न्यूज एक्सप्रेस का स्टिंग सवालों के घेरे में

jogindar singh(जोगिन्द्र सिंह) मई 2014 से पूर्व होने वाले लोकसभा और कुछ विधानसभा चुनावों के मद्देनजर फरवरी माह में 11 ओपिनियन पोल एजैंसियों के अनुचित क्रिया-किलापों का पर्दाफाश करने के लिए एक स्टिंग आप्रेशन किया गया, जिसका कूट नामकरण ‘आप्रेशन प्राइम मिनिस्टर’ रखा गया था। इस स्टिंग के अनुसार यह खुलासा हुआ कि कुछ सर्वेक्षण एजैंसियां आंकड़ों में हेरा-फेरी करने और भ्रामक नतीजे प्रस्तुत करने को तैयार थीं। यह भी खुलासा हुआ कि गत वर्ष करवाए गए सर्वेक्षणों में भी जान-बूझ कर तथ्यों की हेरा-फेरी की गई थी। स्टिंग आप्रेशन करने वाले चैनल ने बताया कि उनका उद्देश्य इस स्कैंडल के पीछे कार्यरत मानसिकता और इरादों को उजागर करना है। आपको बता दें कि स्टिंग न्यूज एक्सप्रेस ने किया है।

टी.वी. चैनल ने जिन बातों को उजागर किया, वे सत्य हो सकती हैं और नहीं भी। परन्तु इस तथ्य से इन्कार नहीं किया जा सकता कि हमारे संविधान में विचारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी है। न तो संविधान ने और न ही किसी कानून में यह बात दर्ज है कि केवल सच्ची बातों की ही अभिव्यक्ति की जाए। पुरानी कहावत है कि ‘बहती गंगा में हाथ धो लो।’ यानि कि यदि झूठ बोलने के विरुद्ध कोई कानून नहीं तो इसका लाभ क्यों न उठाया जाए।

रोजमर्रा के जीवन में भी झूठ बोलना एक प्रकारसे रूटीन बन चुका है और सच्चाई अनेक प्रकार केझूठ और झूठे दावों की परतों के नीचे दबाई जातीहै। चुनाव का मौसम आते ही सभी पार्टियां यह सिद्ध करने के लिए अपना अधिकतर समय और शक्तिलगा देती हैं कि उनकी प्रतिद्वंद्वी पार्टी ढोंगी, झूठे और घोटालेबाज लोगों से भरी हुई है इसलिए शासन करने की योग्यता नहीं रखती। जबकि सच्चाई यह है कि प्रत्येक पार्टी से संबंधित राजनीतिज्ञ किसी भी कीमत पर सत्ता हथियाने के लिए जन सेवक होने की नौटंकी करते हैं।

सरकार द्वारा झूठ बोले जाने और गलत काम किए जाने में अन्तर की रेखा बहुत मामूली है। लोगों को शायद याद नहीं होगा कि 2-जी घोटाले में फंसे संचार मंत्री ए. राजा के इस्तीफा देने के बाद उनके उत्तराधिकारी ने दावा किया था कि सरकार को इस घोटाले के परिणामस्वरूप एक कौड़ी का भी नुक्सान नहीं हुआ। मधु कौड़ा स्कैंडल, जोकि कौड़ा के झारखंड का मुख्यमंत्री होने के दौरान अंजाम दिया गया था, चारा घोटाला-जिसमें पूर्व मुख्यमंत्री को 5 वर्ष की कारावास की सजा हुई, आदर्श हाऊसिंग घोटाला और कई अन्य इसी प्रकार के बदनाम स्कैंडल हैं।

