हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन
दिल के ख़ुश रखने को ‘ग़ालिब’ ये ख़याल अच्छा है।
दयानंद पांडेय
2024 में अनुमान से कहीं अधिक नरेंद्र मोदी की हाहाकारी जीत 1984 के राजीव गांधी की कांग्रेसी जीत को मात देने जा रही है। तब इंदिरा लहर थी, अब की राम लहर है। बतर्ज राम से बड़ा राम का नाम। बड़े-बड़े अक्षरों में कहीं यह लिख कर रख लीजिए। स्क्रीनशॉट ले कर रख लीजिए। ताकि सनद रहे और वक़्त ज़रूरत काम आए। आलम यह है कि जनता के बीच कभी भूल से भी नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ कोई टिप्पणी कर देने पर जनता मारने के लिए दौड़ा लेती है। समय पर चुप न हो जाइए तो पिटने की नौबत आ जा रही है। हालां कि राजनीति और चुनाव में असंभव जैसा शब्द कभी नहीं होता। कभी भी कुछ भी संभव हो सकता है। अपराजेय कहे जाने नरेंद्र मोदी भी कभी न कभी हार सकते हैं पर अभी और बिलकुल अभी तो नामुमकिन है।
2024 के इस चुनाव में मोदी के 400 पार के टारगेट को रोक पाना किसी भी के लिए असंभव सा ही दिखता है फ़िलहाल। 400 पार नहीं, न सही, 400 के आसपास तो है ही। दस-पांच सीट आगे-पीछे हो सकती हैं। बस। बहुत ज़्यादा उलटफेर होता नहीं दीखता, 2024 की चुनावी धरती पर। विकास के असंख्य काम तो हैं ही भाजपा और एन डी ए के खाते में। आगे की रणनीति भी अदभुत है। भारत के इंफ्रास्ट्रक्चर पर जो लाजवाब काम किए हैं मोदी ने वह तो न भूतो, न भविष्यति। सड़कों का महाजाल, एयरपोर्ट, रेल, अंतरिक्ष हर कहीं धमाकेदार उपस्थिति। तिस पर गरीबों को मुफ़्त राशन, पक्का मकान, शौचालय, गैस, जनधन, आयुष्मान जैसी योजनाएं बिना किसी भेदभाव के, बिना हिंदू-मुसलमान के। लेकिन सेक्यूलरिज्म के थोथे नारे ने मुसलमानों को मुख्य धारा से काट कर सिर्फ़ यूज एंड थ्रो वाला वोट बैंक बना कर अभिशप्त कर दिया है। इतना कि मुसलमान सिर्फ़ इस्लाम सोचता है। ओवैसी जैसे लोग सिर्फ़ मुसलमान की बात करते हैं। देश, समाज, विकास आदि की परिधि से इतर सिर्फ़ इस्लाम और इस्लाम। नतीज़ा हिंदू-मुसलमान। वनली हिंदू-मुसलमान। यही चुनाव है और यही चुनाव परिणाम है।
मोदी की मानें तो 2047 की कार्य-योजना पर वह कार्यरत हैं। 2047 की कार्य-योजना मतलब विकास की योजना। दुनिया में भारत को नंबर वन बनाने की योजना। हिंदू-मुसलमान की योजना नहीं। चौतरफा विकास की पूर्णिमा की यह चांदनी न भी होती तो भी सिर्फ़ कश्मीर में 370 हटाने और अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण ही काफी था नरेंद्र मोदी की तिबारा सरकार बनवाने के लिए। हैट्रिक लगाने के लिए। अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण ने दक्षिण भारत में भाजपा का सूर्योदय सुनिश्चित कर दिया है।
बड़े-बड़े राजनीतिक पंडित इस सूर्योदय को अपने अहंकार के ग्रहण से ढंक लेना चाहते हैं। लेकिन सूर्योदय तो हो रहा है। सूर्य तो चमक रहा है। राजनीतिक पंडित दक्षिण भारत में राम लहर को नहीं देख पा रहे हैं तो यह उन का दृष्टिभ्रम है। दक्षिण भारत ही क्यों समूचे भारत में राम लहर अनायास ही देखने को मिल रहा है। शायद इसी लिए 2024 का यह लोकसभा चुनाव अंतत: हिंदू-मुसलमान और आरक्षण की मूर्खता के युद्ध में तब्दील हो चुका है। न विपक्ष मोदी के दस साल के कामकाज पर सवाल खड़े कर रहा है, न मोदी अपने कामकाज पर बात कर रहे हैं। यह गुड बात नहीं है। भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और महंगाई जैसी सर्वकालिक समस्याएं भी इंडिया गठबंधन ने अपने अहंकार में बंगाल की खाड़ी में बहा दी हैं। उन की प्राथमिकता में हिंदू-मुसलमान ही रह गया है।
