इस एक पुरानी खबर से एनडीटीवी और कांग्रेस के रिश्तों को समझें

बैंक जालसाजी, हवाला और इनकम टैक्स चोरी जैसे मामलों में फंसा एनडीटीवी चैनल दावा कर रहा है कि वो हमेशा ऊंचे आदर्श वाली निष्पक्ष पत्रकारिता करता रहा है। वैसे तो इस दावे पर कम ही लोगों को यकीन है लेकिन ऐसे कई वाकये हैं जो बताते हैं कि नरेंद्र मोदी सरकार बनने के पहले तक एनडीटीवी सीधे तब की केंद्र सरकार के इशारे पर चला करता था। ऐसी ही एक घटना का जिक्र तब के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार संजय बारू ने अपनी किताब ‘दी एक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर’में किया है। संजय बारू ने किताब में बताया है कि कैसे एक बार मनमोहन सिंह ने एनडीटीवी के हेड प्रणय रॉय को फोन पर जमकर डांट पिलाई थी। ये डांट सरकार से जुड़ी एक खबर के बारे में थी। खास बात यह है कि इस फटकार के बाद एनडीटीवी ने अपने अंग्रेजी और हिंदी दोनों चैनलों से वो खबर गायब कर दी थी। मीडिया के कामकाज में किसी सरकार की दखलंदाजी का ये सीधा मामला बनता है।

मनमोहन के मीडिया सलाहकार संजय बारू ने अपनी किताब में जहां कहीं भी एनडीटीवी का जिक्र किया है इस तरह से किया है मानो वो सरकार का ही अपना चैनल हो। मई 2005 की एक घटना का जिक्र इसमें किया गया है जब एनडीटीवी पर खबर चली कि मनमोहन सिंह अपनी पहली सरकार के पहले साल पर मंत्रियों के कामकाज का मूल्यांकन कर रहे हैं। इस खबर के मुताबिक विदेश मंत्री नटवर सिंह को इसमें सबसे कम नंबर मिले हैं और वो सबसे फिसड्डी मंत्री रहे हैं। संजय बारू ने इस खबर के बारे में प्रधानमंत्री को जानकारी दी, तो वो बुरी तरह भड़क गए। मनमोहन सिंह प्रणय रॉय को बुरा-भला कहने लगे और बारू से कहा कि वो फोन करके कहें कि ये सब झूठ फैलाना बंद करो। संजय बारू ने प्रणय रॉय को फोन किया और इससे पहले कि वो बात शुरू करते मनमोहन सिंह ने फोन अपने हाथ में ले लिया और तेज आवाज में डांटना शुरू कर दिया। संजय बारू ने लिखा है कि ऐसा लग रहा था कि कोई स्कूल टीचर स्टूडेंट को डांट रहा है।

फटकार का असर ये हुआ कि एनडीटीवी ने वो खबर चैनल से पूरी तरह हटा ली। शाम को प्राइम टाइम में अंग्रेजी और हिंदी दोनों चैनलों पर मनमोहन सरकार के पहले साल के टॉप-5 अच्छे और टॉप-5 बुरे मंत्रियों पर स्पेशल प्रोग्राम चलना था। लेकिन मनमोहन सिंह का फोन आने के बाद कथित तौर पर बुरी परफॉरमेंस वाले मंत्रियों की खबर गायब कर दी गई। चैनल के मैनेजमेंट या एडिटर्स की तरफ से इसके कारण के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई। उस वक्त एनडीटीवी की एडिटोरियल टीम के एक सदस्य ने न्यूज़लूज़ को बताया कि “सब कुछ कर्फ्यू की तरह हुआ। हम लोग कार्यक्रम की आखिरी तैयारियों में जुटे थे, लेकिन बिना कोई वजह बताए काम रुकवा दिया गया।” उनका दावा है कि अच्छे और बुरे मंत्रियों की ये लिस्ट सरकार को समर्थन दे रही सीपीएम की तरफ से तैयार की गई थी। हालांकि एनडीटीवी चैनल पर दावा किया जा रहा था कि उन्होंने यह लिस्ट मीडिया के प्रमुख संपादकों की राय के आधार पर बनाई है।

संजय बारू की इसी किताब में एक और घटना का जिक्र है, जिसमें मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी यानी सीपीएम के शीर्ष नेतृत्व में बदलाव से जुड़ी खबर एनडीटीवी चैनल पर सबसे पहले चली। बारू ने लिखा है कि चूंकि एनडीटीवी के मालिक प्रणय रॉय और राधिका रॉय के सीपीएम नेता वृंदा करात और प्रकाश करात से पारिवारिक रिश्ते थे इसलिए पार्टी से जुड़ी सारी खबरें एनडीटीवी पर आया करती थीं और सरकार इन पर भरोसा भी किया करती थी। कुल मिलाकर संजय बारू की इस किताब ने एनडीटीवी के उस असली चेहरे की एक झलक दी है, जिसके बावजूद ये चैनल और उसकी तनख्वाह पर पल रहे कुछ कथित पत्रकार दावा कर रहे हैं कि वो सबसे निष्पक्ष और सरकारों से टकराव लेने वाले और जनता की आवाज उठाने वाले चैनल हैं।

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