दोहरे विज्ञापन मापदण्ड से लघु एवं मध्यम समाचार पत्र खात्मे की कगार पर

लघु समाचार पत्रों के अस्तित्व को बचाने की कोशिशें तेज

Pt. Deendayal Upadhyay Jayanti: BJP will celebrate Pt Deendayal Upadhyay's  birth anniversary in a different way this year, preparations are being done  on a large scale | Pt. Deendayal Upadhyay Jayanti: इसडॉ मोहम्मद कामरान
उत्तर प्रदेश के लघु एवं मध्यम समाचार पत्रों के दम तोडतेे अस्तित्व को संभालने एवं बचाने का कार्य डबल इंजन की योगी सरकार की प्राथमिकता उसी आधार पर होनी चाहिए जिस प्राथमिकता से सरकार द्वारा लघु उद्योगों, बीमार मिलो, संस्थानों को चलाने के लिए अनेक कल्याणकारी याजनाऐं लागू कर रही है, मुफ्त राशन वितरण और किसानों के कर्ज माफी की पहल की जा रही है। कम संसाधन वाले लघु एवं मध्यम समाचार पत्र भी छोटे उद्यमी वर्ग में आते हैं और ऐसे समाचार पत्र पर हजारों, लाखों परिवार निर्भर रहते हैं।
उत्तर प्रदेश के लघु एवं मध्यम समाचार पत्रों द्वारा अपनी क्रांतीकारी कार्यशैली के कारण पूरे विश्व में एक अलग पहचान रखते हैं । उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले के निवासी पं.युगुल किशोर सुकुल द्वारा हिंदी का पहला अख़बार १८२६ में ‘उदन्त मार्तंड’ कोलकाता से निकाला था।
लघु एवं मध्यम समाचार पत्रों द्वारा क्रांति और राष्ट्रीयता की प्रखरता ने अंग्रेजी हुकूमत को आइना दिखाने का काम किया था। आज के डिजिटल युग में भले ही न्यूज़ चैनल, मोबाइल, लैपटॉप पर अपडेटेड न्यूज़ हमें प्राप्त हो रही है लेकिन क्षेत्रीय समाचार पत्रों की अपनी अलग भूमिका होती है। क्योंकि इनसे आम जनमानस का विश्वास जुड़ा है। मोबाइल के माध्यम से फेक न्यूज़ का चलन बहुत तेजी से बढ़ा है, ऐसे में खबरों की विश्वसनीयता और स्थानीय समाचारों के लिए समाचार पत्र ही एकमात्र विकल्प है। ग्रामीण परिवेश में समाचार पत्रों में छपी हुई खबरों को समझना आसान होता है क्योंकि बात चाहे मोबाइल की हो या टीवी स्क्रीन पर जानकारी को पढ़ना ,न सिर्फ कठिन होता है बल्कि दिमाग के भटकने और विचलित होने की संभावना ज्यादा होती है। इसलिए मीडिया क्षेत्र में लघु एवं मध्यम समाचार पत्रों का महत्वपूर्ण योगदान है और इसके अस्तित्व को बचाए रखना भी उतना ही महत्वपूर्ण है।
उत्तर प्रदेश में पत्रकार और पत्रकारिता को बचाना है तो लघु एवं मध्यम समाचार पत्रों को बचाना होगा वरना वह दिन दूर नहीं जब बड़े विदेशी संगठन और बड़े व्यवसायिक घराने केवल अपने फायदे की खबरों को चलाने के लिए बड़े-बड़े समाचार पत्रों का संचालन करते दिखाई देंगे और पत्रकारिता से कोसों दूर व्यवसायिक दृष्टि से अपने मनमुताबिक खबरों का प्रकाशन करते दिखायी देंगेे । वहीं लघु एवं मध्यम समाचार पत्र क्षेत्रीय जनता से सीधे जुड़ा होता है और स्थानीय लोक कला और परंपराओं को अपने समाचार पत्र के माध्यम से पूरे समाज को जागरुक कर रहे हैं तो ऐसे समाचार पत्रों को सरकार द्वारा आर्थिक सहयोग स्वरूप समय-समय पर विज्ञापन देते रहना होगा परन्तु उत्तर प्रदेश के सूचना एवं जन सम्पर्क विभाग द्वारा श्रेत्रीय न्यूज़ चैनलों को प्राथमिकता के आधार पर मनमाफिक दरों पर विज्ञापन निर्गत करके लघु एवं मध्यम समाचार पत्रो की अनदेखी किया जाना समाचार पत्र के अस्तित्व पर बड़ा संकंट दिखता हैै।
उत्तर प्रदेश के सूचना एवं जनसंपर्क विभाग में पूर्ववर्ती समाजवादी सरकार ने द्वारा शासनादेश रूपी स्वचलित मशीन की स्थापना वर्ष 2014 में हुई थी जो निरंतर बिना किसी अवरोध के कार्य कर रही है। योगी सरकार की भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की नीति और डबल इंजिन का बुलडोजर भी इस मशीन को नष्ट करने में नाकाम है। शासनादेश रूपी मशीन के द्वारा भारत सरकार द्वारा निर्धारित डीएवीपी विज्ञापन दरों के लाखो रुपये के विज्ञापन का भुगतान करोड़ों में बदल जाता है। न कोई हेराफेरी और न ही कोई फर्जीवाड़ा, सबको बराबर से मिलता है । जिसके चलते सब रहते हैं हरदम मस्त, जो पिसता है वो है सरकारी खजाने का दम इसलिए किसी को नही है ज़रा भी गम।