यदि देश में हाल ही में हुए घोटालों की गिनती करनी हो तो सबसे पहले 2013 का हैलीकाप्टर घोटाला, कोयला ब्लाक आबंटन घोटाला, रेल गेट, 2-जी स्पैक्ट्रम, सी.डब्ल्यू.जी. घोटाला, सत्यम कम्प्यूटर घोटाला, 2008 का कैश-फार-वोट घोटाला, उत्तर प्रदेश का राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन घोटाला, टाट्रा ट्रक घोटाला एवं 2014 का शारदा ग्रुप चिट फंड घोटाला दिमाग में आते हैं। हमारा राजनीतिक तंत्र एक के बाद एक घोटाले की मार झेल रहा है। पुराने जमाने के मुकाबले में फर्क केवल इतना है कि उस दौर के घोटाले आज के घोटालों की तुलना में बहुत ही छोटे थे। 2-जी घोटाले की तुलना में 1996 का दूरसंचार घोटाला, जिसमें तत्कालीन संचार मंत्री संलिप्त थे, बिल्कुल ही क्षमा याचना जैसा लगता है। अब वे दिन लद गए जब दहाई के आंकड़े में भ्रष्टाचार हुआ करता था। अब तो करोड़ों और अरबों रुपए के घोटालों का युग आ गया है।

सत्तारूढ़ गठबंधन के राजनीतिज्ञों की करतूतों से हताश कई लोगों ने तो उन पर जूते फैंकने शुरू कर दिए। चुनाव की राजनीति ही ऐसी है कि हम छोटे-छोटे चोरों को तो फांसी पर लटका देते हैं लेकिन बड़े ‘मगरमच्छों’ को ऊंची पदवियों पर आसीन करते हैं। राष्ट्रीय राजधानी में अनेक टी.वी. चैनलों ने न केवल राजनीतिज्ञों बल्कि नौकरशाहों द्वारा की जा रही रिश्वतखोरी और सार्वजनिक धन की चोरी के संबंध में स्टिंग आप्रेशन किए हैं, परन्तु अंत में इनका नतीजा कुछ नहीं निकला क्योंकि सरकार ऐसे कानून पारित करती है जिनका उद्देश्य पीड़ितों की बजाय अपराधियों और चोरों के अधिकारों की चिन्ता करना है। गवर्नैंस में एक नई मर्यादा का प्रवेश हुआ है, जिसे ‘गठबंधन धर्म’ का नाम दिया जाता है। इसका सीधा-सा अर्थ यह है कि किसी भी गठबंधन सहयोगी पार्टी से संबंधित मंत्री के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं होगी। यानि कि प्रत्येक सत्ता सहयोगी को राष्ट्रीय खजाने इस प्रकार लूटने का हक है, जैसे यह उसकी अपनी जेब का पैसा हो।

पड़तालिया वैबसाइट ‘कोबरा पोस्ट’ द्वारा ‘आप्रेशन फाल्कन क्ला’ के नाम से चलाए गए स्टिंग आप्रेशन दौरान भाजपा, बसपा, जद (यू), अन्नाद्रमुक व कांग्रेस से संबंधित ऐसे 11 सांसदों की गुप्त फिल्म बनाई गई, जो 50 हजार से लेकर 50 लाख रुपए तक की राशि दिए जाने पर किसी भी कम्पनी के लिए लॉबिंग करने को तैयार थे। इनमें से 6 ने तो मोटी रकमें लेकर सिफारिशी पत्र तक लिख दिए थे। एक सांसद ने तो यहां तक मांग की कि उसका ‘शुल्क’ हवाला आप्रेटर के माध्यम से भेजा जाए।

