टकराव में फंसी दुनिया के लिये आतंकवाद भी मुनाफ़े का बाज़ार
नई दिल्ली। भारत ने पहली बार पाकिस्तानी पोस्ट को फायर एसाल्ट से उड़ाने का वीडियो जारी कर खुद को अमेरिका और इज़रायल की कतार में खड़ा कर दिया. क्योंकि सामान्य तौर पर भारत या पाकिस्तान ही नहीं बल्कि चीन और रुस भी अपनी सेना का कार्रवाई का वीडियो जारी तो नहीं ही करते हैं. तो इसका मतलब है क्या. क्या अब पाकिसातन अपने देश में राष्ट्रवाद जगाने के लिए कोई वीडियो जारी कर देगा . या फिर समूची दुनिया ही जिस टकराव के दौर में जा फंसी है, उसी में भारत भी एक बडा खिलाड़ी खुद को मान रहा है. क्योंकि दुनिया के सच को समझे तो गृह युद्द सरीखे अशांत क्षेत्र के फेहरिस्त में सीरिया ,यमन , अफगानिस्तान ,सोमालिया , लिबिया , इराक , सूडान और दक्षिण सूडान हैं. तो आतंक की गिरप्त में आये देशों की फेरहिस्त में पाकिस्तान , बांग्लादेश , म्यानमार ,टर्की और नाइजेरिया है.
तो आंतकी हमले की आहट के खौफ़ तले भारत , फ्रांस ,बेल्जियम ,जर्मनी ,ब्रिटेन और स्वीडन हैं. वहीं देशों के टकराव का आलम ये हो चला है कि अलग अलग मुद्दों पर उत्तर कोरिया , दक्षिण कोरिया ,चीन ,रुस ,फिलीपिंस , जापान, मलेशिया ,इंडोनेशिया ,कुर्द और रुस तक अपनी ताकत दिखाने से नहीं चूक रहे. तो क्या दुनिया का सच यही है दुनिया टकराव के दौर में है . या फिर टकराव के पीछे का सच कुछ ऐसा है कि हर कोई आंख मूंदे हुये है क्योकि दुनिया का असल सच तो ये है कि 11 खरब , 29 अरब 62 करोड रुपये का धंधा या हथियार बाज़ार . जी दुनिया में सबसे बडा धंधा अगर कुछ है तो वह है हथियारों का . और जब दुनिया का नक्शा ही अगर लाल रंग से रंगा है तो मान लीजिये अब बहुत कम जमीन बची है जहा आतंकवाद, गृह युद्द या दोनों देशों का टकराव ना हो रहा हो . और ये तस्वीर ही बताती है कि कमोवेश हर देश को ताकत बरकरार रखने के लिये हथियार चाहिये . तो एक तरफ हथियारों की सलाना खरीद फरोख्त का आंकडा पिछले बरस तक करीब 11 सौ 30 खरब रुपये हो चुका है.
तो दूसरी तरफ युद्ध ना हो इसके लिये बने यूनाइटेड नेशन के पांच वीटो वाले देश अमेरिका, रुस , चीन , फ्रासं और ब्रिटेन ही सबसे ज्यादा हथियारो के बेचते है . आंकड़ो से समझे तो स्टाकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इस्टीटयूट के मुताबिक अमेरिका सबसे ज्यादा 47169 मिलियन डालर तो रुस 33169 मिलियन डालर , चीन 8768 मिलियन डालर , फ्रांस 8561 मिलियन डालर और ब्रिट्रेन 6586 मिलियन डालर का हथियार बेचता है . यानी दुनिया में शांति स्तापित करने के लिये बने यूनाइटेड नेशन के पांचो वीटो देश के हथियारो के धंधे को अगर जोड़ दिया जाये तो एक लाख 4 हज़ार 270 मिलियन डालर होता है . यानी चौथे नंबर पर आने वाले जर्मनी को छोड़ दिया जाये तो हथियारों को बेचने के लिये पांचो वीटो देशो का दरवाज़ा ही सबसे बड़ा खुला हुआ है . आज की तारीख में अमेरिका-रुस और चीन जैसे देशों की नजर में हर वो देश है,जो हथियार खऱीद सकता है. क्योंकि हथियार निर्यात बाज़ार का सबसे बड़ा हिस्सा इन्हीं तीन देशों के पास है . अमेरिका के पास 33 फ़ीसदी बाज़ार है तो रुस के पास 23 फ़ीसदी और चीन के पास करीब 7 फ़ीसदी हिस्सा है .यानी अमेरिकी राष्ट्रपति जो दो दिन पहले ही रियाद पहुंचे और दुनिया में बहस होने लगी कि इस्लामिक देसो के साथ अमेरिकी रुख नरम क्यो है तो उसके पीछे का सच यही है कि अमेरिका ने साउदी अरब के साथ 110 बिलियन डालर का सौदा किया . यानी सवाल ये नहीं है कि अमेरिका इरान को बुराई देशों की फ़ेहरिस्त में रख कर विरोध कर रहा है . सवाल है कि क्या आने वाले वक्त में ईरान के खिलाफ़ अमेरिकी सेन्य कार्रवाई दिखायी देगी . और जिस तरह दुनिया मैनेचेस्टर पर हमला करने वाले आईएस पर भी बंटा हुआ है उसमें सिवाय हथियारों को बेच मुनाफ़ा बनाये रखने के और कौन सी थ्योरी हो सकती है .
और विकसित देसो के हथियारो के धंधे का असर भारत जैसे विकासशील देसो पर कैसे पड़ता है ये भारत के हथियारों की खरीद से समझा जा सकता है . फिलहाल , भारत दुनिया का सबसे बड़ा या कहे पहले नंबर का देश का जो हथियार खरीदता है . आलम ये है कि 2012 से 2016 के बीच पूरी दुनिया में हुए भारी हथियारों के आयात का अकेले 13 फ़ीसदी भारत ने आयात किया. . स्कॉटहोम इंटरनेशनल पीस रीसर्च इंस्टीट्यूट की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत ने 2007-2016 के दौरान भारत के हथियार आयात में 43 फ़ीसद की बढ़ोतरी दर्ज की गई . और जिस देश में जय जवान-जय किसान का नारा आज भी लोकप्रिय है-उसका सच यह है कि 2002-03 में हमारा रक्षा बजट 65,000 करोड़ रुपये का था जो 2016-17 तक बढ़कर 2.58 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच चुका है. . जबकि 2005-06 में कृषि को बजट में 6,361 करोड़ रुपये मिले थे जो 2016-17 में ब्याज सब्सिडी घटाने के बाद 20,984 करोड़ रुपये बनते हैं . यानी रक्षा क्षेत्र में 100 फीसदी विदेशी निवेश की इजाजत के बावजूद भारत के लिए विदेशों से हथियार खरीदना मजबूरी है. जिसका असर खेती ही नहीं हर दूसरे क्षे6 पर पड रहा है . और जानकारों का कहना है कि भारत हथियार उद्योग में अगले 10 साल में 250 अरब डॉलर का निवेश करने वाला है . यानी ये सवाल छोटा है कि मैनचेस्टर में इस्लामिक स्टेट का आंतकी हमला हो गया . या भारत ने पाकिसातनी सेना की पोस्ट को आंतक को पनाह देने वाला बताया . या फिर सीरिया में आईएस को लेकर अमेरिका और रुस ही आमने सामने है . सवाल है कि टकराव के दौर में फंसी दुनिया के लिये आंतकवाद भी मुनाफे का बाज़ार है .