पत्रकारिता के महानायक ने पूरे किये जीवन के 85 बसंत
आज इतिहास में क्या हुआ था ? मेरे जैसे श्रमजीवी के लिए 29 मई कई मायनों में एक विलक्षण दिवस है। इसी तारीख को 1953 में एक साधारण मालवाहक मेहनतकश विश्व के सबसे ऊँचे शिखर माउन्ट एवरेस्ट पर चढ़ गया था। शेरपा तेनजिंग नोर्गी ने चोटी पर चढ़कर अपनी भुजाएं एडमंड हिलेरी की ओर बढ़ाई और उसे ऊपर खींचा। मगर दुनिया में एक गलतबयानी फैली कि न्यूजीलैंड के हिलेरी ने एवरेस्ट जीता। सर्वहारा वर्ग ने देखा इतिहास में फिर एक बार पैसों से पसीना पराजित हो गया। मगर दलितजन ने आज ही के दिन 1947 में हजारों साल से चले आ रहे जातीय विषमता का खात्मा कर भारतीय संविधान में समरसता (धारा 14) के तहत पूर्ण मूलाधिकार हासिल कर लिया।
के. विक्रम राव-
आज (29 मई 2024, बुधवार) मेरे 85 बसंत पूरे हो गए। कई पतझड़ भी। कवि कबीर की पंक्ति सावधान करती है, जब वे माटी से घमंडी कुम्हार को कहलाते हैं : “एक दिन ऐसा आएगा, जब मैं रौंदूगी तोय।” चेतावनी है। मगर आस बंधाती है शायर साहिर की पंक्ति : “रात जितनी भी संगीन होगी, सुबह उतनी ही रंगीन होगी।” और सुबह होने से कोई भी नहीं रोक सकता।
हमारे पत्रकारी मुहावरा कोश में आज ही के दिन एक मुहावरा जुड़ गया था : “कैलिफोर्निया का सारा सोना मिल जाय, फिर भी हम खबर दबायेंगे नहीं। जरूर वह छपेगी।” इसकी उत्पत्ति आज ही के दिन 1848 में हुई थी। तब कैलिफोर्निया की सट्टर खाड़ी में सोना मिला। जेम्स मार्शल, खनन विशेषज्ञ, ने खोजा था। और उस वर्ष के 29 मई के दिन कैलिफोर्निया के समस्त पत्र-पत्रिकाओं के कर्मचारी कार्यालय छोड़कर सोना बटोरने चल पड़े। अख़बारों ने घोषणा कर दी कि प्रकाशन ठप पड़ गया है। पाठकों ने बड़ी भर्त्सना की। तभी से उक्ति बनी कि यदि कैलिफोर्निया का सारा स्वर्ण भी मिल जाये, अख़बार छपेंगे ही। हमारी अभिव्यक्ति की आजादी अक्षुण्ण है।
प्रमाण के तौर पर इस वाकये का उल्लेख कर दूं। एक रात को गुजरात के सबसे धनी उद्योगपति अहमदाबाद “टाइम्स ऑफ इंडिया” के संपादकीय विभाग में आए। मैं रात की ड्यूटी पर था। उनका आग्रह था कि एक खबर न छपे। मैंने उन्हें तुरंत टोका : “शाह जी यहां खबर छपती है। आप मंदिर में गौ हत्या कराएंगे।” खैर मैंने पूछा क्या खबर है। वे बोले : “मेरी इकतौली बेटी और मेरा ड्राइवर दो दिन से दिखाई नहीं दे रहे हैं। यदि यह चर्चा में आएगी तो मेरा परिवार संकट में पड़ जाएगा।” मेरा तात्कालिक जवाब था : “सेठजी, ऐसी खबर में “टाइम्स आफ इंडिया” को रुचि नहीं है। निश्चिंत रहिए। यह नहीं छपेगी।” मुझे लगा मैंने निष्ठावान पत्रकारिता निभाई।
अब उस 29 मई का जिक्र कर दूं जो मेरे निजी जीवन का सर्वाधिक महत्वपूर्ण था। बड़ौदा सेन्ट्रल जेल में हम सात लोग दस बाई दस फीट के तनहा कोठरी में कैद रखे गए थे। महाराजा सयाजीराव द्वारा 1840 में निर्मित इस काल कोठरी में फांसी के सजायाफ्ता कैदी ही रखे जाते थे। मैंने इन्हीं कोठरी नंबर 38 मेंने अपना अड़तीसवाँ जन्मदिन (29 मई 1976) “मनाया” था। हम पर आरोप था कि हमने जॉर्ज फर्नांडिस के साथ साजिशन भारत सरकार पर ऐलाने-जंग किया था। बगावत का अंजाम मौत होता है। तब देश में इमरजेंसी राज था। मां-बेटे की कुर्सी हेतु मीसा लागू था। इसको लोग बताते थे “मेंटिनेंस ऑफ़ इंदिरा एंड संजय एक्ट”।
बस दैवकृपा से एक ही उपलब्धि पाई है। सात पुस्तकें प्रकाशित हुयी हैं : “न रुकी, न झुकी, यह कलाम”, लोहिया पर दो किताबें, “एक पत्रकार की राजनीतिक विचार-यात्रा”, “मानेंगे नहीं, मारेंगे नहीं”, “गुंच ए गुलिस्ताँ”, “जो जनमन में बसे” (धार्मिक)। पांच छप रही हैं : दो अनामिका (नई दिल्ली), एक नवनीत मिश्र द्वारा प्रयागराज से, एक लखनऊ के पत्रकार मंजुल द्वारा तथा एक प्रभात कुमार जी द्वारा।
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