एक मुस्लिम वोट बैंक के पागलपन के नशे में समूचा इंडिया गठबंधन धुत्त है। इतना कि इंडिया गठबंधन के लोग हर बार की तरह भूल बैठे हैं कि भाजपा और नरेंद्र मोदी की सारी ताक़त ही है मुस्लिम तुष्टिकरण। 2014 में नरेंद्र मोदी की विजय हिंदू-मुसलमान के नैरेटिव पर ही हुई थी। अन्ना हजारे के आंदोलन या मनमोहन सिंह सरकार के भ्रष्टाचार के आधार पर नहीं। सर्जिकल स्ट्राइक, एयर स्ट्राइक के सुबूत मांगने, नोटबंदी, जी एस टी, राफेल के तमाम शोर-शराबे और साज़िश के बावजूद 2019 का लोकसभा चुनाव भी मोदी ने हिंदू-मुसलमान की पिच पर ही न सिर्फ़ जीता बल्कि ज़्यादा बढ़त के साथ जीता। और जान लीजिए कि 2024 का लोकसभा चुनाव भी नरेंद्र मोदी इसी हिंदू-मुसलमान की पिच पर कहीं और ज़्यादा बढ़त के साथ जीतने जा रहे हैं। याद दिलाता चलूं कि भारतीय राजनीति में हिंदू-मुसलमान और जातीय राजनीति की जनक कांग्रेस है।
हिंदू-मुसलमान की बुनियाद पर भारत का बंटवारा हो गया। इसी कांग्रेस की दुरंगी नीति के चलते। यही कांग्रेस अब भी हिंदू-मुसलमान की लालटेन जलाए रखती है। कांग्रेस की देखादेखी क्षेत्रीय पार्टियों यथा उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी तथा बिहार राष्ट्रीय जनता दल ने तो रीढ़ और चेहरा ही बना लिया मुस्लिम वोट बैंक को। एम वाई का टर्म ही बन गया। अलग बात है कि पहले जो एम वाई का अर्थ था, मुस्लिम और यादव वह एम वाई धीरे-धीरे मोस्टली यादव में तब्दील हो गया है। फिर भी अभी एक इंटरव्यू में अखिलेश यादव कहने लगे एम वाई मतलब महिला और युवा। तो एंकर हंसती हुई बोली, अखिलेश जी जब आप राजनीति में नहीं थे तब से पत्रकारिता कर रही हूं। अखिलेश यह सुन कर पूरी बेशर्मी से टोटी बन गए।
ख़ैर यह भी याद दिलाता और पूछता चलूं कि अगर गोधरा न होता तो?
गोधरा न होता तो 2002 में गुजरात दंगा न हुआ होता। तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात दंगों को तब जिस तरह पूरी बेरहमी से कुचला और दंगाइयों के होश ठिकाने किए, वह एक नज़ीर बन गया। गोधरा जिस में ट्रेन की कई बोगियों का बाहर से फाटक बंद कर मिट्टी का तेल डाल कर अयोध्या से लौट रहे कार सेवकों को ज़िंदा जला कर मारा गया, नरसंहार किया गया, इस पर सिरे से ख़ामोश रहने वाले लोगों ने गुजरात दंगों को स्टेट स्पांसर दंगे का नैरेटिव गढ़ा। सी बी आई जांच करवाई मनमोहन सिंह सरकार ने। बारह-बारह घंटे लगातार सी बी आई तत्कालीन मुख्यमंत्री, गुजरात नरेंद्र मोदी से पूछताछ करती थी तब के दिनों।
यह वही दिन थे जब अमित शाह को पहले जेल फिर तड़ीपार किया गया मनमोहन सरकार के इशारे पर। सोनिया गांधी ने नरेंद्र मोदी को मौत का सौदागर बताया। ख़ून का सौदागर बताया। एक से एक नैरेटिव गढ़े गए। तीस्ता सीतलवाड़ ने एन जी ओ बना कर, मोदी के ख़िलाफ़ तमाम फर्जी मुकदमे दर्ज करवाते हुए, आंदोलन करते हुए करोड़ो रुपए कमाए। तमाम अदालतों से होते हुए मामला सुप्रीमकोर्ट तक गया और सभी मामलों में नरेंद्र मोदी और अमित शाह को सुप्रीम कोर्ट से क्लीन चिट मिली।
देश के लोगों को समझ आ गया कि दंगाइयों से अगर कोई निपट सकता है तो वह नरेंद्र मोदी ही है। मुस्लिम तुष्टिकरण का क़िला अगर कोई तोड़ सकता है तो वह वनली नरेंद्र मोदी। अटल बिहारी वाजपेयी जैसे सॉफ्ट लोग नहीं। लालकृष्ण आडवाणी जैसे हार्डकोरर भी नहीं। इसी बिना पर 2013 में 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी का नाम प्रधानमंत्री के लिए प्रस्तावित किया गया। तैयारी 2012 में ही हो गई थी। बताया गया विकास का गुजरात मॉडल। लेकिन यह परदा था। सच तो यह था जो खुल कर कहा नहीं गया, वह था मुसलमानों के तुष्टिकरण को रोकने का गुजरात मॉडल। दंगाइयों को सबक़ सिखाने का गुजरात मॉडल। 2014 में भी पूरा चुनाव नरेंद्र मोदी के नाम पर लड़ा गया था। प्रचंड बहुमत से जीत कर नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने।
