प्रदीप सिंह के मजीठिया प्रकरण के बाद जागरण में हड़कंप, परेशान और घबराए हैं संजय गुप्ता

jagranदैनिक जागरण में दशकों से काम कर रहे प्रदीप सिंह के प्रबंधन और संपादकीय विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों से मजीठिया वेतन बोर्ड की सिफारिशों को लागू करने के बारे में पूछने पर आईटीओ (दिल्ली राज्य ब्यूरो कार्यालय) से सजा के तौर पर तबादला कर नोएडा भेज दिया गया। लेकिन इस घटना के बाद जागरण के संपादकीय विभाग में हड़कंप मच गया है। खबर है कि अखबार के मालिक-सह प्रधान संपादक-सह मुख्य कार्यकारी अधिकारी संजय गुप्ता अपनी विदेश यात्रा को बीच में ही छोड़ कर मॉरिशस से वापस आ रहे हैं। बताया जा रहा है कि इस मामले को जिस तरह से हैंडल किया गया उससे वे काफी परेशान और घबराए हुए हैं।
क्या है प्रदीप सिंह प्रकरण

प्रदीप आईटीओ कार्यालय में रिपोर्टिंग कर रहे थे। यह किसी से छिपा नहीं है कि अखबार अपने श्रमजीवी पत्रकारों का किस तरह शोषण कर रहा है। इसमें कुछ पत्रकारीय बिचौलिये मालिक का खूब साथ दे रहे हैं। शोषण के खिलाफ और हक के लिए प्रदीप ने नए बने स्थानीय संपादक विष्णु त्रिपाठी, समाचार संपादक बृजबिहारी चौबे और महाप्रबंधक नीतेंद्र श्रीवास्तव से फोन पर जानना चाहा कि क्या संस्थान सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आलोक में मजीठिया वेतन मान लागू कर रहा है या नहीं। अगर कर रहा है तो उनका कितना एरियर और वेतन बनता है।

बताया जाता है कि प्रदीप सिंह के इस तरह मजीठिया वेतनमान के बारे में पूछने पर विष्णु त्रिपाठी छनक गए और तुरंत दिल्ली इंचार्ज सौरभ श्रीवास्तव को फोन पर आदेश दिया कि प्रदीप सिंह को फौरन ही आदेश थमा दो कि उसका तबादला नोएडा डेस्क पर कर दिया गया है।

बेचारे सौरभ श्रीवास्त (एक समय नोएडा में डीएनई भी रह चुके हैं) ने मरता क्या न करता वाली मजबूरी में प्रदीप को बस एक एसएमएस ठोक दिया। एक समय कांग्रेस के बारे में कहा जाता था कि ‘न खाता न बही जो केसरी कहे वही सही।’ अब यही दैनिक जागरण पर भी लागू हो रहा है। सही बात कहने वालों को बिना लिखा पढ़ी के इस तरह परेशान किया जा रहा है। लेकिन बात यहीं खत्म नहीं हुई। समझा जाता है प्रदीप को प्रबंधन और संपादकीय विभाग के अधिकारियों द्वारा परेशान किया जा रहा है।

यह पहली घटना नहीं है

अगर पुरानी घटनाओं को छोड़ भी दें तो मजीठिया बोर्ड की सिफारिशों के मामले में सुप्रीमकोर्ट का फैसला आने तथा विष्णु त्रिपाठी के स्थानीय संपादक बनने के बाद इस तरह की घटनाएं लगातार घट रही हैं. संपादकीय विभाग के कई सदस्यों को चमचों के कहने पर बेवजह परेशान किया जाता रहा है। जो चमचों के कहने में नहीं आते उन्हें नौकरी से निकालने और सजा के तौर पर दूरदराज ट्रांसफर किया जा रहा है। नोएडा में चीफ सब एडीटर श्रीकांत सिंह के मामले का भी यहां जिक्र करना बेवजह नहीं होगा। उन्हें परेशान करने के लिए जम्मू तबादला करवा दिया गया। इससे पहले नोएडा में मुख्य उपसंपादक रहे अशोक राणा को भी उन लोगों की गलती के लिए बलि का बकरा बनाया गया जिनमें से एक हाल ही में सहायक संपादक बना है और दूसरा किशोर झा के स्थान पर प्रभारी कम समाचार संपादक की कुर्सी से नवाजा जा चुका है।

इसी तरह राधेश्याम तिवारी और बिजॉय सुदामा का भी तबादला किया गया। दिल्ली डेस्क के इंचार्ज रहे तस्लीम की भी नौकरी जाने के पीछे इन्हीं तत्वों का हाथ बताया जाता है। हाल ही में वाराणसी से आई एक युवा महिला पत्रकार ने जब शारीरिक शोषण का आरोप लगाया तो उसको नौकरी से हाथ धोना पड़ा। अभी भी एक महिला पत्रकार को बिना वजह परेशान करने की खबर मिल रही है। यह महिला पत्रकार भी स्थानीय संपादक समेत अन्य लंपट और बिचौलया तत्वों के उत्पीड़न के खिलाफ कानूनी विकल्प का सहारा लेने जा रही है।

इस स्थानीय संपादक के कोप का शिकार दैनिक जागरण की दिल्ली-एनसीआर यूनिट के ज्यादातर पुराने संपादकीय कर्मचारी भी बने हैं। मजीठिया की छोड़िये, योगेंद्र झा, विश्वनाथ, हरेंद्र, संतोष पांडे, मुकेश पंडित, पिंकी राय, बिजय सुदामा, राधे तिवारी समेत 12 से ज्यादा पत्रकारों को सालाना इंक्रीमेंट से भी महरूम कर दिया गया है। इसकी वजह से सभी कुछ चुनिंदा चंपुओं को छोड़कर पुराने जागरण कर्मियों में भारी उबाल है।

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