पत्रकारों को जरूरी है पेंशन, सरकार भी है गम्भीर: मुख्य सचिव

पत्रकारिता का यह पेशा दिन-रात समाज की सेवा में जुटा रहता है, लेकिन इसके पीछे छिपे संघर्ष और चुनौतियों को समझना भी जरूरी है। जब एक पत्रकार अपनी लेखनी से समाज में बदलाव लाने का काम करता है, तब उसे भी यह उम्मीद होती है कि उसके बुढ़ापे में उसका जीवन सहज और सुरक्षित रहेगा। उत्तर प्रदेश मान्यता प्राप्त संवाददाता समिति का यह प्रयास निश्चित ही प्रदेश के पत्रकारों के लिए नई राहें खोलेगा और उन्हें भविष्य के प्रति आश्वस्त करेगा।

देश भर में मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है। जिस प्रकार एक वृक्ष की जड़ें जमीन में रहती हैं, उसी प्रकार पत्रकारों का संघर्ष और उनके निजी जीवन की चुनौतियां अक्सर पर्दे के पीछे छिपी रहती हैं। पत्रकारिता का यह पेशा बाहरी दुनिया के लिए भले ही आकर्षक और रोमांचकारी हो लेकिन हकीकत में यह जिम्मेदारी, जोखिम और निरंतर चुनौतियों से भरा होता है। जनहित और सत्य के प्रति निष्ठावान कलमकारों का योगदान समाज में अद्वितीय है।
पत्रकार में तीन-तीन दशक तक पत्रकारिता में अपना बहुमूल्य योगदान देने वाले, अपना आधा जीवन इस पेशे को समर्पित करने वाले हमारे अपने आज जब आयु से वृद्ध हैं, नौकरी कर पाने में असमर्थ हैं तो उनका जीवन कैसा होगा? ऐसे पत्रकारों के लिए पेंशन बुढ़ापे की लाठी से कम नहीं है।
उत्तर प्रदेश के संदर्भ में, जहां देश के सबसे बड़े राज्य में 995 मान्यता प्राप्त पत्रकार हैं, साथ ही तमाम फ्रंटलाइन के साथी पत्रकार हैं। इन पत्रकारों का जीवन और उनकी रोजमर्रा की समस्याएं चर्चा का विषय नहीं बन पातीं। वह अलग बात है कि इनकी मेहनत और समर्पण से राज्य के विकास और समाज में जन-जागरूकता फैलती है, फिर भी अब तक पत्रकारों को पेंशन जैसी बुनियादी सुविधा नहीं मिल पाई हैं, जबकि उत्तराखंड, पंजाब समेत देश की ज्यादातर राज्य इसे लागू कर चुके हैं। आबादी के हिसाब से देश के सबसे बड़े सूबे में राज्य मुख्यालय पर मान्यता प्राप्त लगभग 995 पत्रकारों द्वारा नवनिर्वाचित “उत्तर प्रदेश मान्यता प्राप्त संवाददाता समिति” के सभी सदस्य इस पुण्य कार्य में प्रयासरत हैं, पूरे मनोयोग से डटे हैं, ताकि जल्द से जल्द पेंशन लागू हो सके। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी भी इस मुद्दे पर गंभीर हैं। उम्मीद ही नहीं विश्वास है कि सकारात्मक परिणाम निकलेंगे। बहरहाल समिति अपने कर्तव्यों , प्रयासों में कहीं कोई कोर-कसर नहीं छोड़ना चाहती।

