उम्र के 63वें पड़ाव में 36 मीडिया घरानों की शान है फ्रीलांसर दुबे !
उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार जिस डिबेट के प्रसारण में फ्रीलांसर दुबे बैठते हैं उसमें दर्शकों के रुझान और रूचि के कारण टीआरपी में अप्रत्याशित रूप से बढ़त दिखाई देती है। तेज़ आवाज़ या उल जलूल, बकलोली न करके आंकड़ो और जनता के दर्द को अपनी आवाज़ देने के कारण उनके प्रतिद्वन्दी भी उनकी हाज़िरजवाबी के चलते निरुत्तर हो जाते है।
जिस उम्र में देश के नौजवान हुक्का गुड़गुड़ाते नजर आते हैं और लड़खड़ाते, बहकते कदमों से मंजिल पाने की कोशिश में दिखते हैं उस उम्र के 21वें साल में फ्रीलांसर दुबे जी गृहस्थ जीवन में बंध कर पारिवारिक जिम्मेदारियों का बोझ उठा रहे थे लेकिन समाज के लिए कुछ करने की चाह और आम आदमी की आवाज बनने की ललक ने उनको वर्ष 1989 में उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के एक बड़े व्यवसायिक क्षेत्र को सुधारने, समझने और तरक्की की एक नई राह दिखाने के लिए एक अहम जिम्मेदारी सौंप दी। ये ज़िम्मेदारी उनको खुद ब खुद या किसी विरासत के चलते नही मिली थी बल्कि जनमानस के प्रति समर्पित भाव के चलते अभूतपूर्व मतों से जिता जनता ने उनको दी थी। फ्रीलांसर दुबे के लिए ये जीत कोई छोटी नही थी बल्कि नाका हिंडोला जैसे व्यावसायिक क्षेत्र के सभासद चयनित किए जाने की एक बड़ी और अहम जिम्मेदारी थी।
बुजुर्गों का आशीर्वाद, बड़ों का साथ और छोटों के प्यार से 1989 से जो सिलसिला शुरू हुआ तो कभी रुका नहीं, समाज सेवा और आम जनमानस की नब्ज़ को टटोलने में माहिर सुशील दुबे का एक नया रूप मीडिया घरानों की डिबेट में देखने को मिलता है। अपने बेबाक अंदाज से समाज के हर वर्ग की बात को प्रखरता और प्रमुखता से उठाने के कारण न्यूज़ चैनल की टीआरपी सुशील दुबे के चलते बढ़ गई है और मीडिया जगत में जहां चैनल वाले टीआरपी दुबे के नाम से संबोधित करते है तो वहीं बेबाक और स्वतंत्र रूप से बात रखने के कारण आम जनमानस में फ्रीलान्स दुबे के नाम से प्रचलित हैं।
उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार जिस डिबेट के प्रसारण में फ्रीलांसर दुबे बैठते हैं उसमें दर्शकों के रुझान और रूचि के कारण टीआरपी में अप्रत्याशित रूप से बढ़त दिखाई देती है। तेज़ आवाज़ या उल जलूल, बकलोली न करके आंकड़ो और जनता के दर्द को अपनी आवाज़ देने के कारण उनके प्रतिद्वन्दी भी उनकी हाज़िरजवाबी के चलते निरुत्तर हो जाते है।
बहुत कम वक्त में फ्रीलांसर दुबे द्वारा मीडिया क्षेत्र में जो मुकाम हासिल किया गया है उसके लिए कहीं ना कहीं समाज के प्रति समर्पित भाव, हर आम, खास इंसान के लिए मोहब्बत, इख़लाक़ के साथ इंसानी रिश्ते को समझने और परखने की क्षमता है। उम्र के 63वें जन्मदिन के मौके पर ऑल इंडिया न्यूज़ पेपर एसोसिएशन, आईना की टीम जब उनके आवास पर पहुंचे तो बधाइयां देने वालों का तांता लगा हुआ था, आईना संगठन के पास तो देने के लिए सिर्फ फूल थे लेकिन कीमती और बेशकीमती तोहफा देने वालों की एक लंबी कतार थी।
फ्रीलांसर दुबे जी ने इस ख़ास मौके पर व्यस्तता के चलते सिर्फ पेड़ा खिलाकर निपटा दिया गया लेकिन उनके व्यक्तित्व में वादाखिलाफी नाम की कोई बात दिखती नही जिसके चलते उम्र के 63वें पड़ाव में 36 मीडिया घरानों की टीआरपी दुबे बने है आन, बान और शान।
एक नजर इधर भी ……………..
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