गुजरात का विकास मॉडल पूरे देश में लागू किया। विकास के साथ ही दंगाइयों को क़ाबू किया और मुस्लिम तुष्टिकरण के कार्ड को नष्ट और ध्वस्त करते हुए बता दिया कि मुस्लिम वोट बैंक नाम की कोई चीज़ नहीं होती, सत्ता की राह में। मुस्लिम वोट बैंक को ध्वस्त करने के लिए मंडल-कमंडल के वोट को एक साथ किया। बताया कि यह हिंदू वोट बैंक है। इस के लिए 2012 से ही काम किया गया तब जा कर 2014 में सफलता मिली। पहली बार देश में भाजपा की बहुमत की सरकार बनी। पर नाम एन डी ए ही रहा। घटक दलों को सरकार में भी सम्मान देते हुए शामिल किया गया। 2014 के चुनाव में नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ गुजरात दंगे की तोहमत तो कांग्रेस ने लगाया ही, उन की डिग्री की जांच-पड़ताल भी बहुत हुई। मोदी की पत्नी यशोदाबेन की खोज भी दिग्विजय सिंह जैसों ने की। ऐसे जैसे कोलंबस ने भारत की खोज की हो। पर सारे जतन धराशाई हो गए। ख़ुद दिग्विजय सिंह की बेटी की उम्र की अमृता राय से उन की प्रेम कहानी मोदी ने परोसवा दी। दिग्विजय-अमृता के तमाम अंतरंग फ़ोटो सोशल मीडिया पर घूमने लगे।
लाचार हो कर दिग्विजय सिंह को अमृता राय से विवाह करना पड़ा। फिर भी उन का राजनीतिक निर्वासन हो गया। तब के समय राहुल गांधी के राजनीतिक गुरु दिग्विजय सिंह ही थे। मणिशंकर अय्यर हुए फिर। फिर सैम पित्रोदा। सब खेत हो गए बारी-बारी। अब वामपंथी बुद्धिजीवियों ने राहुल और उन की कांग्रेस को घेर लिया है। वामपंथी बुद्धिजीवी ही उन के भाषण लिखते हैं। नारे लिखते हैं। राहुल गांधी को कटखन्ना और अप्रासंगिक बना कर प्रियंका को लड़की हूं, लड़ सकती हूं का पाठ याद करवाते हैं। अहंकार, बदतमीजी की भाषा से सराबोर कर संपत्ति के समान बंटवारे की थीसिस समझा कर राहुल की राजनीति का बंटाधार करवाने की पूरी योजना बनाते हैं। नरेंद्र मोदी और भाजपा को वामपंथी बुद्धिजीवियों का विशेष आभार मानना चाहिए। क्यों कि राहुल गांधी को मोदी का बेस्ट प्रचारक बनाने में वामपंथी बुद्धिजीवियों ने कोई कसर नहीं छोड़ी है।अपना बेस्ट एफर्ट लगा दिया है। लतीफ़ा और पप्पू बनने के बावजूद वामपंथी बुद्धिजीवियों का बेस्ट एसेट हैं राहुल गांधी।
मोहब्बत की दुकान में नफ़रत और घृणा का सामान कैसे बेचा जाता है, वामपंथी बुद्धिजीवी ही तो सिखाते हैं राहुल गांधी को। यह हिंदू-मुसलमान भी वामपंथी ही सिखाते हैं। बुद्धू लेकिन धूर्त आदमी चने की झाड़ पर चढ़ जाता है। नहीं जानता कि विकास की पूर्णिमा की चांदनी के साथ ही साथ हिंदू-मुसलमान की पिच भी नरेंद्र मोदी की ताक़त है। पाकिस्तान और उस के आतंक का जो बाजा बजा देता हो, भीख का कटोरा थमा देता हो, अभिनंदन जैसे जांबाज़ को रातोरात वापस ला सकता हो उस के सामने कांग्रेस और इंडिया गठबंधन का मुस्लिम वोट बैंक तो बिना किसी मिसाइल के चित्त हो जाता है। इंडिया गठबंधन के रणनीतिकारों को अब से सही, आगामी 2029 के चुनाव में ही सही, तय कर लेना चाहिए कि हिंदू-मुसलमान की पिच न बनाएं। न भाजपा के बुलाने पर भी इस पिच पर आएं। यह पिच देश, समाज और राजनीति के लिए तो हानिकारक है ही, कांग्रेस और इंडिया गठबंधन के लिए बेहद हानिकारक। हिंदू-मुसलमान, आरक्षण की खेती, जाति-पाति इस वैज्ञानिक युग में छोड़ने का अभ्यास करना चाहिए।
महाभारत का जुआ प्रसंग याद आता है। जुआ खेलने से पहले युधिष्ठिर कृष्ण को सभा से बाहर जाने को कह देते हैं। कृष्ण के सामने वह जुआ नहीं खेलना चाहते थे। बाद में कृष्ण कहते हैं कि एक तो जुआ खेलना नहीं था। खेला भी तो मुझे साथ रखना चाहिए था। जैसे दुर्योधन ने शकुनि को अपनी तरफ से पासे फेकने के लिए रखा, युधिष्ठिर भी मुझे रख सकते थे। मैं शकुनि को हरा देता। जीतने नहीं देता। द्रौपदी का चीर हरण नहीं होता। तो यही स्थिति नरेंद्र मोदी की है। जो लोग नहीं जानते, अब से जान लें कि राम मंदिर बनवाने के लिए भी नरेंद्र मोदी ने कृष्ण नीति का उपयोग किया। चुनाव जीतने में भी नरेंद्र मोदी कृष्ण नीति का डट कर उपयोग करते हैं। अश्वत्थामा मरो, नरो वा कुंजरो किसी युधिष्ठिर से कहलवा ही देते हैं।
