। कहा गया कि फ्रांस के एक नॉन प्रॉफिट संस्थान फॉरबिडेन स्टोरीज़ और एमनेस्टी इंटरनेशनल को NSO के फोन रिकॉर्ड का ‘सबूत’ हाथ लगा, जिसे उन्होंने भारत समेत दुनिया भर के कई मीडिया संगठनों के साथ साझा किया।

अब इस कहे गए में नाटकीय U-टर्न है। इज़राइली मीडिया आउटलेट कैलकलिस्ट की एक रिपोर्ट के अनुसार, एमनेस्टी इंटरनेशनल ने अब स्पष्ट किया है कि उसने कभी दावा नहीं किया कि यह लिस्ट NSO से संबंधित थी। रिपोर्ट में कहा गया है, “एमनेस्टी इंटरनेशनल ने कभी भी इस सूची को ‘NSO पेगासस स्पाइवेयर सूची’ के रूप में प्रस्तुत नहीं किया है। दुनिया के कुछ मीडिया ने ऐसा किया होगा। यह लिस्ट कंपनी के ग्राहकों के हितों की सूचक है।”

इसमें कहा गया, “एमनेस्टी, और जिन खोजी पत्रकारों और मीडिया आउटलेट्स के साथ वे काम करते हैं, उन्होंने शुरू से ही बहुत स्पष्ट भाषा में साफ कर दिया है कि यह एनएसओ की सूची ग्राहकों के हितों में है।” – जिसका अर्थ है कि वे लोग NSO क्लाइंट की तरह हो सकते हैं, जिन्हें जासूसी करना पसंद है।

पत्रकार किम जेटटर के अनुसार एमनेस्टी अब अनिवार्य रूप से कह रहा है कि सूची में ऐसे लोग शामिल हैं, जिनकी NSO के क्लाइंट आमतौर पर जासूसी करने में रुचि रखते हैं, न कि वो लोग जिन पर जासूसी की गई। एमनेस्टी का कहना है कि वे शुरू से ही बहुत स्पष्ट थे कि सूची NSO जासूसी टारगेट की सूची ‘नहीं’ थी। हालाँकि उनके ट्वीट इससे इतर कुछ और ही कह रहे थे।

उल्लेखनीय है कि इससे पहले एमनेस्टी इंटरनेशनल ने दावा किया था कि उसकी सिक्योरिटी लैब ने दुनिया भर के मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और पत्रकारों के कई मोबाइल उपकरणों का गहन फॉरेंसिक विश्लेषण किया। इस शोध में पाया गया कि NSO ग्रुप ने पेगासस स्पाइवेयर के जरिए मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और पत्रकारों की लगातार, व्यापक स्तर पर और गैरकानूनी तरीके से निगरानी की है।

एमनेस्टी इंटरनेशनल की सुरक्षा लैब ने 10 देशों के 17 मीडिया संगठनों के 80 से अधिक पत्रकारों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के समूह के फोन टैपिंग का फॉरेंसिक विश्लेषण का दावा किया था। इसमें उसे आधे से अधिक मामलों में पेगासस स्पायवेयर के निशान मिले थे।

अब के दावों से उलट ‘एमनेस्टी इंटरनेशनल’ ने कहा था कि फ्रांस के राष्ट्रपति एमैनुएल मैक्रों का नाम भी उन 14 वर्तमान या पूर्व राष्ट्राध्यक्षों की सूची में शामिल है, जिन्हें कुख्यात इजराइली ‘स्पाइवेयर’ कम्पनी ‘एनएसओ ग्रुप’ द्वारा हैकिंग के लिए टारगेट किया गया था। एमनेस्टी के महासचिव ऐग्नेस कालामार्ड ने कहा था, “इन अभूतपूर्व खुलासों से दुनिया भर के नेताओं को काँप जाना चाहिए।”

रिपोर्ट में कहा गया कि पत्रकारिता संबंधी पेरिस स्थित गैर-लाभकारी संस्था ‘फॉरबिडन स्टोरीज एवं मानवाधिकार समूह ‘एमनेस्टी इंटरनेशनल द्वारा हासिल की गई और 16 समाचार संगठनों के साथ साझा की गई 50,000 से अधिक सेलफोन नंबरों की सूची से पत्रकारों ने 50 देशों में 1,000 से अधिक ऐसे व्यक्तियों की पहचान की है, जिन्हें एनएसओ के ग्राहकों ने संभावित निगरानी के लिए कथित तौर पर चुना।

‘द वाशिंगटन पोस्ट’ की खबर के अनुसार, ‘एमनेस्टी’ और पेरिस स्थित गैर-लाभकारी पत्रकारिता संस्था ‘फॉरबिडन स्टोरीज’ को लीक किए गए 50,000 फोन नंबरों की सूची में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान, दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा और इराक के राष्ट्रपति बरहम सालिह शामिल हैं।

गौरतलब है कि एमनेस्टी की तरफ से यह बयान इजरायली कंपनी NSO द्वारा रिपोर्ट को खारिज करने के बाद आया है। NSO ने जाँच रिपोर्ट पर सवाल उठाते हुए कहा था कि एमनेस्टी इंटरनेशनल और फॉरबिडेन स्टोरीज का डाटा गुमराह करता है। यह डाटा उन नंबरों का नहीं हो सकता है, जिनकी सरकारों ने निगरानी की है। इसके अलावा एनएसओ अपने ग्राहकों की खुफिया निगरानी गतिविधियों से वाकिफ नहीं है।

जासूसी के दावे और इसके उलट दावों के बीच सॉफ्टवेयर बनाने और बेचने वाली इजरायली कंपनी NSO ग्रुप ने साफ कह दिया था कि जिन नंबरों की सूची बताकर कहा जा रहा है कि उनकी जासूसी करने के लिए पेगासस का इस्तेमाल हुआ, वह वास्तविक में उनकी न है और न कभी थी। कंपनी के एक प्रवक्ता ने कहा कि पेरिस के गैर लाभकारी समूह ‘फॉरबिडन स्टोरीज’ ने जो 50 हजार नंबरों का डेटा हासिल किया है, वो उनका है ही नहीं।

प्रवक्ता के मुताबिक, वह NSO की लिस्ट न है और न कभी थी। ये केवल मनगढ़ंत जानकारी है। ये नंबर कभी भी NSO कस्टमरों के निशाने में थे ही नहीं। प्रवक्ता ने यह भी बताया कि बार-बार जो इस लिस्ट में शामिल नामों को लेकर कहा जा रहा है वह बिलकुल झूठ और फर्जी है। इसके साथ ही समूह ने ‘द वायर’ को संबंधित रिपोर्ट छापने पर मानहानि का मुकदमा दायर करने की धमकी दी।

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