सूचना विभाग ने रेवाड़ी की तरह बांट डाले अपने चहेतों को चुनाव कवरेज के पास, निर्वाचन आयोग भी कुंभकर्णी नींद में सोया

विभाग में तैनात अधिकारी को ये तक जानकारी नहीं है कि कौन सा संस्थान प्रिंट मीडिया का है और कौन इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का, उन्हें तो केवल अपने चहेतों के पास जारी करने का आदेश है।

उत्तर प्रदेश में निर्वाचन आयोग अगर प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को ही कवरेज के लिए मान्य मानता है तो वेबसाइट, यूट्यूब इन सबको निर्वाचन आयोग कवरेज पास किस आधार पर जारी कर रहा है?

यूपी के जिलों में सूचना विभाग ने सभी के पास जारी किए और उनसे पूछने वाला कोई नहीं है। लेकिन लखनऊ में सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के प्रेस प्रभाग में तैनात अधिकारी अपने चहेतों को रेवाड़ी की तरह पास जारी कर रहे हैं।

विभाग में तैनात अधिकारी को ये तक जानकारी नहीं है कि कौन सा संस्थान प्रिंट मीडिया का है और कौन इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का, उन्हें तो केवल अपने चहेतों के पास जारी करने का आदेश है।

सूचना एवं जनसंपर्क विभाग उत्तर प्रदेश की लापरवाही के चलते बदनाम पत्रकार होंगे और सियासी दलों के नुमाइंदों की चुनावी कार्यक्रम में घुसपैठ दिखाई देगी जिसका संज्ञान लेकर मुख्य निर्वाचन अधिकारी को तत्काल प्रेस के नाम पर जो पास निर्गत किए गए हैं उनको जांचोपरांत निरस्त किया जाना उचित दिखाई देता है।

अगर निर्वाचन आयोग प्रेस प्रभाग में तैनात प्रभारी से निर्वाचन आयोग भेजी गई पत्रकारों की सूची में दिए गए नाम में पूछे ले कि कौन सा संस्थान प्रिंट है और कौन सा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया है? तो शायद ही प्रभारी को इसकी जानकारी हो. लेकिन सूची बनाकर भेजने में ये अधिकारी सबसे आगे हैं।

निर्वाचन आयोग को ऐसे अधिकारी और कर्मचारी पर एक्शन लेना चाहिए…ताकि ऐसे अधिकारियों की वजह से कोई भी बड़ी घटना घटित न हो सके।

सूत्रों के मुताबिक मिली जानकारी के अनुसार अपराधिक मामलों में लिप्त पत्रकारों को भी सूचना विभाग ने निर्वाचन आयोग द्वारा जारी पास थमा दिया है, जोकि एक बड़ा खिलवाड़ हुआ है। अब सोचनीय विषय है कि ऐसी गलती अगर सूचना विभाग करेंगा तो अपराध कैसे कम होगा?

निर्वाचन आयोग को भी इस विषय पर ध्यान देना चाहिए कि सूचना विभाग ने जिन पत्रकारों की सूची भेजी. उसमें कितने पत्रकार वेब मीडिया के है और कितने यू ट्यूबर? लेकिन निर्वाचन आयोग में बैठे अधिकारी भी आंख मूंद कर पास जारी कर रहे हैं।

सच तो यही है कि सूचना विभाग में बैठे उच्च अधिकारी भी मामले को संज्ञान में लेना नहीं चाहते हैं और खुद बचते फिरते हैं।

आपको बता दें कि निर्वाचन आयोग ने बिहार में सूचीबद्ध वेबसाइट के पत्रकारों को कवरेज पास जारी किया है। लेकिन उत्तर प्रदेश के सूचना मुख्यालय में तैनात तानाशाही अधिकारी और प्रभारी अपनी मनमानी के आगे किसी की नहीं सुनते।

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