यूं ही नहीं कोई बन जाता है शिशिर सिंह : बेमिशाल 6 साल, अबतक के सबसे सफल सूचना निदेशक

पूर्व के जितने भी निदेशक आए, रहे उन्होंने हमेशा बड़े अखबार वालों को तवज्जो दी। बड़े अखबार वालों को जमकर विज्ञापन दिया है, लेकिन जो लघु मीडिया कर्मी व लघु अखबार वाले हैं, वह हमेशा हैण्ड टु माउथ रहते थे। कभी उनकी बच्चों की फीस नहीं जमा होती थी। कभी दवाइयों के लिए पैसे नहीं होते थे। कभी घर में राशन नहीं होता था।

यू ही नहीं कोई शिशिर सिंह बन जाता है। मैं चर्चा कर रहा हूं उत्तर प्रदेश के सबसे चर्चित आईएएस अधिकारी और सूचना विभाग में निदेशक के तौर पर इतिहास रचने वाले शिशिर सिंह की।

वह शिशिर सिंह जिन्होंने अपने पूर्व के सारे निदेशकों के कार्यकाल के इतिहास को तोड़ते हुए आज कम से कम साढ़े पांच साल से निदेशक के तौर पर काम कर रहे हैं। मैं उनके लिए सिर्फ इतना ही कहना चाहूंगा, जबकि मेरा उनसे किसी प्रकार का संवाद नहीं है। किसी प्रकार का कोई विज्ञापन और सूचना विभाग से संबंधित किसी प्रकार का रिश्ता नहीं है, लेकिन जो मैंने देखा-सुना है, जो मैंने महसूस किया है, मैं उस शिशिर सिंह की चर्चा कर रहा हूं।

पूर्व के जितने भी निदेशक आए, रहे उन्होंने हमेशा बड़े अखबार वालों को तवज्जो दी। बड़े अखबार वालों को जमकर विज्ञापन दिया है, लेकिन जो लघु मीडिया कर्मी व लघु अखबार वाले हैं, वह हमेशा हैण्ड टु माउथ रहते थे। कभी उनकी बच्चों की फीस नहीं जमा होती थी। कभी दवाइयों के लिए पैसे नहीं होते थे। कभी घर में राशन नहीं होता था।

ऐसे में सिर्फ शिशिर सिंह का सूचना निदेशक बनकर लगातार लंबे समय तक टिके रहना उन लोगों की दुआ का भी असर है जिनके घर में कभी चूल्हे नहीं जला करते थे, जिनके बच्चों की कभी फीस जमा नहीं हो पाती थी।

श्यामल ‘भड़ास महाराज’

लखनऊ। उत्तर प्रदेश सूचना एवं जनसंपर्क विभाग बहुत महत्वपूर्ण विभाग माना जाता है। यह विभाग प्रदेश के समस्त समाचार पत्रों,पत्रकारों को साथ लेकर प्रदेश में सरकार द्वारा किए जा रहे विकास कार्यो एवं उनकी जन कल्याणकारी योजनाओं को समाचार पत्रों के माध्यम से जन-जन तक पहुंचाने का कार्य करता है।

ऐसे प्रमुख विभाग का मुखिया और निदेशक होना गौरव की बात है। निदेशक शिशिर सिंह इस जिम्मेदारी को लगभग 6 वर्षों से बखूबी निभा रहे हैं। जोकि प्रदेश के विभागीय कर्मचारियों, पत्रकारों और समाचार पत्रों के कार्यो की समुचित समीक्षा करते हुए प्रदेश को अग्रिम पंक्ति में पहुंचाने का कार्य कर रहे हैं।

इतने बड़े सूबे का निदेशक होने पर,अगर देखा जाए तो सभी को संतुष्ट नहीं किया जा सकता,फिर भी शिशिर प्रदेश का नेतृत्व कर इसे नई दिशा देने के लिए प्रयासरत हैं।अगर देखा जाए तो शिशिर को प्रदेश के मुखिया योगी आदित्यनाथ के अति विश्वसनीय अधिकारियों की श्रेणी में गिना जाता है।

24×7 प्रो-ऐक्टिव मोड में रहते हैं यूपी के सूचना निदेशक शिशिर सिंह, काश दस परसेंट ब्यूरोक्रेट भी ऐसे हो पाते!

