550 पत्रकारों को इंक्रीमेंट-प्रमोशन नहीं देगा दैनिक जागरण

अपने पत्रकार तथा गैर पत्रकार कर्मचारियों का शोषण तो सभी मीडिया घराने करते हैं. कोई थोड़ी कम कोई ज्‍यादा. पर अगर कोई अपने कर्मचारियों का खून पीता है तो नि:संदेह दैनिक जागरण समूह ही है. इस मीडिया संस्‍थान के मालिक गुप्‍ताज की चले तो वे बिना पैसे दिए ही अपने कर्मचारियों से काम कराएं.  मजीठिया वेज बोर्ड ना देना पड़े इसके लिए यह संस्‍थान सारे जतन, प्रबंध कर रहा है. जागरण अपने कर्मचारियों को तरह तरह से मानसिक प्रताड़ना दे रहा है. उनकी नौकरी जाने का धौंस दिखा रहा है, तबादला करने की धमकियां मिल रही हैं ताकि डर से कोई पत्रकार मजीठिया मांगने की हिम्‍मत ना करे. बताया जा रहा है कि जागरण पिछले दिनों इंक्रीमेंट और प्रमोशन के लिए पिछले दिनों हुए परीक्षा में शामिल अपने पत्रकारों में से लगभग 550 पत्रकारों को इंक्रीमेंट और प्रमोशन नहीं देगा. प्रबंधन ने आरोप लगाया कि इन पत्रकारों की कॉपियां एक दूसरे से मैच कर गई हैं. इसी आरोप के चलते इन लोगों को इंक्रीमेंट तथा प्रमोशन नहीं दिया जाएगा. हालांकि सूत्र बता रहे हैं कि यह तो मात्र एक बहाना है ताकि इसी दबाव में ये लोग मजीठिया वेज बोर्ड की मांग न करें, बल्कि दबाव में रहें और नौकरी बचाने की चिंता करें. हालांकि प्रबंधन का कॉपी मैच करने का दावा जागरण समूह के आंतरिक परीक्षा व्‍यवस्‍था की पोल भी खोल रहा है. साथ ही प्रबंधन की गलत मानसिकता की परत भी खोल रहा है. पिछले तीन साल से जागरण इस तरह से ही आंतरिक परीक्षा का आयोजन करता आ रहा है. शुरुआती दो परीक्षाओं में इस तरह की एक भी शिकायत सामने नहीं आई. किसी भी पत्रकार का इंक्रीमेंट इस आधार पर नहीं रोका गया कि उनकी कॉपी मैच कर गई है. लेकिन इस बार प्रबंधन नए तरह के आरोप के साथ सामने आया है. वैसे भी पिछले दो बार हुई परीक्षा में आए अंक के आधार पर किसी को इंक्रीमेंट या प्रमोशन नहीं मिला, बल्कि पुरातन व्‍यवस्‍था के तहत संपादकों तथा वरिष्‍ठों के कृपा पात्रों को ही इसका लाभ मिल पाया था. इस बार भी ज्‍यादातर संपादकों की मर्जी ही चली है. हां, इस बार नई बात यह हुई है कि प्रबंधन ने पांच सौ से ज्‍यादा पत्रकारों को इंक्रीमेंट ना देने का फैसला कॉपी मैच कर जाने के आधार पर दिया है. अब सवाल यही है कि जब परीक्षा ऑन लाइन होनी है, एक साथ होनी है तो थोड़ी बहुत पूछताछ तो संभव ही है. जब परीक्षा व्‍यवस्‍था ही लचर है तो दोष पत्रकारों पर क्‍यों?  हालांकि कुछ पत्रकार आरोप लगाते हैं कि जानबूझकर ऐसे आरोप और परीक्षा प्रक्रिया अपनाई गई है ताकि पत्रकारों को डरा धमकाकर अपनी मनमानी की जा सके. वहीं कुछ पत्रकार कहते हैं कि यह सब ड्रामा इसलिए किया जा रहा है ताकि पत्रकार मजीठिया वेज बोर्ड को लेकर कोई आवाज ना उठा सके. सारा का सारा खेल मजीठिया किसी भी तरह ना देना पड़े इसके लिए किया जा रहा है. वैसे भी अपने पत्रकारों का शोषण करने वाला यह समूह पत्रकारिता को भ्रष्‍टाचार के गड्ढे में ढकेलने का भी आरोपी है. पेड न्‍यूज की शुरुआत इसी अखबार ने की थी. अपने कर्मचारियों को सबसे कम पैसा यही संस्‍थान देता है. और मानता है कि पत्रकार बैनर के नाम पर उपरी कमाई कर लेगा. आज भी हजारों की संख्‍या में मौजूद इस अखबार के संवाद सूत्रों को तीन सौ से लेकर हजार बारह सौ रुपए ही मिलते हैं. कुछ को तो वो भी नहीं मिलता है. जागरण प्रबंधन अपने संवाद सूत्रों को सांड़ बनाकर चरने खाने के लिए छोड़ देता है. मजबूर संवाद सूत्र बैनर का नाम लेकर सांड़ों की तरह किसी के भी खेत में घुसकर चरते-खाते हैं और पत्रकारिता बदनाम होती है. भ्रष्‍ट होती है.

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