6 सांसदों ने ‘मैडीट्रेनियन ऑयल इनकार्पोरेटिड’ नामक एक बोगस कम्पनी के पक्ष में सिफारिशी पत्र लिखकर दिए थे। इनमें से कुछ तो केवल 75000 रुपए लेकर ही इस कम्पनी के लिए लॉबिंग करने को तैयार थे, जबकि कुछ अन्य केवल एक सिफारिशी पत्र लिखने के लिए 5 लाख रुपए से एक कौड़ी भी कम लेने को तैयार नहीं थे। एक मामले में तो एक सांसद ने सिफारिशी पत्र देने के लिए अपना भाव 50 लाख रुपए बताया। यह बिल्कुल ही दिसम्बर 2005 के उस कांड की पुनरावृत्ति जैसा था, जब कांग्रेस, भाजपा, राजद एवं बसपा सहित विभिन्न पाॢटयों से संबंधित 11 सांसदों को संसद में सवाल पूछने के लिए नकद रिश्वत लेते हुए कैमरे में कैद किया गया। उनका एकमात्र लक्ष्य यह था कि अपने प्रभाव और दबदबे का प्रमाण देने के लिए जितना भी पैसा बनाया जा सके, बनाओ।

यहां तक कि अमरीका जैसा विकसित देश भी नेताओं के भ्रष्टाचार से मुक्त नहीं है। कुछ समय पूर्व अमरीका के कंसास राज्य की सीनेट का सत्र शुरू करने के लिए जब पास्टर जोए राइट को आमंत्रित किया गया तो उन्होंने हर किसी की अपेक्षा के अनुरूप घिसे-पिटे शब्द प्रयुक्त करने की बजाय अपनी प्रार्थना यूं शुरू की :

‘‘स्वर्गलोक में बैठे हमारे पिता परमात्मा, हम आपके समक्ष आज क्षमा याचना करने और आपसे दिशा-निर्देशन हासिल करने के लिए प्रस्तुत हुए हैं। हम आपकी इस शिक्षा के बारे में जानते हैं, ‘धिक्कार है उन लोगों पर, जो बुराई को अच्छाई का नाम देते हैं,’ लेकिन हम सबने बिल्कुल यही काम किया है। हम अपना आत्मिक संतुलन खो चुके हैं और अपने जीवन मूल्यों को हमने उल्टे चक्र में घुमा दिया है। हमने गरीबों को लूटा है और इस लूट को लॉटरी का नाम दिया है। हमने आलसी लोगों को पुरस्कृत किया है और इसको कल्याण योजना का नाम दिया है। हमने अपने बच्चों को अनुशासित करने के मामले में लापरवाही बरती और इसको आत्म सम्मान निर्मित करने का नाम दिया। हमने पूरी दुनिया को आतंकित किया और पीड़ितों को आतंकवादियों का नाम दिया। हमने शक्ति का दुरुपयोग किया और इसे राजनीति का नाम दिया। अपने पड़ोसी की सम्पत्ति को देखकर हम लालच पर काबू नहीं रख सके, फिर भी इसे महत्वाकांक्षा का नाम दिया। हमने वातावरण को पोर्नोग्राफी और अश£ीलता से दूषित किया और ऊपर से इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बता रहे हैं। हमने अपने पूर्वजों के जीवन मूल्यों की मिट्टी पलीत की है और ऊपर से इसे नए युग की रोशनी का नाम दे रहे हैं।’’

पूरी ईमानदारी से कहा जाए तो उपरोक्त सच्चाइयों के दृष्टिगत भी हम यह नहीं कह सकते कि लोकतंत्र के रूप में भारत अमरीका की तुलना में बेहतर है। बेहतर यही होगा कि भारत की सरकार मीडिया की स्वतंत्रता के साथ पंगा न ले क्योंकि हर क्षेत्र में हो रहे गलत कार्यों का पर्दाफाश करने में इसने बहुत बड़ी भूमिका अदा की है। अन्य सभी क्षेत्रों की तरह मीडिया में भी काली भेड़ें हैं, लेकिन क्या इनकी वजह से पूरे मीडिया को बदनाम किया जाना चाहिए? वास्तव में तो मैं यह कहूंगा कि सरकार को एक अध्यादेश जारी करके खुद पर यह प्रतिबंध लगाना चाहिए कि वह प्रैस और मीडिया की स्वतंत्रता पर अंकुश नहीं लगाएगी।

आलेख साभार लिया गया है

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