पत्रकारों को सिस्टम में कॉकरोच बने रहना चाहिए, तितली नहीं: राजदीप सरदेसाई

इंडिया टुडे टेलीविजन के कंसल्टिंग एडिटर राजदीप सरदेसाई ने दिल्ली में आयोजित एक्सचेंज4मीडिया के 'न्यूज नेक्स्ट' (News Next 2024) कॉन्फ्रेंस में अपने संबोधन में यह बात कही

RajdeepSardesai78451‘आज जैसे अतिध्रुवीकरण दिनों में भी पत्रकारिता की जा सकती है, यदि पत्रकार और एंकर तीन C- संविधान (Constitution), विवेक (Conscience) और विश्वसनीयता (Credibility) का पालन करें तो, क्योंकि ये तीन Cs ही हमेशा पत्रकारिता का नेतृत्व करेंगे’ ये कहना है इंडिया टुडे टेलीविजन के कंसल्टिंग एडिटर राजदीप सरदेसाई का। उन्होंने दिल्ली में आयोजित एक्सचेंज4मीडिया के ‘न्यूज नेक्स्ट’ (News Next 2024) कॉन्फ्रेंस में अपने संबोधन में यह बात कही।

चर्चित विषय ‘चुनाव 2024: अति ध्रुवीकरण के युग में चुनावों की कवरेज’ (Elections 2024: Covering Elections In The Age of Hyperpolarization) पर बोलते हुए, अनुभवी पत्रकार ने कहा, “मेरा आज खबरों के सकारात्मक और गैर-सकारात्मक दोनों पहलुओं को संबोधित करने का इरादा है। एक पत्रकार होना अविश्वसनीय रूप से रोमांचक है। आगामी चुनाव को देखते हुए राजनीतिक नेताओं और देश के मतदाताओं के साथ जुड़ने का इससे बेहतर समय कोई नहीं है। सरदेसाई ने कहा, लोकतांत्रिक उत्साह का यह दौर हमें पूरे देश से जुड़ने के व्यापक अवसर प्रदान करता है।

उन्होंने कहा, यहां तक कि आम तौर पर फ्रूगल न्यूज ऑर्गनाइजेशन भी स्टूडियो से बार-बार होने वाली बातचीत के बीच ध्यान आकर्षित करने के लिए अपने पत्रकारों को फील्ड पर भेज रहे हैं, जिसमें रात-रात भर वही मेहमान शामिल होते हैं।

उन्होंने आगे कहा कि तकनीकी की प्रगति ने दुनिया के किसी भी कोने में आपकी उपस्थित को संभव बना दिया है और आपके पास मौजूद लाइव व्यू के जरिए ही आपकी स्टोरी को अपलिंक करना सहजता से संभव बना दिया है। लिहाजा ऐसे में आपकी पीढ़ी भाग्यशाली है, क्योंकि हमने चुनावी मौसम में भी एंट्री की है। अब यह अच्छी खबर है और यहीं पर दुखद रूप से अच्छी खबर समाप्त हो जाती है।

सरदेसाई ने अपनी बात रखते हुए आगे कहा कि आइए हम उस बुरी खबर की ओर मुड़ते हैं, जो बहुत अच्छी नही हैं। यह यकीनन न्यूज रूम और उसके बाहर सबसे अधिक ध्रुवीकृत माहौल को लेकर है। कोई गलती न करें। कुछ लोग कहेंगे कि 1989 में राजीव गांधी बनाम वीपी सिंह का चुनाव आज के चुनावों की तुलना में उतना ही कड़वा और कहीं अधिक उन्मादी था। यह शीर्षस्थ और दलित के बीच का क्लासिक चुनाव था। लेकिन दिलचस्प बात ये है कि इसका न्यूजरूम पर कोई असर नहीं पड़ा।हमने राजीव गांधी को लगभग उतनी ही जगह दी, जितनी हमने वीपी सिंह को दी थी। वास्तव में, मैं यह कहने का साहस कर सकता हूं कि हमने वीपी सिंह को थोड़ी ज्यादा जगह दी, क्योंकि उन दिनों पत्रकारिता आप पर विश्वास करती थी।