जयद्रथ को मरवाने के लिए सूर्यास्त का ड्रामा भी। जाने क्या-क्या। चाणक्य भी साथ रखते ही हैं। भाजपा के सारथी भी हैं नरेंद्र मोदी और अर्जुन भी। जब जो भूमिका मिल जाए। बन जाए। इसी लिए दुहरा दूं कि कांग्रेस और इंडिया गठबंधन के लोग जब हिंदू-मुसलमान और जाति-पाति के आचार्य जब थे, तब थे। अब इस का आचार्यत्व नरेंद्र मोदी के पास है। इसी लिए अनुमान से कहीं अधिक हाहाकारी जीत होने जा रही नरेंद्र मोदी की। पूरा चुनाव नरेंद्र मोदी के नाम पर लड़ा जा रहा है।
भाजपा हो, एनडीए हो, कांग्रेस या इंडिया गठबंधन, मोदी नाम केवलम पर लड़ रहे हैं।
तानाशाह कह लीजिए , सांप्रदायिक कह लीजिए, अंबानी, अडानी जैसे पूंजीपतियों का मित्र कह लीजिए, यह आप की अपनी ख़ुशी है, आप का अपना ईगो मसाज है। पर जनता-जनार्दन ने नरेंद्र मोदी का एक नाम विजेता रख दिया है। विश्व विजेता। समय की दीवार पर लिखी इस इबारत को ठीक से पढ़ लीजिए। नहीं पढ़ पा रहे हैं तो अपनी आंख का इलाज कीजिए, चश्मा बदल लीजिए। और जो फिर भी नहीं पढ़ पा रहे हैं, अपनी ज़िद और सनक पर क़ायम हैं तो आप को आप की यह बहादुरी मुबारक़! ठीक वैसे ही जैसे सैम पित्रोदा और मणिशंकर अय्यर अपने सुभाषितों से मोदी का बेड़ा गर्क कर रहे हैं, आप भी कीजिए न! आप का भी यह मौलिक अधिकार ठहरा। ई वी एम का तराना अभी शेष ही था कि वैक्सीन का तराना भी लोग अचानक गाने लगे। लेकिन जैसे इलेक्टोरल बांड का गाना हिट नहीं हुआ, वैक्सीन का भी पिट गया है।
1962 के चीन युद्ध का एक वाक़या है। एक युद्ध चौकी पर चीनी सैनिक बहुत कम रह गए थे। पास की भारतीय युद्ध चौकी पर भारतीय सैनिक ज़्यादा थे। चीनियों ने ख़ूब सारी भेड़ें इकट्ठी कीं। भेड़ों के गले में लालटेन बांध दीं। रात में लालटेन जला कर भेड़ों को भारतीय सीमा की तरफ हांक दिया। भारतीय सैनिकों को एक साथ इतने सारे लोग आते दिखे। लगा कि चीनी सैनिक आ रहे हैं। भारतीय सैनिक चीन के इस जाल-बट्टे में फंस गए। भारतीय सैनिक चौकी छोड़ कर भाग चले। चीन का नैरेटिव काम कर गया। भारतीय सेना हार गई। चौकी छिन गई। लेकिन चीन अब गले में लालटेन बांध कर, भेड़ हांक कर नहीं जीत सकता। कोरोना नाम की भेड़ लालटेन बांध कर आई थी चीन से, पराजित हो कर लौट गई।
भारत का विपक्ष यानी इंडिया गठबंधन लेकिन अभी भी गले में लालटेन बांध कर भेड़ छोड़ने का अभ्यस्त है। भूल गया है कि थोक के भाव इधर-उधर के नैरेटिव रचने से चुनाव नहीं जीते जाते। कांग्रेसियों द्वारा जारी अमित शाह का आरक्षण संबंधी फर्जी वीडियो एक उदहारण है। इस डाल से उस डाल कूद कर मंकी एफर्ट से भी चुनाव नहीं जीते जाते। सेटेलाइट, नेट और ड्रोन का ज़माना है। घर बैठे दुनिया की किसी सड़क, किसी धरती, किसी आसमान का हालचाल तुरंत-तुरंत ले लेने का समय है यह। माना कि कुटिलता और धूर्तता राजनीति का अटूट अंग है। लेकिन इंडिया गठबंधन इस मामले में भी एन डी ए से बहुत पीछे है। नरेंद्र मोदी कुटिलता, धूर्तता और कमीनेपन में बहुत आगे हैं। कोसों आगे। राहुल गांधी जैसे लोग बहुत बच्चे हैं, इस मामले में। लालू यादव जैसे लोग दगे कारतूस हैं। एक शब्द है, मेहनत। नरेंद्र मोदी का कोई सानी नहीं है। दिन-रात इतनी मेहनत, इस उम्र में तो छोड़िए एक से एक लौंडे राहुल, अखिलेश, तेजस्वी सोच भी नहीं सकते। तेजस्वी तो इस चुनाव प्रचार में जाने कितनी बार ह्वील चेयर पर दिखा है। यह कैसी नौजवानी है?
