रिटायर्ड PCS, समाचार पत्र स्वामी,संपादक दयाशंकर को आर्थिक अपराध अनुसंधान ने माना भ्रष्टाचार, जालसाज़ी का अपराधी

आर्थिक अपराध अनुसंधान द्वारा प्रमुखता से ऐसे भ्रष्टाचारी सरकारी अधिकारी और कर्मचारियों की जांच जाती है जिनके पास भ्रष्टाचार से कमाई गई दौलत की कमी नहीं होती और EOW में कार्यरत अधिकारी अपने मानुष स्वभाव और प्रकृति के अनुरूप दौलत को देखकर कहीं ना कहीं डगमगा जाता है जिसके चलते आर्थिक अपराध अनुसंधान में अनेक जांचे अनिश्चितकाल के लिए या तो लंबित रहती हैं या उनको दबा कर खत्म कर दिया जाता है।

10 साल, सैकड़ो पत्राचार और दर्जनों ईमेल के बाद आंशिक अपराध का आया परिणाम।

उत्तर प्रदेश में अपराधियो को समाचार पत्र की आड़ में संरक्षण मिलते देखकर भ्रष्ट रिटायर्ड पी सी एस अधिकारी दयाशंकर श्रीवास्तव द्वारा राष्ट्रीय जनसूचना अधिकार नामक समाचार पत्र का प्रकाशन प्रारम्भ किया गया और तनु ऑफसेट नामक प्रिंटिंग प्रेस से लगभग 30 हज़ार प्रतियों को प्रतिमाह छपवाने का फर्ज़ी कागज़ भी बनवाया गया जबकि तनु ऑफसेट का कार्यालय जिन गलियों में बताया गया है वहां तक अग्निशमन वाहन का पहुँचना नामुमकिन है ऐसे में मानकों की धज्जियां उड़ाते हुए तनु ऑफसेट द्वारा अनेक समाचार पत्रों की लाखों प्रतियों का प्रकाशन किया जा रहा है।

रिटायर्ड PCS अधिकारी दयाशंकर श्रीवास्तव द्वारा अपने कार्यकाल में अनेक घोटाले करते हुए कई बार निलंबन का फल प्राप्त कर चूके हैं, और घोटालों से कमाई गयी अकूत संपत्ति के चलते अपनी सारी जांच दबवा गये है।
सिर्फ दयाशंकर ही नही सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों द्वारा किए जा रहे भ्रष्टाचार पर योगी सरकार द्वारा अंकुश लगाने के सारे प्रयास विफल होते दिख रहे हैं जिसका मुख्य कारण है कि आर्थिक अपराध में दोषी पाए जाने वाला कोई भी सरकारी अधिकारी बड़ी आसानी से अपनी जांच को अनिश्चितकाल के लिए लंबित कराकर सरकारी सेवानियमावली के प्रावधानों के चलते भ्रष्टाचार से लूटी गई दौलत से पूरी जिंदगी ऐशोआराम से काट देता है।

भ्रष्ट अधिकारियों पर कोई कार्रवाई न होते देखकर अन्य सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों का हौसला बढ़ता जा रहा है क्योंकि जब तक आर्थिक राजस्व को नुकसान पहुंचाने वाले सरकारी अधिकारी, कर्मचारियों पर गंभीर कार्रवाई नहीं होगी या उनके द्वारा किए गए भ्रष्टाचार का परिणाम सामने नहीं आएगा तो इन भ्रष्टाचारियों पर रोक लगाना असंभव सा प्रतीत होता है और इसका मुख्य कारण आर्थिक अपराध अनुसंधान की लचर व्यवस्था है।

आर्थिक अपराध अनुसंधान द्वारा प्रमुखता से ऐसे भ्रष्टाचारी सरकारी अधिकारी और कर्मचारियों की जांच जाती है जिनके पास भ्रष्टाचार से कमाई गई दौलत की कमी नहीं होती और EOW में कार्यरत अधिकारी अपने मानुष स्वभाव और प्रकृति के अनुरूप दौलत को देखकर कहीं ना कहीं डगमगा जाता है जिसके चलते आर्थिक अपराध अनुसंधान में अनेक जांचे अनिश्चितकाल के लिए या तो लंबित रहती हैं या उनको दबा कर खत्म कर दिया जाता है।
आर्थिक अपराध की जांच हेतु गठित आर्थिक अपराध अनुसंधान की कार्रवाई से प्रमाणित होता है कि भ्रष्टाचार में लिप्त होकर सरकारी अधिकारी, कर्मचारी द्वारा जो करोड़ों रुपए की कमाई की जाती है वह आर्थिक अपराध अनुसंधान में केवल बर्बाद परिणाम के रूप में सामने आती है।

भ्रष्टाचारी रिटायर्ड पीसीएस अधिकारी दयाशंकर श्रीवास्तव की जांच का परिणाम भी बर्बाद हो जाता अगर शिकायतकर्ता द्वारा विगत 10 साल से लगातार आर्थिक अपराध अनुसंधान कार्यालय के चक्कर न काटे जाते और लगभग सैकड़ों की तादाद में पत्राचार न किया जाता। शिकायतकर्ता न तो PCS अधिकारी से डरा, न बिका, और न ही दबा जबकि शिकायतकर्ता के विरुद्ध फर्ज़ी मुक़दमे दर्ज करवाकर शिकायत वापस लेने पर मजबूर किया गया।

दयाशंकर द्वारा समाचार पत्र की आड़ में अपनी काली कमाई को खपाने और स्वयं को बचाने हेतु सूचना एवं जन संपर्क विभाग से मान्यता प्राप्त करने हेतु प्रयासरत है और विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार राष्ट्रीय जन सूचना अधिकार को सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के अनेक अधिकारियों का दयाशंकर के समाचार पत्र का संरक्षण प्राप्त है और इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि राष्ट्रीय जन सूचना अधिकार समाचार पत्र के प्रतिनिधियों को जिला एवं राज्य मुख्यालय की मान्यता निर्गत की गई हो वहीं तनु ऑफसेट प्रिंटिंग प्रेस की जांच आर्थिक अपराध से किये जाने की खबरें प्राप्त हो रही है।

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