यूपी के मुख्य सचिव से रखी मांग

उत्तर प्रदेश के मान्यता प्राप्त पत्रकारों की नवनिर्वाचित समिति ने उत्तर प्रदेश के पत्रकारों के लिए पेंशन योजना को प्राथमिकता दी है। उत्तर प्रदेश की सीमा से लगे राज्यों जैसे बिहार, मध्य प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान में पत्रकारों के लिए पेंशन योजना पहले से ही लागू है लेकिन उत्तर प्रदेश के पत्रकार अभी तक इससे वंचित हैं। राज्य मुख्यालय पर मान्यता प्राप्त संवाददाताओं की समिति ने पेंशन योजना को जल्द से जल्द लागू करने के लिए प्रयासरत है। इस संबंध में हाल ही में समिति ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह से मुलाकात की और पत्रकारों की पेंशन, स्वास्थ्य सुविधाओं और अन्य मुद्दों पर विस्तार से चर्चा की। मुख्य सचिव से बातचीत में समिति ने कहा कि कई दशकों से पत्रकारिता में योगदान देने वाले पत्रकार जब वृद्धावस्था में पहुंचते हैं, तब उन्हें आजीविका चलाने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इस स्थिति में पेंशन योजना उनके लिए बुढ़ापे की लाठी होगी। मुख्य सचिव ने समिति को आश्वासन दिया है कि पत्रकारों की समस्त उचित मांगों पर गंभीरता से विचार किया जाएगा और जल्द ही इस दिशा में सकारात्मक कदम उठाए जाएंगे। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार पत्रकारों की इस मांग को गंभीरता से ले रही है। उम्मीद की जा रही है कि राज्य में पत्रकारों के लिए पेंशन योजना जल्द ही लागू की जाएगी, जिससे उनका भविष्य सुरक्षित हो सके। पेंशन योजना न केवल आर्थिक सुरक्षा प्रदान करेगी, बल्कि पत्रकारों के लिए एक सम्मानजनक जीवन जीने का माध्यम बनेगी।
यूपी में पत्रकारों को पेंशन एक गंभीर मसला है। उत्तर प्रदेश मान्यताप्राप्त संवाददाता समिति अथक प्रयास करके पत्रकारों को पेंशन दिलाने का मार्ग प्रशस्त कर रही है। योगी जी ने खुद दिलचस्पी लेकर पेंशन के लिए कदम उठाया है। अब उम्मीद है कि पत्रकारों को जल्द पेंशन मिल जाएगी। अब यह योगी जी पर निर्भर करता है कि वे कब इसकी घोषणा करेंगे।

किन राज्यों में कितनी मिलती है पेंशन।

1. मध्य प्रदेश 20 हजार रुपये
2. हरियाणा में 15 हजार रुपये
3. राजस्थान में 15 हजार रुपये
4. पंजाब में 12 हजार रुपये
5. छत्तीसगढ़ 10 हजार रुपये
6. केरल 10 हजार रुपये
7. असम 8 हजार रुपये
8.झारखण्ड 7.5 हजार रुपये
9. बिहार में 6 हजार रुपये
10. पुडुचेरी केंद्रशासित प्रदेश 6 हजार रुपये
11. तमिलनाडु 4 हजार रुपये
12. उत्तराखण्ड में 5 हजार रुपये
13. पश्चिम बंगाल 2.5 हजार रुपये
14. उत्तर प्रदेश शून्य ……

इसके अलावा ओडिशा, हिमाचल प्रदेश और तेंलगाना और अन्य राज्यों मेें पत्रकार कल्याण की योजनाएं और फंड का भी प्रावधान है।

पत्रकारिता का यह पेशा दिन-रात समाज की सेवा में जुटा रहता है, लेकिन इसके पीछे छिपे संघर्ष और चुनौतियों को समझना भी जरूरी है। जब एक पत्रकार अपनी लेखनी से समाज में बदलाव लाने का काम करता है, तब उसे भी यह उम्मीद होती है कि उसके बुढ़ापे में उसका जीवन सहज और सुरक्षित रहेगा। उत्तर प्रदेश मान्यता प्राप्त संवाददाता समिति का यह प्रयास निश्चित ही प्रदेश के पत्रकारों के लिए नई राहें खोलेगा और उन्हें भविष्य के प्रति आश्वस्त करेगा।
गौरतलब है कि हाल ही में लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत पूरी पारदर्शिता के साथ संवाददाता समिति का चुनाव सम्पन्न हुआ था। यह चुनाव बाकायदा विधानसभा के तिलक हाल में सरकार और करीब डेढ़ दर्जन निष्पक्ष पत्रकारों के समूह (आयोग)की निगरानी में पूरी पारदर्शिता और निष्पक्षता से सम्पन्न कराया गया था। आज नवनिर्वाचित संवाददाता समिति के कार्यकाल का एक माह पूर्ण हुआ है। समिति ने सूबे के पत्रकारों के हितों, आवश्यकताओं और समस्याओं के समाधान के लिए सार्थक कदम उठाना शुरू कर दिए हैं। समिति के सदस्यों ने एक महीने में कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर रूपरेखा तैयार की है। पेंशन योजना के अलावा, पत्रकारों के लिए बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं और सुरक्षा का मुद्दा भी प्रमुखता से उठाया गया है।
इस मौके पर समिति के अध्यक्ष हेमंत तिवारी की अध्यक्षता में उपाध्यक्ष आकाश शेखर शर्मा, अविनाश चंद्र मिश्रा, राघवेंद्र त्रिपाठी, कोषाध्यक्ष आलोक कुमार त्रिपाठी एवं संयुक्त सचिव विजय कुमार त्रिपाठी और कार्यकारिणी सदस्य- दिलीप सिन्हा, रितेश सिंह, अब्दुल वहीद, नावेद शिकोह, वेद प्रकाश दीक्षित, भूपेंद्र मणि त्रिपाठी, राघवेंद्र प्रताप सिंह, रेनू निगम, डॉ सुयश मिश्रा व सत्येंद्र राय मौजूद रहे

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