उन्होंने कहा कि 1989 और 2024 के बीच यही अंतर था। पत्रकार वीपी सिंह की रैली को कवर करने के बाद स्पष्ट रूप से न्यूज रूम में वापस आ जाते थे, क्योंकि वह ब्लॉक में नए व्यक्ति थे। जैसा कि मैंने कहा, चुनाव उतने ही उन्मादी थे, जितने कि आज हैं। दरअसल, वह इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग से पहले का युग भी था, जब मतपेटियां चोरी हो जाती थीं, पत्रकारों को पीटा जाता था, टेलीविजन कैमरे तोड़ दिए जाते थे। इसलिए, यदि कोई आपसे कहे कि यह एक सभ्य युग था, तो यह बिल्कुल भी सभ्य युग नहीं था। माफी चाहूंगा, लेकिन यह एक ऐसा युग था जहां मुझे लगता है कि न्यूज रूम में जो कुछ भी होता था, पत्रकारों कहीं न कहीं उसे होने नहीं देते थे, लेकिन अब न्यूज रूम पर लगभग पूरी तरह से एकाधिकार हो गया है।”

उन्होंने आगे कहा कि पत्रकार के रूप में हम हर क्षेत्र या हर दूसरे क्षेत्र में समान अवसर की बात करते हैं। हम अपने पेशे में समान अवसर की झलक सुनिश्चित करने के लिए कितना प्रयास करते हैं, यह एक सवाल है जो हम सभी को खुद से पूछना चाहिए कि क्या हमारे पास विवेक बचा है?

इससे भी अधिक परेशान करने वाली बात यह है कि अब पत्रकारों से पक्ष लेने की लगभग मांग सी की जाती है। पक्षपात को पुरस्कृत किया जाता है और सोशल मीडिया के युग में, राय (ओपिनियन) ने तथ्यों को पीछे छोड़ दिया है। अपनी बहस को वायरल बनाने के लिए दोनों दल आपसे कुछ कहने की अपेक्षा करते हैं। लिहाजा तथाकथित वस्तुनिष्ठ पत्रकारिता (objective journalism) के लिए जगह कम होती जा रही है।

इसलिए, इस अतिध्रुविकरण इकोसिस्टम को नेविगेट करना आसान नहीं है। आपको राष्ट्र-विरोधी कहा जाएगा और आपकी रिपोर्ट्स को सेंसर भी किया जा सकता है। सरदेसाई ने कहा, और कौन जानता है, आपको एक दिन अपना खुद का यूट्यूब चैनल शुरू करना पड़ सकता है।

सरदेसाई का कहना है कि पेशे में चुनौतियों के बावजूद वह आस्तिक बने हुए हैं और अब भी वही काम कर रहे हैं, जो उन्होंने 35 साल पहले किया था। उन्होंने कहा, “मैं नरेंद्र मोदी जी से पहली बार 1990 में रथयात्रा के दौरान मिला था। हाल ही में जब मैं उनसे मिला, तो मैंने उनसे कहा कि मैं अब भी वही काम कर रहा हूं, यानी एक पत्रकार का काम।’

उन्होंने कहा कि सिस्टम में पत्रकारों को कॉकरोच बने रहना चाहिए, उन्हें तितली नहीं बनना चाहिए। मुझे लगता है कि हममें से कई लोगों ने यही गलती कर दी और टीवी पर अपनी लोकप्रियता के चलते सिस्टम में अचानक तितली बन बैठे। यदि आप कॉकरोच हैं, तो भी आप सिस्टम में भी रह सकते हैं।

पत्रकारों से अपना काम ईमानदारी से करने का आग्रह करते हुए सरदेसाई ने कहा, “पत्रकारिता का पक्ष लेना चाहिए। विशेष रूप से चुनाव के समय पत्रकारों को जो पक्ष लेना चाहिए, वह है संविधान का पक्ष और अपनी अंतरात्मा का पक्ष है। पत्रकार शक्तिशाली पदों पर बैठे लोगों को जवाबदेह बनाएं। नफरत फैलाने वाले भाषण को बेनकाब करें, सत्ता के दुरुपयोग को उजागर करें। उन संस्थानों पर सवाल उठाएं, जो खुलेआम अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करते देखे जाते हैं। भले ही वह संस्था प्रवर्तन निदेशालय ही क्यो न हो।”

उन्होंने आगे कहा, ”उन आम नागरिकों की स्टोरीज को बताएं, जिन लोगों को सरकारी योजनाओं से फायदा हुआ है और जिन्हें नुकसान हुआ है। उन नेताओं की स्टोरीज भी सामने लाएं, जिन्होंने अपने वादे पूरे किए हैं और जिन्होंने नहीं। मेरे मित्रों, पत्रकार के रूप में हम जो लड़ाई लड़ रहे हैं, वह सरकार और विपक्ष के बीच नहीं है। राजनेताओं को जितना चाहें उतना शोर मचाने दें। यह उनकी जीत की लड़ाई है। एक पत्रकार के रूप में हमारी लड़ाई जीतना या हारना नहीं है। हमारी लड़ाई इससे कहीं और अधिक महत्वपूर्ण है।

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