पत्रकारिता जगत में अति लोकप्रिय और संवेदनशील व्यक्तित्व के रूप में पहचान बना चुके शिशिर जी ने पद प्रतिष्ठा के साथ उसकी गरिमा को बनाए रखना, ऊंचे पद पर रहकर भी कर्मचारियों पत्रकारों एवं समाचार पत्रों और जनमानस की सेवा, सामंजस्यपूर्ण निभाना बहुत ही कम अधिकारियों में देखने को मिलता है। अपनी इसी सराहनीय शैली के लिए पहचाने जाते हैं।

नौकरशाह मतलब फाइल अटकाने वाला, रोकने वाला, पब्लिक को परेशान करने वाला। परसेप्शन यही है। यही सुनता देखता आया हूँ। पर यहाँ तो मामला उल्टा है। इन्हें देख कर लगता है ऐसे ही कुछ लोग रीढ़ होते हैं किसी शासन व्यवस्था की। ये लोड लेते हैं, pain लेते हैं। 24×7 प्रो-ऐक्टिव मोड में रहते हैं।

अपने विभाग के साथ साथ दूसरे विभागों की शिकायतों को हैंडल करते। शिशिर जी ख़ुद तो फटाफट काम करते ही हैं, अपने विभाग वालों को भी दौड़ाए रहते हैं। अटकाने भटकाने वाली लालफ़ीताशाही की परंपरागत नीति को इन्होंने उलट दिया है।

कुछ ऐसा ही स्पार्क नवनीत सहगल जी में हुआ करता था। सहगल साहब रिटायर हो गए लेकिन उनकी स्टाइल-तेवर शिशिर जी के रूप में अब भी ज़िंदा है। लोग बताते हैं कि कभी सहगल साहब की टीम के प्रमुख सदस्य शिशिर जी हुआ करते थे, उनकी ही ट्रेनिंग है, इसीलिए उसी स्टाइल के साथ अब ख़ुद टीम लीडर हैं!

उत्तर प्रदेश सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के निदेशक शिशिर सिंह पत्रकारों के हितकारी भी हैं। यह बात हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि शिशिर सिंह अत्यंत सरल स्वभाव और हृदय के धनी अधिकारी हैं। जो हमेशा पत्रकारों के हित के लिए खड़े रहते हैं। देखिए क्या लिखते हैं वरिष्ठ पत्रकार सुशील दूबे सोशल मीडिया पर:-

उत्तर प्रदेश सिर्फ दस परसेंट भी बड़े अधिकारी सूचना निदेशक शिशिर जी की कार्यशैली को अपना लें तो उत्तर प्रदेश उत्तम प्रदेश बन जायेगा।

मिलने वाला कोई एप्लीकेशन लेकर आता तो उससे ख़ुद ही माँग कर पढ़ने के बाद आर-पार का निर्णय कलम से दर्ज करते हुए कागज अधीनस्थ को सौंप समुचित निर्देश दे देते!

नौकरशाह मतलब फाइल अटकाने वाला, रोकने वाला, पब्लिक को परेशान करने वाला। परसेप्शन यही है। यही सुनता देखता आया हूँ। पर यहाँ तो मामला उल्टा है। इन्हें देख कर लगता है ऐसे ही कुछ लोग रीढ़ होते हैं किसी शासन व्यवस्था की। ये लोड लेते हैं, pain लेते हैं। 24×7 प्रो-ऐक्टिव मोड में रहते हैं।

अपने विभाग के साथ साथ दूसरे विभागों की शिकायतों को हैंडल करते। शिशिर ख़ुद तो फटाफट काम करते ही हैं, अपने विभाग वालों को भी दौड़ाए रहते हैं। अटकाने भटकाने वाली लालफ़ीताशाही (रेड टेपिज्म) की परंपरागत नीति को इन्होंने उलट दिया है।

कुछ ऐसा ही स्पार्क नवनीत सहगल जी में हुआ करता था। सहगल साहब रिटायर हो गए लेकिन उनकी स्टाइल-तेवर शिशिर जी के रूप में अब भी ज़िंदा है। लोग बताते हैं कि कभी सहगल साहब की टीम के प्रमुख सदस्य शिशिर जी हुआ करते थे, उनकी ही ट्रेनिंग है, इसीलिए उसी स्टाइल के साथ अब ख़ुद टीम लीडर हैं!

ऐसे दौर में जब मीडिया हाउसेज़ बिज़नेस के लिए सरकारों के आगे नतमस्तक होते हैं, महान संपादक लोग बिज़नेस प्लान लेकर सूचना निदेशकों से याचक की मुद्रा में मिलते हैं, ये सूचना निदेशक का पद बहुत पावरफुल हो चुका है। ये दरअसल सीएम के मूड को परिलक्षित करने वाला बैरोमीटर विभाग है। सूचना विभाग नाराज तो समझो मीडिया हाउस से सीएम नाराज़! इसलिए सूचना निदेशक आज के दौर में मिनी सीएम से कम नहीं होते! बहुत पावरफुल पद हो चुका है सूचना निदेशक का। बावजूद इसके शिशिर इतने सहज और त्वरित हैं तो एक तारीफ़ होनी बनती है।

निश्चित रूप से उत्तर प्रदेश के सूचना निदेशक शिशिर के कार्यकाल में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के द्वारा किए गए कार्यों को जन-जन तक पहुंचाना शिशिर के सराहनीय कामों में से एक रहा है।

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