राजदीप को राहत देते हुए कोर्ट बोला- ‘कुछ गलत रिपोर्टिंग’ होने पर मानहानि का केस न हो
सुप्रीम कोर्ट ने नेताओं को सलाह दी है कि लोकतंत्र में मीडिया को पूरी आजादी दी जानी चाहिए। रिपोर्टिंग में कुछ गलती हो सकती है, लेकिन नेताओं को हर बात दिल पर नहीं लगानी चाहिए। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने ये टिप्पणी बिहार की पूर्व विधायक रहमत फातिमा अमानुल्लाह की याचिका को खारिज करते हुए की। दरअसल इस याचिका के जरिए पटना हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई थी। पटना हाईकोर्ट ने पिछले साल सितंबर में हिंदी न्यूज चैनल आईबीएन7 (अब न्यूज18 इंडिया) और वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई के खिलाफ मानहानि के मामले को रद्द कर दिया था।
याचिकाकर्ता का कहना था कि चैनल ने अवैध तरीके से भूमि आवंटन की खबर दिखाई थी, जो कि गलत थी और इसलिए चैनल पर आपराधिक मानहानि का मामला फिर से चलना चाहिए, लेकिन चीफ जस्टिस ने महिला नेता की याचिका खारिज करते हुए कहा कि कई बार कथित घोटाले की रिपोर्टिंग करने के उत्साह में कुछ गलतियां मुमकिन है लेकिन फिर भी मीडिया को अभिव्यक्ति की आजादी दी जानी चाहिए। हो सकता है कि रिपोर्टिंग में कुछ गलत हो, लेकिन इसे हमेशा के लिए पकड़े नहीं रखा जा सकता। वैसे भी मामला 10 साल पुराना है।
पीठ ने कहा, ‘लोकतंत्र में, आपको (याचिकाकर्ता) सहनशीलता सीखनी चाहिए। किसी कथित घोटाले की रिपोर्टिंग करते समय उत्साह में कुछ गलती हो सकती है. लेकिन हमें प्रेस को पूरी तरह से बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी देनी चाहिए। कुछ गलत रिपोर्टिंग हो सकती है। इसके लिए उसे मानहानि के शिकंजे में नहीं घेरना चाहिए।’
कोर्ट ने मानहानि के बारे में दण्डात्मक कानून को सही ठहराने संबंधी अपने पहले के फैसले का जिक्र करते हुए कहा कि यह प्रावधान भले ही संवैधानिक हो परंतु किसी घोटाले के बारे में कथित गलत रिपोर्टिग मानहानि का अपराध नहीं बनती है।
गौरतलब है कि पटना हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर याचिका में बिहार की पूर्व महिला विधायक रहमत फातिमा अमानुल्लाह ने कहा था कि उनके पिता वरिष्ठ ब्यूरोक्रेट अफजल अमानुल्लाह और मां परवीन बिहार सरकार में मंत्री रह चुकी हैं। लेकिन हिंदी न्यूज चैनल आईबीएन7 की गलत खबर से पूरे परिवार की बदनामी हुई है। अवमानना का मामला अप्रैल 2010 में बिहिया इंडस्ट्रियल एरिया में जमीन आवंटन में कथित धांधली की खबर से जुड़ा है। याचिका के मुताबिक हिंदी न्यूज चैनल ने उनके और परिवार खिलाफ अपमानित करने वाली टिप्पणियां की थीं। इसलिए याचिकाकर्ता ने सरदेसाई, चैनल व इससे जुड़े अन्य पत्रकार को आरोपी बनाया था, लेकिन पटना हाईकोर्ट ने अवमानना का मामला खारिज कर दिया था तो इस महिला नेता ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई।