ये हमारे देश का दुर्भाग्य है कि हंगर इंडेक्स में हम लगातार नीचे गिर रहे हैं : फूडमैन विशाल सिंह
43 वर्षीय विशाल सिंह लखनऊ के तीन अस्पतालों - किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी, बलरामपुर अस्पताल और राम मनोहर लोहिया अस्पताल में अपने गंभीर रूप से बीमार रिश्तेदारों के साथ आने वाले लोगों को फ्री में खाना खिलाते हैं. इस काम को उन्होंने अपने जीवन का मिशन बना लिया है.
कहते हैं कि अगर दिल में नेकी करने का इरादा हो तो राहें अपने आप बन जाती हैं. फिर भले ही आपके पास बहुत ज्यादा पैसा न हो लेकिन अच्छे काम के लिए साधन जुट जाते हैं. और इस बात को साबित कर रहे हैं उत्तर प्रदेश के विशाल सिंह, जिन्हें आज फूडमैन के नाम से जाना जाता है. क्योंकि उनके प्रयासों के कारण ही सरकारी अस्पतालों में अपने बीमार परिवार के सदस्यों की देखभाल करने वाले 1,200 से ज्यादा गरीब लोग भूखे नहीं रहते हैं.
43 वर्षीय विशाल सिंह लखनऊ के तीन अस्पतालों – किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी, बलरामपुर अस्पताल और राम मनोहर लोहिया अस्पताल में अपने गंभीर रूप से बीमार रिश्तेदारों के साथ आने वाले लोगों को फ्री में खाना खिलाते हैं. इस काम को उन्होंने अपने जीवन का मिशन बना लिया है.
खुद के अनुभव से मिली प्रेरणा
इस निस्वार्थ सेवा की प्रेरणा विशाल सिंह को अपने अनुभवों से मिली. द न्यू इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, साल 2003 में, वह गुरुग्राम के एक अस्पताल में अपने बीमार पिता की देखभाल कर रहे थे. इलाज में उन्हें काफी खर्च करना पड़ा और एक मध्यम-वर्गीय परिवार के लिए यह खर्च काफी बड़ा था. इस कारण एक वक्त ऐसा आया कि उनके लिए दो वक्त के खाने की व्यवस्था करना भी मुश्किल हो रहा था. उनके पिता को अस्थमा के साथ-साथ फेफड़ों का संक्रमण भी था.
रूड़की के मूल निवासी विशाल ने बीमारी के कारण अपने पिता को खो दिया. इसके बाद वह नौकरी के लिए लखनऊ आए और यहां बहुत मुश्किलों से अपना काम शुरू किया. लेकिन उनके भीतर एक संकल्प पनप रहा था. उन्होंने ठाना कि जब भी वह सक्षम होंगे तो वह सुनिश्चित करेंगे की अपने बीमार परिवारजन की देखभाल करने वाला एक भी व्यक्ति भूखा न रहे. ज्योतिष में स्नातक विशाल का मानना है कि नर (मनुष्य) की सेवा करना नारायण (भगवान) की सेवा करना है.
साल 2005 से कर रहे हैं यह काम
उन्होंने अपनी पहल शुरू करने के लिए सरकारी अस्पतालों को चुना क्योंकि इनमें ज्यादातर गरीब लोग आते हैं, जो इलाज का खर्च मुश्किल से वहन कर पाते हैं. सरकारी अस्पताल मरीजों को मुफ्त दवा और भोजन देते हैं, लेकिन इन अस्पतालों में अपने बीमार परिवार के सदस्यों की देखभाल करने वाले लोग शायद ही अपने लिए भोजन की व्यवस्था कर पाते हैं. 2005 में, किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (KGMU) के अधिकारियों ने मरीजों की देखभाल करने वाले लोगों की सेवा के लिए उनसे संपर्क किया था.
उन्हें अपनी रसोई बनाने के लिए जगह भी दी गई. इसके साथ, उन्होंने ‘प्रसादम सेवा’ शुरू की, जो लगभग 100 लोगों को प्रतिदिन तीन बार भोजन परोसती थी. ‘प्रसादम सेवा’ तुरंत हिट हो गई और उनकी पहल को जो प्रतिक्रिया मिली इससे उन्हें आगे बढ़ने का हौसला मिला. मरीजों के परिजनों को खाना खिलाने का क्रम दिन-ब-दिन चलता रहा. केजीएमयू, बलरामपुर अस्पताल और राम मनोहर लोहिया अस्पताल ने भी उनके समर्पण को देखकर उन्हें अपनी रसोई चलाने के लिए जगह देने पर सहमति जताई. अब, उनकी पहल का दायरा तीन प्रमुख सरकारी अस्पतालों और लखनऊ में नई बनी डीआरडीओ कोविड सुविधा तक बढ़ गया है.
आसान नहीं थी उनकी राह
लखनऊ में विशाल के शुरुआती दिन बहुत मुश्किल थे. सिंह ने हजरतगंज में पार्किंग अटेंडेंट के रूप में काम किया, साथ ही आजीविका चलाने के लिए एक छोटे रेस्तरां में बर्तन भी धोए. लेकिन उनका सपना कभी ओझल नहीं हुआ. उन्होंने एक चाय की दुकान भी चलाई. लगभग चार वर्षों के संघर्ष के बाद, वह एक इलेक्ट्रोड फैक्ट्री और अपने रियल एस्टेट व्यवसाय के जरिए कुछ बेहतर स्थिति में पहुंचे. साल 2007 में उन्होंने अपने पिता विजय बहादुर सिंह के नाम पर विजयश्री फाउंडेशन का गठन किया.
वर्तमान में, विशाल सिंह की ‘प्रसादम सेवा’ हर दिन 1200 से ज्यादा लोगों को बिना एक पैसा लिए खाना खिलाती है।.कोविड महामारी के दौरान यह संख्या लगभग 2500 तक पहुंच गई. महामारी की दूसरी लहर के दौरान उनके फाउंडेशन ने 7.5 लाख से अधिक भोजन पैकेट वितरित किए. इसके लिए उन्हें यूपी के राज्यपाल से पुरस्कार मिला.
निःशुल्क भोजन सेवा के लिए तीनों अस्पतालों में प्रतिदिन दोपहर 12.30 बजे से 3.30 बजे के बीच ‘प्रसादम सेवा’ के टोकन वितरित किए जाते हैं. नियमित मेनू में रोटी, दाल, चावल, दो सब्जियां, सलाद और पापड़ शामिल हैं. वह जो भी परोसते हैं उसकी गुणवत्ता से कभी समझौता नहीं करते. वह कहते हैं, ”मुझे लगता है कि मैं अपनी बेटी की शादी में मेहमानों को खाना खिला रहा हूं. यह कम क्वालिटी का कैसे हो सकता है?”
कोविड महामारी के दौरान जब कोई व्यक्ति अपने घर से निकलने तक को तैयार नहीं था तब फूडमैन विशाल सिंह द्वारा पांच कम्युनिटी किचन बनाकर, खासतौर पर केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के बिहाफ पर डीआरडीओ कोविड केंद्र एवं हज हाउस कोविड सेंटर का संचालन उन्हें दिया गया था. यहां उन्होंने सैकड़ों की तादाद में मरीजों व उनके परिजनों को निशुल्क भोजन कराने के साथ ही ऑक्सीजन रेगुलेटर बनाकर लाखों लोगों की जिंदगी बचाई.
इसके अलावा मेडिकल कॉलेज में तीमारदारों के लिए 8 आदर्श स्थाई रैन बसेरे बनाए हैं, जिनमें 650 से अधिक लोग आराम से रहकर अपने परिजनों का इलाज करा रहे हैं. और तो और गरीब बच्चों की पढ़ाई के लिए महानगर में वृद्ध नागरिकों के साथ मिलकर एक छोटा सा स्कूल भी उन्होंने खोला है, जहां बच्चे पढ़ कर अपने परिवार और समाज के बीच गर्व फील कर रहे हैं.
फूडमैन विशाल बताते हैं कि समाज और सेवा को समर्पित उनका एक मीडिया संस्थान भी है. जो सेवा पथ मीडिया के नाम से पिछले तीन वर्षों से असहाय और पीड़ितों, शोषितों का मंच बना हुआ है. विशाल अब भारत ही नहीं बल्कि विश्व को भूख से मुक्त करने की मुहिम की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं.
फूडमैन विशाल सिंह ने हर किसी को आपात स्थिति के लिए अपना पर्सनल नंबर जनसेवा के लिए सुलभ करवा रखा है, जो 24 घंटे निर्बाध रूप से एक ही रिंग में उठता है. प्रत्येक जरूरतमंद की सेवा में हरदम तत्पर विशाल सिंह का नंबर नीचे लिखा है.