अब देखिए न बीच चुनाव में दिल्ली शराब घोटाले के पितामह अरविंद केजरीवाल को बिना मांगे सुप्रीमकोर्ट ज़मानत थमा देता है, चुनाव प्रचार के लिए। यह भी लगभग असंभव था पर केजरीवाल के लिए संभव बन गया। अलग बात है केजरीवाल के प्रचार का कोई फ़र्क़ पड़ता नहीं दीखता इस लोकसभा चुनाव में। क्यों कि अरविंद केजरीवाल भी चीन की वही भेड़ हैं जो गले में लालटेन बांधे घूम रही है। केजरीवाल के जेल में रहने से कुछ सहानुभूति का लाभ मिल रहा था, वह भी अब जाता रहा। सुप्रीम कोर्ट और अभिषेक मनु सिंधवी ने अनजाने ही सही केजरीवाल का नुकसान कर दिया है। क़ानून का मज़ाक उड़ा दिया है। जाने कितने की डील हुई है। क्यों कि अदालतें ऐसे फ़ैसले बिना किसी डील के नहीं करतीं। परंपरा अभी तक की यही है।
वैसे भी इंडिया गठबंधन एक डूबता हुआ जहाज है। राहुल ने मोदी को डेढ़ सौ सीट मिलने का ऐलान किया है। प्रियंका ने 180 और अरविंद केजरीवाल ने कोई दो सौ तीस सीट देने का ऐलान किया है और बताया है कि मोदी प्रधानमंत्री नहीं बनेंगे। फिर इसी सांस में यह भी कह दिया कि मोदी चूंकि 75 के होने वाले हैं इस लिए वह अमित शाह को प्रधानमंत्री बनाने के लिए वोट मांग रहे हैं। इसी सांस में वह योगी की छुट्टी और ममता बनर्जी को जेल में भेजने का ऐलान थमा देते हैं। और सरकार नहीं बनेगी का चूरन फांकते हुए खांसने लगते हैं। तानाशाह भी बता देते हैं। संविधान बचाने का गाना भी गा देते हैं। बताइए कि सुप्रीम कोर्ट के माननीय लोग इस केजरीवाल को इसी बिना पर मोदी के अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा रोकने के लिए भेजे हैं। ग़ज़ब न्यायप्रिय लोग हैं।
एक न्याय राहुल दे रहे हैं , दूसरा टोटी यादव के रूप में विख्यात अखिलेश यादव। संदेशखाली की ममता बनर्जी के अजब रंग हैं। एक पूर्व जस्टिस और एक संपादक मोदी-राहुल में बहस करवाने का न्यौता अलग लिए घूम रहे हैं। ऐसे गोया छात्र-संघ का चुनाव हो रहा हो। राहुल ने न्यौता क़ुबूल करने का ऐलान कर दिया है। पहले भी वह मोदी से डिवेट की तमन्ना रखते हुए चैलेंज देते रहे हैं। पर मोदी ने कभी लिफ्ट नहीं दी। तानाशाह जो ठहरा।
देखिए तो वर्तमान में भी एन डी ए के पास भीतर-बाहर मिला कर 400 सीट है ही। हालां कि कुछ चतुर सुजान 2024 के इस लोकसभा चुनाव में 1977 के चुनाव की छाया देखते हुए सब कुछ उलट-पुलट होते हुए देख रहे हैं। इन चतुर सुजानों को लगता है कि जैसे तब 1977 के चुनाव में इंदिरा गांधी जैसी परम शक्तिशाली शासक की चुनावी नाव डूब गई थी, ठीक वैसे ही नरेंद्र मोदी की चुनावी नाव 2024 में डूबने जा रही है। पर यह तथ्य नहीं, उन चतुर सुजानों की मनोकामना है। और मनोकामना से कभी राजनीति नहीं सधती, न ही चुनाव। ग़ालिब लिख ही गए हैं :
हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन
दिल के ख़ुश रखने को ‘ग़ालिब’ ये ख़याल अच्छा है।
असल में लोकसभा, 2024 का चुनाव इस क़दर एकतरफा हो चला है कि किसी आकलन, किसी विश्लेषण की आवश्यकता ही नहीं रह गई है। कोई आकलन करे भी तो क्या करे। फिर भी चर्चा-कुचर्चा तो हो ही सकती है।
जैसे लड़की हूं, लड़ सकती हूं की हुंकार भरने वाली प्रियंका वाड्रा को सोनिया ने कहीं से क्यों लड़ने लायक़ नहीं समझा। रावर्ट वाड्रा तो खुलेआम इज़हार कर रहे थे कि अमेठी से वह लड़ना चाहते हैं। अब राज्य सभा की तान ले रहे हैं। सोनिया ने लेकिन वाड्रा को भी झटका दे दिया। अमेठी छोड़ कर रायबरेली से राहुल गांधी के चुनाव लड़ने को राहुल गांधी के वर्तमान मुख्य चाटुकार जयराम रमेश ने बताया है कि राहुल गांधी राजनीति और शतरंज के मजे हुए खिलाड़ी हैं।