विगत 8 वर्षों से चल रही मशीन से न सिर्फ सरकारी खजाने का दम निकल रहा है बल्कि इस मशीन के चलते लघु एवं मध्यम समाचार पत्रों के अस्तित्व पर भी गहरा संकट मंडरा रहा है। उत्तर प्रदेश सरकार की कल्याणकारी योजनाओं के प्रचार प्रसार हेतु निर्धारित बजट का अधिकांश भाग इसी मशीन की भेंट चढ़ जाता हैं और लघु एवं मध्यम समाचार पत्र केवल टकटकी लगाए रह जाता है।
सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के प्रचलित नियमावली के अनुसार जिन समाचार पत्रों को भारत सरकार के विज्ञापन और दृश्य प्रचार निदेशालय (डीएवीपी/बी.ओ. सी.) द्वारा विज्ञापन दर जारी की जाती है उन सभी समाचार पत्रों को सरकारी विज्ञापनों को बीओसी द्वारा जारी की गई विज्ञापन दर पर ही प्रकाशित करना होता है परंतु शासनादेश रूपी इस मशीन का खेल बड़ा निराला है, डीएवीपी दरें निर्धारित होने के बावजूद भी इस शासनादेश के माध्यम से विज्ञापन को प्रचारित प्रसारित करने हेतु डीएपी दरों से अधिक विभागीय दरों पर विज्ञापन दिया जाता है। इस शासनादेश में एक ऐसी श्रेणी भी विकसित की गई है जिसमें डीएवीपी/बी.ओ. सी. के मानकों, अहर्ताओं को न पूरा करने पर भी मात्र डीएवीपी कार्यालय में विज्ञापन दर हेतु आवेदन पत्र प्राप्त किए जाने पर करोड़ो रूपये की धनराशि का विज्ञापन दिए जाने का प्रावधान है जबकि समाचार पत्र/पत्रिकाओं को यदि डीएपी द्वारा विज्ञापन दर नहीं निर्गत की गई है तो 6 माह के नियमित प्रकाशन के पश्चात ही विज्ञापन हेतु सूचीबद्ध किया जाता है, ऐसे में इस शासनादेश के माध्यम से प्रिंट मीडिया के साथ दोहरा मापदंड अपनाया जा रहा है और उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा आवंटित बजट को व्यर्थ में ऐसे माध्यम पर खर्चा किया जा रहा है जिसके लिए भारत सरकार के डीएवीपी/बी.ओ. सी. द्वारा सरकारी प्रचार प्रसार हेतु विज्ञापन दरें निर्धारित की गई है।
डीएवीपी द्वारा विज्ञापन नियमावली में स्पष्ट किया गया है कि सरकारी योजनाओं, कार्यक्रमों और नीतियों को इन्ही दरों पर प्रकाशित किया जाना है और यदि कोई प्रकाशन भारत सरकार के मंत्रालयों विभागों तथा स्वायत्तशासी निकायों की ओर से जारी विज्ञापनों को लेने और प्रकाशन करने से 3 बार से अधिक मना करता है तो तत्काल प्रभाव से 12 माह की अवधि तक पैनल से बाहर कर दंडित किया जाएगा लेकिन भारत सरकार द्वारा जारी मानकों, नियमों की अनदेखी करके पूर्ववर्ती समाजवादी सरकार द्वारा सूचना एवं जनसंपर्क विभाग, उत्तर प्रदेश के प्रचलित नियमो में कतिपय लोगो के दबाव में, उनको लाभ देने हेतु दिनांक 28.08.2014 को ऐसा संशोधन किया गया जो सभी मानकों, नियमो के विपरीत दिखाई देता है और विगत 8 वर्षों से सरकारी धनराशि का बड़ा दुरुपयोग दिखाई देता है।
ऑल इंडिया न्यूज़पेपर एसोसिएशन, आईना पूर्ववर्ती समाजवादी सरकार में जारी शासनादेश संख्या 478/उन्नीस-2-2014-81/2014 दिनांक 28 अगस्त 2014 रूपी मशीन जिसके द्वारा एक बड़े संगठित भ्रष्टाचार का सुनियोजित तरीके से रसपान कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है को निरस्त करने हेतु माननीय राज्यपाल, माननीय मुख्यमंत्री एवं अन्य संबंधित वरिष्ठ अधिकारियों को ज्ञापन देकर अवगत कराया गया है। सरकारी धनराशि के बड़े दुरुपयोग वाले ऐसे शासनादेश के खेल को आईना दिखाया गया है और भ्रष्टाचार के इस बड़े खेल को बंद करने का आव्हान ऑल इंडिया न्यूज़पेपर एसोसिएशन, आईना द्वारा किया गया है परंतु आप सबकी सहभागिता इस पुनीत कार्य हेतु आवश्यक है क्योंकि विज्ञापन बजट का अधिकांश भाग शासनादेशी मशीन द्वारा अवैध रूप से खनन करने का अनवरत खेल चालू है जो सरकारी धनराशि के दुरुपयोग के साथ साथ लघु एवं मध्यम समाचार पत्र के भविष्य, अस्तित्व के लिए अत्यंत हानिकारक है।

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