कार्तिकेय शर्मा ने राज्यसभा में उठाया विज्ञापनों से जुड़ा यह बड़ा मुद्दा
निर्दलीय सदस्य कार्तिकेय शर्मा ने सरकार से यह अनुरोध किया कि मंत्रालय विभिन्न दिशानिर्देशों के कार्यान्वयन को तब तक के लिए टाल दे, जब तक कि स्पष्ट और वस्तुनिष्ठ प्रक्रिया स्थापित न हो जाए
राज्यसभा में शुक्रवार को विज्ञापनों के लिए अनिवार्य किए गए स्व-घोषणा प्रमाणपत्र का मुद्दा उठा। निर्दलीय सदस्य कार्तिकेय शर्मा ने सरकार से मांग की कि विज्ञापनों के लिए अनिवार्य स्व-घोषणा प्रमाणपत्र के क्रियान्वयन को परिचालन संबंधी चुनौतियों, अस्पष्टता और संभावित कानूनी चुनौतियों को देखते हुए फिलहाल के लिए टाल दिया जाए।
निर्दलीय सदस्य कार्तिकेय शर्मा ने उच्च सदन में विशेष उल्लेख के जरिए यह मुद्दा उठाया और सुझाव दिया कि स्व-घोषणा प्रमाणपत्र का क्रियान्वयन शुरू में चिकित्सा विज्ञापनों तक ही सीमित रखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस संबध में हितधारकों के साथ व्यापक परामर्श किया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि सभी विज्ञापनों- प्रिंट, डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक के लिए स्व-घोषणा प्रमाणपत्र की आवश्यकता वाले हालिया निर्देश का मकसद उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करना और विज्ञापनों की शुचिता को बनाए रखना है।
कार्तिकेय शर्मा ने कहा, “हालांकि, इस निर्देश को अमल में लाने के दौरान कई तरह की व्यवहारिक दिक्कतें भी सामने आ रही हैं। विशेष रूप से SME के लिए छोटे मीडिया हाउस की ओर से प्रकाशित कुछ विज्ञापनों के संबंध में अस्पष्टता बनी हुई है। प्रक्रिया की तकनीकी प्रकृति और सीमित संसाधनों के कारण ऐसे विज्ञापनदाताओं को अनुपालन करने में परेशानी हो रही हैं।’’
इसके अलावा, इस निर्देश के तहत सरकारी और सार्वजनिक क्षेत्र के विज्ञापनों को लेकर भी गाइडलाइन पूरी तरह से साफ नहीं हैं। मीडिया कंपनियों को स्व-घोषणा पत्र तैयार करने और पोर्टल पर रजिस्टर करने में कई तरह की दिक्कतें सामने आ रही हैं और इसे दूर करने के लिए उपाय भी समझ नहीं आ रहे हैं। इसका असर ये हो सकता है कि विज्ञापनदाता प्रिंट मीडिया को विज्ञापन देने से कतराने लगें, जिसका सीधा असर कंपनी के रेवेन्यू पर पड़ सकता है।
लाखों लोगों की आजीविका प्रभावित होने की आशंका जताते हुए कार्तिकेय शर्मा ने कहा कि सरकार से यह अनुरोध है कि मंत्रालय विभिन्न दिशानिर्देशों के कार्यान्वयन को तब तक के लिए टाल दिया जाए, जब तक कि स्पष्ट और वस्तुनिष्ठ प्रक्रिया स्थापित नहीं हो जाए।
वहीं, इंडियन न्यूजपेपर सोसायटी के प्रेजिडेंट राकेश शर्मा ने ‘समाचार4मीडिया’ से बातचीत में कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने विज्ञापनदाताओं और विज्ञापन एजेंसियों को ये निर्देश दिया था कि विशेषरूप से फूड व हेल्थ से संबंधित विज्ञापनों के लिए स्व-घोषणा प्रमाणपत्र जरूरी होना चाहिए, लेकिन सूचना-प्रसारण मंत्रालय ने अपने आदेश में इसे सभी तरह की कैटेगरी के विज्ञापनों पर लागू कर दिया, जबकि इसकी पूरी तैयारी भी नहीं है। पोर्टल में इसे अपलोड करने में कई तरह की दिक्कते आ रही हैं। पूरे देश के अंदर छोटे शहरों से, जिलों से, तहसीलों में, ब्लॉक्स से, कस्बों व गांवों से कई तरह के विज्ञापन आते हैं, लेकिन यहां ऐसे भी कई लोग हैं, जिनके पास इंटरनेट सुविधा ही नहीं है, तो वह स्व-घोषणा प्रमाणपत्र पोर्टल पर कैसे अपलोड करेंगे। इससे पूरी इंडस्ट्री के समक्ष बहुत सी दिक्कतें पैदा हो जाएंगी, कितने लोग तो विज्ञापन प्रकाशित ही नहीं कर पाएंगे और उनका राजस्व नुकसान होगा और भी कई समस्याएं हैं और यह सभी समस्याएं हमने मंत्रालय के सचिव के समझ 11 जून और 25 जून को ही मीटिंग के दौरान क्रमश: दो बार रखीं, जिस पर उन्होंने आश्वासन दिया है कि इस पर देखते हैं कि इंडस्ट्री को हम किस तरह की सहुलियतें प्रदान कर सकते हैं।
राकेश शर्मा ने आगे कहा कि यह समस्या बहुत बड़ी है और यदि हम सुप्रीम कोर्ट के पास जाते हैं, तो बहुत अधिक समय व्यतीत हो जाएगा, जिसके चलते पूरी मीडिया इंडस्ट्री के समझ बहुत सी दिक्कतें पैदा हो जाएंगी, लिहाजा यही वजह है कि कार्तिकेय शर्मा ने राज्यसभा के समक्ष यह मुद्दा उठाया।
स्व-घोषणा मानदंड 18 जून को सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के बाद लागू हुए, जिसमें निर्देश दिया गया है कि किसी भी विज्ञापन को छापने, प्रसारित करने या प्रदर्शित करने से पहले, विज्ञापनदाता या विज्ञापन एजेंसी को सूचना-प्रसारण मंत्रालय के ‘ब्रॉडकास्ट सेवा पोर्टल’ पर एक स्व-घोषणा प्रस्तुत करना होगा।