वह सोच समझ कर फ़ैसला लेते हैं। राहुल सोचते-समझते भी हैं, यह मेरे लिए नई सूचना है। हक़ीक़त तो यह है कि इस मजे हुए खिलाड़ी ने समाजवादी पार्टी के कंधे पर बैठ कर रायबरेली का चुनाव जीतने की रणनीति बनाई है। इस रणनीति में जीत का अपना कोई दांव नहीं है। वायनाड का तो स्पष्ट नहीं पता पर रायबरेली से अगर राहुल गांधी चुनाव हार जाते हैं तो बिलकुल आश्चर्य नहीं करना चाहिए। अमेठी से स्मृति ईरानी की लपट रायबरेली तक पहुंचने में बहुत देर नहीं होगी। क्यों कि अमेठी में कांग्रेस ने सोनिया के मुंशी, मुनीम टाइप के एल शर्मा को खड़ा कर स्मृति ईरानी को जैसे वाकओवर दे दिया है। फिर मोदी-योगी-शाह की तिकड़ी की रणनीति को आप क्या हलवा समझते हैं, रायबरेली के लिए। अलग बात है कि अगर उसी दिन अगर भाजपा फुर्ती दिखाते हुए रायबरेली से स्मृति ईरानी का भी नामांकन करवा देती तो मंज़र कुछ और होता।
खैर, बकौल जयराम रमेश शतरंज और राजनीति के मजे हुए खिलाड़ी राहुल गांधी ने जिस समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव के कंधे पर बैठ कर रायबरेली जीतने का मंसूबा बनाया है, वही अखिलेश यादव कन्नौज में फंसे दीखते हैं। जाने क्या सोच कर रामगोपाल यादव ने अखिलेश यादव को कन्नौज के कीचड़ में उतार दिया है। बदायूं, फ़िरोज़ाबाद, आज़मगढ़ भी सपा क्लीयरकट गंवा रही है। मुलायम सिंह यादव याद आते हैं। जब लखनऊ के जनेश्वर मिश्र पार्क में सम्मलेन कर मुलायम सिंह यादव को समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष पद से हटा कर अखिलेश यादव को अध्यक्ष बनाया गया तभी मुलायम ने कहा था, रामगोपाल यादव ने अखिलेश का भविष्य ख़राब कर दिया है। तब लोगों ने मुलायम के इस बयान को उन की हताशा बता दिया था। पर जब 2017 का विधान सभा चुनाव हुआ और अखिलेश की सत्ता चली गई तब लोगों की समझ में आया। अलग बात है कि बीच चुनाव ही अखिलेश यादव के लिए लोग कहने लगे थे कि जो अपने बाप का नहीं हो सकता, वह किसी का नहीं हो सकता। कुछ समय पहले भरी विधानसभा में योगी ने भी अखिलेश को लताड़ लगाते हुए कहा कि, तुम ने तो अपने बाप का सम्मान नहीं किया! और अब राहुल उसी अखिलेश यादव के बूते रायबरेली साधने आए हैं, मां की विरासत संभालने।
तो क्या जैसा मोदी कहते आ रहे हैं कि शाहज़ादे वायनाड हार रहे हैं?
पता नहीं। पर रायबरेली वह ज़रूर गंवा रहे हैं। हमारे एक मित्र हैं। पुराने समाजवादी हैं। मुलायम सिंह के इर्द-गिर्द जमे रहते थे। मुलायम ने बारंबार उन्हें राज्य सभा भेजने का लेमनचूस चुसवाया पर कभी भेजा नहीं। हां, एक बार उन्हें राज्य मंत्री स्तर का एक ओहदा ज़रूर दे दिया। वह उसी में ख़ुश रहे। बाद में अखिलेश यादव की उपेक्षा से आजिज आ कर वह कांग्रेस की गोद में जा बैठे। कांग्रेस ने उन्हें उत्तर प्रदेश का मुख्य प्रवक्ता भी बना दिया। कि तभी चुनाव घोषित हो गए और फिर कांग्रेस और सपा के बीच संभावित समझौता हो गया। वह लेकिन भाजपा के ख़िलाफ़ बिगुल बजाने में पीछे नहीं हुए। बीते महीने उन से बात हो रही थी। बात ही बात में वह भाजपा और मोदी के चार सौ पार के दावे की बात करने लगे। पूछने लगे कि यह चार सौ आएंगे कहां से? बढ़ाएंगे कहां से? मैं ने उन्हें धीरे से बताया कि दक्षिण भारत से। पश्चिम बंगाल से। इस पर मित्र कहने लगे, दक्षिण भारत और पश्चिम बंगाल से इतना? मैं ने कहा, बस देखते चलिए।
पहले ही कहा है कि अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण ने दक्षिण भारत में भाजपा का सूर्योदय निश्चित कर दिया है। बड़े-बड़े राजनीतिक पंडित इस सूर्योदय को अपने अहंकार के ग्रहण से ढंक लेना चाहते हैं। लेकिन दक्षिण भारत में राम लहर है। इंडिया गठबंधन इस से बेख़बर है क्या? गिलहरी प्रसंग याद कीजिए।
