यूपी विधानसभा में पत्रकारों का सेंट्रल हॉल में प्रवेश बंद, केवल सरकारी विज्ञप्ति से बनानी होंगी ख़बरें

उत्तर प्रदेश मान्यता प्राप्त संवाददाता समिति (यूपीएसीसी) भी हालिया कदम से असंतुष्ट है और समिति ने विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना को पत्र लिखकर पत्रकारों को सेंट्रल हॉल में प्रवेश पर रोक लगाने वाले आदेश को रद्द करने का आग्रह किया है.

उत्तर प्रदेश विधानसभा प्रशासन के पत्रकारों को विधानसभा के सेंट्रल हॉल में प्रवेश करने से रोकने के फैसले से मौजूदा बजट सत्र को कवर कर रहे पत्रकारों के बीच काफी नाराजगी है. कइयों ने इसे अलोकतांत्रिक और कुछ ने ‘अपमानजनक’ बताया है.

राज्य के वित्त मंत्री सुरेश कुमार खन्ना ने सोमवार (5 फरवरी) को 2024-25 के लिए राज्य का बजट पेश किया. सत्र 2 फरवरी को शुरू हुआ था, जब पत्रकारों को पता चला कि उन्हें उस हॉल में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी जाएगी जहां से उन्होंने दशकों तक सदन की कार्यवाही की कवरेज की है.

विपक्षी दलों ने भी विरोध प्रदर्शन करने, मीडिया से बातचीत करने और पत्रकारों के सवालों का जवाब देने के लिए सेंट्रल हॉल का इस्तेमाल किया है. कई बार सत्ताधारी दल के नेता भी इसी हॉल में मीडिया से मुखातिब हुए हैं.

पत्रकारों के अनुसार, इस कदम से राज्य विधानसभा को पहले की तरह व्यापक रूप से कवर करना मुश्किल हो गया है क्योंकि मंत्री और विधायक अब तात्कालिक बातचीत के लिए उपलब्ध नहीं होंगे.

बता दें कि 403 सदस्यीय विधानसभा में 113 विधायकों के साथ सपा मुख्य विपक्षी दल है.

कुछ वरिष्ठ पत्रकार इन प्रयासों को सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की एक सुनियोजित रणनीति के रूप में देखते हैं, उनका मानना है कि वह विपक्षी दलों के कवरेज को कम करना चाहती है.

‘इनके इशारे पर नाचो’

उत्तर प्रदेश मान्यता प्राप्त संवाददाता समिति (यूपीएसीसी) भी हालिया कदम से असंतुष्ट है और समिति ने विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना को पत्र लिखकर पत्रकारों को सेंट्रल हॉल में प्रवेश पर रोक लगाने वाले आदेश को रद्द करने का आग्रह किया है.

यूपीएसीसी के अध्यक्ष हेमंत तिवारी ने बताया कि यूपी में हाल के वर्षों में पत्रकारों को लगातार अपमान और हमलों का सामना करना पड़ा है, खासकर राज्य विधानसभा को कवर करते समय.

उन्होंने कहा, ‘इससे पहले, भाजपा के पहले कार्यकाल 2017-2022 के दौरान विधानसभा प्रशासन ने अनुभवी पत्रकारों को विधानसभा की लॉबी में प्रवेश से वंचित करके और उनके लिए लॉबी पास जारी नहीं करके अपमानित किया था. अब अपने दूसरे कार्यकाल में वे मीडिया कर्मियों को सेंट्रल हॉल में प्रवेश करने से रोककर फिर से वही काम कर रहे हैं.’

तिवारी ने कहा कि अब वीडियोग्राफरों और फोटो पत्रकारों के लिए भी विपक्षी दलों द्वारा आयोजित विरोध प्रदर्शनों की तस्वीरें खींचना और वीडियो बनाना मुश्किल हो जाएगा. उन्होंने कहा, ‘प्रेस कक्ष पहली मंजिल पर है, जहां मीडिया से बात करने कोई नहीं आएगा और पत्रकारों को मंत्रियों-विधायकों से सवाल करने का मौका नहीं मिलेगा. अब वे केवल सरकारी विज्ञप्ति से ही खबरें लिखेंगे.’

तिवारी ने पत्रकारों के लिए विधानसभा हॉल के पास एक अलग कक्ष या सेंट्रल हॉल तक पहुंच की मांग की है.

वरिष्ठ पत्रकार शरत प्रधान का मानना है कि भाजपा एक अलोकतांत्रिक दल है और वे विपक्ष की आवाज को दबाना चाहते हैं.

प्रधान ने कहा, ‘यह सरकार केवल उन्ही मीडिया संस्थानों को बढ़ावा देती है जो उसके इशारों पर नाचते हैं और उन पत्रकारों को नापसंद करती है जो आलोचनात्मक खबरें लिखते हैं या सरकार से सवाल पूछते हैं.’

‘सीमित जगह’

एक अन्य पत्रकार विजय मिश्रा ने कहा कि उन्होंने भी इस कदम के बारे में अपनी चिंता व्यक्त करने के लिए अध्यक्ष महाना से मुलाकात की और महाना ने उन्हें पत्रकारों के लिए वैकल्पिक व्यवस्था करने का वादा किया.

हालांकि, मिश्रा का मानना है कि पत्रकारों के कवरेज के लिए विधानसभा में सेंट्रल हॉल सबसे अच्छी जगह थी.

मिश्रा ने कहा कि यह अविश्वसनीय रूप से दुर्भाग्यपूर्ण है कि जो सेंट्रल हॉल पहले पत्रकारों के जुटने के जगह होता था, अब एक ऐसी जगह में तब्दील हो गया है जहां विधायक और मंत्री कथित तौर पर विधानसभा के कामकाज के दौरान आराम कर सकते हैं. वे सवाल करते हैं, ‘क्या विधायक विधानसभा में आराम करने आ रहे हैं या अपने विधायी कर्तव्यों का पालन करने के लिए आ रहे हैं?’

उधर, विधानसभा अध्यक्ष महाना ने कहा, ‘हमने मीडियाकर्मियों को विधानसभा से हटाया नहीं है, बल्कि उन्हें दूसरी जगह ट्रांसफर किया है.’

महाना के मुताबिक, यह आम बात है. उन्होंने कहा, ‘पहले राजनीतिक दलों को आवंटित कक्ष भी बदले गए थे.’

यह पूछे जाने पर कि ऐसा क्यों है कि विधानसभा भवन में मौजूदा प्रेस कक्ष में सभी पत्रकारों के लिए पर्याप्त जगह नहीं है, उन्होंने जवाब दिया कि जगह सीमित है.

बता दें कि उत्तर प्रदेश में करीब 950 पत्रकार मान्यता प्राप्त हैं. अधिकांश मीडिया संगठन विधानसभा की कार्यवाही को कवर करने के लिए मान्यता प्राप्त पत्रकारों को नियुक्त करते हैं.

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