समुद्र पर सेतु बन रहा था। सभी अपने-अपने काम पर लगे थे। एक गिलहरी यह सब देख रही थी। उसे बड़ी पीड़ा हुई कि हम कुछ क्यों नहीं कर पा रहे। उस ने सोचा और फिर अचानक रेत में लोटपोट कर सेतु बनने की जगह जा कर अपनी देह झाड़ देती। बार-बार ऐसा करते उसे राम ने देखा। राम को लगा कि जब यह गिलहरी अपनी सामर्थ्य भर काम कर रही है तो हम भी कुछ क्यों न करें। राम ने एक पत्थर उठाया। लोग पत्थर पर राम नाम लिख कर समुद्र में डाल रहे थे। राम ने सोचा, अपना ही नाम क्या लिखना भला। बिना राम नाम लिखे पत्थर जल में डाल दिया। पत्थर तैरने के बजाय डूब गया।
दूसरा पत्थर डाला , वह भी डूब गया। तीसरा-चौथा सभी पत्थर डूबते गए। राम घबरा गए। पीछे मुड़ कर देखा कि कोई देख तो नहीं रहा। देखा तो पाया कि हनुमान देख रहे हैं। राम ने हनुमान को बुलाया और पूछा कि कुछ देखा तो नहीं? हनुमान ने कहा, प्रभु! सब कुछ देखा! राम ने हनुमान से कहा, चलो तुम ने देखा तो देखा पर किसी से यह बताना नहीं। हनुमान ने कहा, कि ना प्रभु, हम तो पूरी दुनिया को बताएंगे कि प्रभु राम का भी राम नाम के बिना कल्याण नहीं। इसी प्रसंग पर बहुत सारी भजन हैं, कथाएं हैं। एक मशहूर भजन है , राम से बड़ा राम का नाम! तो क्या दक्षिण, क्या उत्तर, क्या पूरब, क्या पश्चिम राम से बड़ा राम का नाम चल रहा है। राम की यही मार जब इंडिया गठबंधन पर भारी पड़ने लगी तो हिंदू-मुसलमान कर दिया। मुस्लिम आरक्षण का दांव चल दिया।
दक्षिण भारत और पश्चिम बंगाल से सौ सीट भले न आए पर खाता खुलना बड़ी बात है। केरल से एक भी सीट ला पाना भाजपा के लिए सपना है पर अगर वायनाड ही जीत गई भाजपा तो? कर्नाटक, आंध्र और तेलंगाना से तो भाजपा आ ही रही हैं। तामिलनाडु भी दौड़ में है। यह पहली बार होगा कि भाजपा दक्षिण भारत में अंगद की तरह पांव रखने जा रही है। राम मंदिर का संदेश और मोदी की रणनीति, मेहनत ने दक्षिण भारत में भाजपा का सूर्योदय लिख कर रख दिया है। उत्तर पूर्व में भी स्थिति बेहतर है। पश्चिम बंगाल में संदेशखाली ने ममता बनर्जी को सकते में डाल दिया है। उत्तर प्रदेश, राजस्थान, गुजरात और मध्य प्रदेश में कोई लड़ाई ही नहीं है। इंडी गठबंधन के उम्मीदवार ही खूंटा तोड़-ताड़ कर भागने लगे हैं। महाराष्ट्र और बिहार में तो इंडी गठबंधन के लोग परिवार को ही सर्वोपरि मानने में सब कुछ लुटा बैठे हैं।
पंजाब में भाजपा की स्थिति बहुत ख़राब है लेकिन बाक़ी के प्रदेशों में भाजपा की बल्ले-बल्ले है। ख़ास कर उत्तर प्रदेश में तो योगी ने भाजपा के आगे किसी को टिकने के लिए ज़मीन ही नहीं छोड़ी है। अस्सी सीट नहीं, न सही पचहत्तर-छिहत्तर सीट साफ़ तौर पर भाजपा की झोली में है। मैनपुरी से डिंपल यादव तो क्लीयरकट जीत रही हैं पर कन्नौज से अखिलेश यादव की जीत पक्की नहीं है। बुरी तरह फंसे हुए हैं। उन के ऊपर जूते-चप्पल चल रहे हैं। बदायूं , फ़िरोज़ाबाद, आज़मगढ़ भी सपा गंवा रही है। मुख़्तार अंसारी के परिवार में फूट पड़ जाने के कारण ग़ाज़ीपर और मऊ भी खटाई में पड़ गया है।
लड़की हूं, लड़ सकती हूं का ज्ञान भाखने वाली प्रियंका गांधी उत्तर प्रदेश की रायबरेली, अमेठी तो क्या देश में कहीं से भी अपने को लड़ने के लायक नहीं मानतीं। माता सोनिया गांधी हार के डर से राज्य सभा चली गईं ताकि 10 जनपथ, नई दिल्ली का आलीशान बंगला न छिन जाए। लतीफ़ा गांधी की जहां तक बात है, वह हारे चाहें जीतें, उन की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ता। वह सिद्ध अवस्था को प्राप्त हो चुके हैं। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस डबल ज़ीरो पाने के लिए लड़ रही है। राहुल गांधी शायद अपनी ज़मानत बचा लें पर बाक़ी कांग्रेसियों की ज़मानत ज़ब्त है।
इस चुनाव को आप महाभारत के अंदाज़ में देख सकते हैं। जिस में एक राहुल गांधी ही नहीं दुर्योधन की भूमिका में उपस्थित हैं। संपूर्ण इंडिया गठबंधन में यत्र-तत्र दुर्योधन और दुशासन उपस्थित हैं। कोई लाक्षागृह बना रहा है, कोई चीर-हरण में संलग्न है, कोई अभिमन्यु की हत्या में।
इंडिया गंठबंधन को एक बात से संतोष बहुत है कि इस चुनाव में मुस्लिम वोट बैंक का बंटवारा नहीं हो रहा है। एक संतोष यह भी है कि मोदी-अमित शाह की जोड़ी ने मंडल-कमंडल के वोट बैंक को एक कर के 2014 और 2019 में एक कर के अपनी विजय पताका फहराई थी, जातीय जनगणना के उन के दांव में उसे छिन्न-भिन्न कर दिया है। इसी उत्साह का कुपरिणाम है कि मल्लिकार्जुन खड़गे शिव को राम से लड़ाने और राम पर शिव के विजय की घोषणा करने की मूर्खता कर बैठते हैं।
कभी क्षत्रिय समुदाय की भाजपा से नाराजगी, कभी कोविशील्ड की अफ़वाह, कभी स्कूलों में बम, कभी आरक्षण, कभी हिंदू-मुसलमान, कभी कुछ, कभी कुछ। हौसला इतना पस्त है, बदहवासी इतनी है कि अखिलेश यादव की उपस्थिति में मंच पर माइक से शिवपाल यादव भाजपा की बड़ी मार्जिन से जिताने का ऐलान कर बैठते हैं। राहुल गांधी की जुबान अलग बदजुबानी पर उतरती रहती है, तू-तड़ाक की भाषा बोलने लगते हैं।
चुनाव के पहले ही राहुल गांधी और इंडिया गठबंधन ने जातीय जनगणना की ढोल बजा दी थी। मंशा साफ़ थी कि मंडल और कमंडल के वोट बैंक जो 2014 में भाजपा की सोशल इंजीयरिंग में एक हो चले हैं, उन्हें छिन्न-भिन्न कर तार-तार कर देना। नीतीश कुमार जब इंडिया गठबंधन में थे, बिहार में जातीय जनगणना का झंडा गाड़ दिया। भाजपा ने अवसर गंवाए बिना नीतीश कुमार को ही तोड़ कर एन डी ए में समाहित कर इंडिया गठबंधन की ताक़त में मनोवैज्ञानिक सेंधमारी कर दी। धीरे-धीरे इंडिया गठबंधन के कई सारे लोग ऐसे कूदने लगे जैसे किसी डूबते हुए जहाज से कूदने लगते हैं। कांग्रेस के डूबते जहाज से कूदने वालों की संख्या बेहिसाब है। सिलसिला है कि रुकता नहीं। नीतीश कुमार तो इतने उत्साहित हो गए हैं कि 400 की जगह 4000 सीट जितवाने की बात कर जाते हैं।
अपने मौलिक अधिकार और सवाल पूछने के अधिकार का प्रयोग करते हुए आप पूछ सकते हैं कि जब सब कुछ इतना आसान है, हिंदू-मुसलमान की पिच जो मोदी को इतनी ही रास आती है तो दिन-रात इतना खट क्यों रहे हैं। इतना तीन-तिकड़म क्यों कर रहे हैं भला तो आप को कन्हैयालाल नंदन की यह कविता ज़रूर ध्यान में रख लेनी चाहिए।
तुमने कहा मारो
और मैं मारने लगा
तुम चक्र सुदर्शन लिए बैठे ही रहे और मैं हारने लगा
माना कि तुम मेरे योग और क्षेम का
भरपूर वहन करोगे
लेकिन ऐसा परलोक सुधार कर मैं क्या पाऊंगा
मैं तो तुम्हारे इस बेहूदा संसार में/ हारा हुआ ही कहलाऊंगा
तुम्हें नहीं मालूम
कि जब आमने सामने खड़ी कर दी जाती हैं सेनाएं
तो योग और क्षेम नापने का तराजू
सिर्फ़ एक होता है
कि कौन हुआ धराशायी
और कौन है
जिसकी पताका ऊपर फहराई
योग और क्षेम के
ये पारलौकिक कवच मुझे मत पहनाओ
अगर हिम्मत है तो खुल कर सामने आओ
और जैसे हमारी ज़िंदगी दांव पर लगी है
वैसे ही तुम भी लगाओ।
इस लेख को आप वरिष्ठ पत्रकार दयानंद पाण्डेय के ब्लॉग ‘सरोकार नामा ‘ पर भी पढ़ सकते हैं
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